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वेकिंग फ़्रॉम ड्रंकननेस ऑन ए स्प्रिंग डे

वेकिंग फ़्रॉम ड्रंकननेस ऑन ए स्प्रिंग डे
लि बाई (701-762) चीनी कवि

अनुवादक - प्रवीण शर्मा

 

इस दुनिया का
हसीं ख़्वाब है
ये ज़िन्दगी,
ना टूटने दूँगा
इसे अंधाधुंध
इस दौड़ में,
ना प्यार में,
ना दुलार में,
हर पल
पीता रहा
इस वक़्त का
मधु रस
दरवाज़े की
चौखट पर
कुछ होश में
कुछ जोश में,
जब आँख खुली
तो पाया ख़ुद को
हरे भरे खलिहान में,
कुछ गा रही थी
चिड़िया
पेड़ों के
झुरमुट में
कभी फूलों की
डाल पर
मैंने ख़ुद
से पूछा-
कैसा है
ये दिन
फूलों सा
सा रसीला
या
सपनों सा
रंगीला?
बसंती हवा
के झोंके ने
कुछ कहा
चिड़िया से-
ज़िन्दगी हसीं
ख़्वाब,
जी लो
इसे
बस
ख़्वाब सा


Waking From Drunkenness on a Spring Day
Li Bai (701–762), Chinese poet
translated by Arthur Waley (1889-1966), a British scholar/poet


"Life in the world is but a big dream;
I will not spoil it by labor or care."
So saying, I was drunk all the day,
Lying helpless at the porch in the front of my door
When I woke up, I blinked at the garden-lawn;
A lonely bird was singing amid the flowers.
I asked myself, had the day been wet or fine?
The Spring-wind was telling the mango-bird.
Moved by its song, I soon began to sigh,
And as wine was there, I filled my own cup.
Wildly singing, I awaited for the moon to rise;
When my song was over, all my senses had gone.

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