अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

यादों की धूप-छाँह

पुस्तक: यादों की धूप-छाँह
लेखक: डॉ. भैरुँलाल गर्ग
प्रकाशन: बोधि प्रकाशन, जयपुर
वर्ष: 2021
ISBN: 978-93-90827-46-6
मूल्य: 299 रु.

“बाल वाटिका” पत्रिका के संस्थापक-संपादक एवं बाल साहित्य भारती सम्मान, शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार जैसे दर्जनों सर्वोच्च सम्मानों से सुशोभित डॉ. श्री भैरुँलाल गर्ग की पुस्तक “यादों की धूप-छाँह” बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा इसी वर्ष प्रकाशित की गई है। यह पुस्तक इस अर्थ से विलक्षण है क्योंकि इसमें डॉक्टर गर्ग द्वारा राजस्थान के लोक-जीवन, मिथक, पुराण, परंपराओं का उचित समावेश किया गया है। उनके लेखन में संघर्ष, संयम, संतोष एवं सफलता का नाद श्रोताओं को चौंकाता है। यह संस्मरण पढ़ने की आवश्यकता पाठकों को इसलिए भी है, ताकि पता चल सके कि विषम परिस्थितियों, धनाभाव और अकाल जैसी आपदाओं में भी कैसे हमारे बड़ों ने जीवन का गौरव प्राप्त किया है। डॉक्टर गर्ग द्वारा अपने संस्मरणों में अनुभूति, स्मृति द्वारा पीड़ा, प्रेम, मान, प्रतिष्ठा, सदाचार जैसे सामाजिक मूल्यों का स्पष्ट विवरण दिया गया है। सृजनात्मकता और गहन अनुभूति का समन्वय अगर देखना हो तो इससे अच्छी पुस्तक कोई नहीं हो सकती। कम शब्दों में प्रवाहपूर्ण और सारगर्भित घटनाएँ इस पुस्तक की विशेषता हैं। डॉक्टर गर्ग ने जीवन की हर घटना को छुआ है और अपने लेखकीय रंगों को सरल भाषा में एकत्रित करके गुच्छपुंज पाठकों के हाथ में थमा दिया है, जैसे पढ़ाई का एक वर्ष व्यर्थ चला जाना लेकिन लेखक को आत्मसंतोष है कि प्रतिकूलताओं के बावजूद जीवन में वह अपेक्षित सफलता प्राप्त कर चुके हैं। ऐसे ही चित्तौड़गढ़ दुर्ग भ्रमण, लाठी बाबा महाराज का संस्मरण, नवीं कक्षा में दाख़िले के लिए माँ के द्वारा करधनी को गिरवी रखने की घटना, दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद राजस्थान में पड़ा भयंकर अकाल, 1971 में पिता की आकस्मिक मृत्यु और परिवार संचालन की ज़िम्मेवारी, प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करना, डॉ रामधारी सिंह दिनकर जी से मुलाक़ात, बाल विवाह का विवरण, माँ का दुखद निधन एवं अपनी प्रिय जीवनसंगिनी के साथ जीवन यात्रा का अनुभव सरल और भावपूर्ण शब्दों में किया है। 

संस्मरण हर सदी में लिखे जाते रहे हैं लेकिन कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं जिनकी अहमियत सदैव बनी रहती है। यह पुस्तक पाठकों को समृद्ध बना सकती है और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को नया आकाश दे सकती है क्योंकि यह अपने आप में पूर्णता लिए हुए है।

मुद्रण से लेकर कलात्मक साज सज्जा उत्कृष्ट है। यह पुस्तक पढ़ने योग्य एवं सहेजने योग्य है। डॉक्टर गर्ग की ये धरोहर जिसके भी हाथ जाएगी उसे अवश्य प्रभावित करेगी।
 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

सामाजिक आलेख

पुस्तक समीक्षा

लघुकथा

दोहे

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं