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वो सतरंगी पल

जब मिलेंगे हम तुम
नदी के उस पार
जवां  दिलों में होगी ख़ुशी अपार।
नदी के किनारे  बैठे
निहारते रहेंगे एक दूसरे
की परछांई को।
जो परिलक्षित होगी
उस नदी के बहते हुए काँच जैसे
पारदर्शी जल में। 
उस जल में सिर्फ़ मेरा और तेरा ही चेहरा
परलक्षित नहीं होगा
चाँद भी होगा हमारे साथ में।
जो नदी के उस जल में
रात्रि के आग़ोश में
मिलने आएगा अपनी परलक्षित होती
प्रेमिका—चाँदनी से।
एक तरफ़ तू शरमा रही होगी
तो दूसरी तरफ़ चाँदनी भी सिमट रही होगी
अपने प्रियतम को निहारकर।
मैं तो अकेले ही मिलने आऊँगा तुमसे
डरपोक जो ठहरा
चाँद तो तारों की सारी बारात लेकर आएगा
उस रात नदी किनारे।
रात्रि के तीन पहर निकल जाएँगे
चाँदनी और चाँद के मधुर मिलन में
आख़िरी पहर भोर का होगा
जो चाँदनी को विदा करेगा चाँद के साथ
भीगी पलकों से।
हम देखते रह जाएँगे
मूकदर्शक बन कर
उन दोनों का एकाकार।
हम दोनों का भी मन
उस दिव्य एकाकार के दीदार  से हो पुलकित
खो जाएगा उस सतरंगी पल में ।
तब,
मेरी और तुम्हारी आत्मा उस रात्रि के पहर में
परमात्मा से मिलने निकल
पड़ेगी चाँद और चाँदनी की तरह
अनंत यात्रा पर।

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