याद की बरसातों में
शायरी | ग़ज़ल नीरज गोस्वामी15 Jul 2007
जब भी होता है तेरा ज़िक्र कहीं बातों में
लगे जुगनू से चमकते हैं सियाह रातों में
ख़ूब हालात के सूरज ने तपाया मुझको
चैन पाया है तेरी याद की बरसातों में
रूबरू होके हक़ीक़तक से मिलाओ आँखें
खो ना जाना कहीं जज़्बात की बारातों में
झूट के सर पे कभी ताज सजाकर देखो
सच ओ ईमान को पाओगे हवालातों में
आज के दौर के इन्सान की तारीफ़ करो
जो जिया करता है बिगड़े हुए हालातों में
आप दुश्मन क्यूँ तलाशें कहीं बाहर जाकर
सारे मौजूद जब अपने ही रिश्ते नातों में
सबसे दिलचस्प घड़ी पहले मिलन की होती
फिर तो दोहराव है बाक़ी की मुलाक़ातों में
गीत भँवरों के सुनो किससे कहूँ मैं नीरज
जिसको देखूँ वो है मशग़ूल बही खातों में
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