विसंगतियाँ
काव्य साहित्य | कविता आचार्य बलवन्त6 Feb 2015
विसंगतियाँ
बदलाव के लिए
ज़बर्दस्त माँग हैं
हवा-पानी की तरह,
उन्हें पलने दो।
अँधेरा अवश्य मिटेगा,
एक दीया तो जलने दो।
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