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विवाह संबंध

बचपन में ही उसने बहुत बड़े दर्द को झेला था। मम्मी-पापा के प्यार को कोर्ट में मरते हुए महसूस किया था नीरज ने। तबसे नीरज कुछ समय पापा के साथ तो कुछ समय मम्मी के साथ बीताते चला आया था। उस मासूम-अबोध के मन-मस्तिष्क तो क्या उसकी धमनियों में भी यह सोच प्रविष्ट हो गई थी कि कोर्ट में संबंध टूटते हैं। अपने दोस्त की मम्मी-पापा की ऐसी ही ख़बर सुनकर वो काफ़ी आहत हुआ था। तबसे वो यही प्रार्थना करता आया था कि किसी का भी वैवाहिक संबंध कोर्ट तक न पहुँचे।

बहुत गहरे-प्रगाढ़ प्रेम संबंध के बाद जब नीरज के वैवाहिक जीवन की शुरुआत कोर्ट से होने की बात उठी तो नीरज सदमे में आ गया। अपनी प्रेमिका मोनिका को उसने समझाते हुए कहा, "कोर्ट में ही मेरे मम्मी-पापा का संबंध टूटा था तो हम लोग अपनी वैवाहिक जीवन की शुरूआत कोर्ट से क्यों करें? मंदिर विवाह इज़ द बैस्ट।"

मोनिका ने नीरज की तरफ़ देखकर उँगलियों पर तीन-चार सहेलियों का नाम गिनवाते हुए कहा, "दिव्या, निशा, सोनाली ने अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत मंदिर से ही की थी और आज वो तीनों अपने प्रेमी-पति के द्वारा छोड़ दी गई हैं, इसलिए जानू कोर्ट मैरिज इज़ द बैस्ट।"

एक सप्ताह तक नीरज और मोनिका के बीच यही बहस चलती रही कि "कोर्ट मैरिज इज़ द बैस्ट, तो मंदिर में भगवान के सामने अच्छा।"

अपने प्रेम संबंध में हल्की सी दरार को महसूस कर नीरज ने कोर्ट मैरिज को ही सही समझकर कोर्ट जाने का फ़ैसला किया। कोर्ट जाते वक़्त नीरज के क़दम ऐसे बढ़ रहे थे कि जैसे वो किसी युद्ध में जा रहा है। वो अपनी गर्दन झुकाए कुछ सोचता चला जा रहा था। मोनिका ने महसूस किया कि नीरज ने उसके सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। मोनिका रुकी, नीरज के उदास चेहरे को देखकर कुछ सोचा और दूसरी सड़क पर मुड़कर नीरज को मंदिर ले गई।

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