वो लम्हा जो तुमको छूकर जाता है
शायरी | ग़ज़ल कु. सुरेश सांगवान 'सरू’15 Oct 2019
वो लम्हा जो तुमको छूकर जाता है
सच कहती हूँ ख़ुश्बू से भर जाता है
टुकड़े टुकड़े जीता है जीवन अपना
सपना जिसकी आँखों में मर जाता है
मैंने देखा मैंने जाना है केवल
वो रस्ता जो सीधा ही घर जाता है
इक बैचैनी दिल को देकर दूर कहीं
वो देखो ख़्वाबों का लश्कर जाता है
माँ का सर फिर सज़दे में ही रहता है
बेटा जब भी घर से बाहर जाता है
तेरा चर्चा तेरी बातें करता हैं
जो तेरी महफ़िल से उठ कर जाता है
कौन है तन्हा मोबाइल की दुनियाँ में
साथ यहाँ दफ़्तर का दफ़्तर जाता है
रखता है जो दिल की बस्ती के नक्शे
रोज़ बदलते नक्शे से डर जाता है
होगा उछले पानी को क्या इल्म भला
कितनी गहराई में पत्थर जाता है
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टिप्पणियाँ
Akshaya 2019/10/12 05:20 AM
वाह वाह वाह
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surender singh 2019/10/17 01:28 AM
kamaal ka likha hai ,dheron daaad