वक़्त ने दिल को दिए हैं घाव कितने?...
काव्य साहित्य | कविता आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'28 Feb 2014
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
हम समझ ही नहीं पाए
कौन क्या है?
और तुमने यह न समझा
मौन क्या है?
साथ रहकर भी रहे क्यों
दूर हरदम?
कौन जाने हैं अजाने
भाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
चाहकर भी तुम न हमको
चाह पाए।
दाहकर भी हम न तुमको
दाह पाए।
बाँह में थी बाँह लेकिन
राह भूले-
छिपे तन-मन में रहे
अलगाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
अ-सुर-बेसुर से नहीं,
किंचित शिकायत।
स-सुर सुर की भुलाई है
क्यों रवायत?
नफासत से जहालत क्यों
जीतती है?
बगावत क्यों सह रही
अभाव इतने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
खड़े हैं विषधर, चुनें तो
क्यों चुनें हम?
नींद गायब तो सपन
कैसे बुनें हम?
बेबसी में शीश निज अपना
धुनें हम-
भाव नभ पर, धरा पर
बेभाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
सांझ सूरज-चंद्रमा संग
खेलती है।
उषा रुसवाई, न कुछ कह
झेलती है।
हजारों तारे निशा के
दिवाने है-
'सलिल' निर्मल पर पड़े
प्रभाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?....
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
साहित्यिक आलेख
दोहे
कविता
पुस्तक चर्चा
कविता - हाइकु
पुस्तक समीक्षा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं