वक्त की गहराइयों से
शायरी | ग़ज़ल देवी नागरानी3 May 2012
वक़्त की गहराइयों से ढूँढ लाई हूँ समाँ
जीते जी मरने की कोशिश ने किया है बेज़ुबाँ।।
सूनी है ये राह लम्बी ना डगर आसान ये
ख़ुद से मिलने की यही पतली गली में है जहाँ।।
कुछ इशारे कर रही है, रात दिन कुदरत यहाँ
होश में बेहोश है क्यों है तुझे जाना कहाँ?
उम्र बढ़ती जा रही है, ज्यों घटे है ज़िंदगी
कितने मौसम आते जाते, कर रहे इसको बयाँ।।
मौत कि मौसम न देवी, जो पलट आती रहे
इक हवा का तेज़ झोंका, आए ऐसे ज्यों ख़िजाँ।।
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- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
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- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
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- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
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- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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