यह चश्मा है श्रीमान
काव्य साहित्य | कविता संजीव बख्शी30 Apr 2012
यह चश्मा है
पढ़ने का चश्मा श्रीमान
आप पढ़ते हैं
चश्मा चढ़ाते हैं
चश्मा चढ़ाते हैं
ज़रूर कुछ पढ़ते हैं
पत्नी ने अभी कहा
“अजी सुनते हो ........ ......”
आपने चश्मा चढ़ा ली
रोज़ की तरह शाम देर से लौटा है
बेरोज़गार बेटा
आपने चश्मा चढ़ा ली है
चश्मा चढ़ा ली है
आने को है
ससुराल से बिटिया
बहुधा
रेडियो के समाचार पर
आप चश्मा चढ़ा लेते हैं
कभी तो बिना वजह
कई-कई बार
चश्मा चढ़ाते हैं उतारते हैं
यह चश्मा है
पढ़ने का चश्मा
श्रीमान ।
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