यह कैसी ज़िद है
काव्य साहित्य | कविता दिविक रमेश12 Jan 2016
यह कैसी ज़िद है महाप्रभु
कि जो मिलना ही चाहिए
उसे भी माँगू
और वह भी फैलाकर हाथ
गिड़गिड़ाकर
नाक रगड़कर।
क्यों?
यह कैसी ज़िद है महाप्रभु
जिसे देना ही होगा आपको
उसे भी रोक रहे हैं
और खप रहे हैं।
क्यों?
यह कैसी ज़िद है महाप्रभु
कि जिसे आप विवश हैं देने को
उसी को नहीं दे पा रहे हैं
खुद को मसोस रहे हैं
क्यों?
कृपया इसे व्यंग्य न समझें महाप्रभु
क्योंकि कमजोर नहीं हूँ
मैं।
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