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यह क़तई ज़रूरी नहीं है 

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि जो सुन रहा है वह समझ भी रहा हो, जो चल रहा है वह पहुँचेगा भी, जो क़ाबिल है वह कामयाब भी हो, जो पुरस्कृत हो रहा है वह योग्य भी हो, जो आकर्षक है वह आत्मीय भी हो, जो इंडियन है वह भारतीय भी हो।

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि होंठ हैं तो तबस्सुम भी हो,आवाज़ है तो तरन्नुम भी हो, आसमान है तो वहाँ जहन्नुम भी हो, अभिनेता है तो नसीरुद्दीन भी हो, शहंशाह है तो जलालुद्दीन भी हो।

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि जहाँ आबादी है वहाँ वीराने नहीं होगे, जहाँ हुस्न है वहाँ दीवाने नहीं होगे , जहाँ साक़ी है वहाँ पैमाने नहीं होगे , जहाँ शिकारी है वहाँ निशाने नहीं होगे।

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि आँख है तो मारता भी होगा, आँख है तो लड़ाता भी होगा, आँख है तो फेरता भी होगा, आँख है तो झुकाता भी होगा, आँख है तो मिलाता भी होगा, आँख है तो उसमें आँसू भी होगे, आँख है तो उसमें आग भी होगी, आँख है तो उसमें रोशनी भी होगी, आँख है तो शर्म भी हो, आँख है तो लक्ष्य भी हो। यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि आँख अच्छी है तो नज़र भी अच्छी होगी।

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि मन है तो मचलता भी हो, मन है तो तरसता भी हो, मन है तो मिज़ाज भी हो, मन है तो उसमें मर्ज़ी भी हो, मन है तो मौक़ा भी हो। यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि दिल है तो धड़कता भी होगा, तन है तो अकड़ता भी होगा, मुँह है तो खुलता भी होगा, पैर है तो चलता भी होगा, हाथ है तो बढ़ता भी होगा।

हाँ हाँ हाँ यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि कपड़े साफ़ हैं तो आदमी गंदा नहीं होगा। जो हाथ मिला रहा है वह गला नहीं दबायेगा, जो पीठ सहला रहा है वह धक्का नहीं देगा, जो चूम रहा है वह काटेगा नहीं।

दावे के साथ कह रहा हूँ कि यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि जो मंच पर बोल रहा है वह घर में भी सुना जाता हो, जो देश भर में जाना जाता है वह पड़ोसियों में भी पहचाना जाता हो, जो महफ़िल का सम्मानित है वह मस्जिद में भी इज़्ज़त पाये।

मै तो कह रहा हूँ न लिख कर ले लो कि यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि युद्ध मैदान में ही हो, यह  क़तई ज़रूरी नहीं है कि हलवाई है तो मीठा ही बोलेगा, यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि जो स्वादिष्ट है वह पौष्टिक भी हो, जो ताक़तवर है वह निडर भी हो, जो सुंदर है वह शालीन भी हो। 

समझो भाई समझो, समझो के ये क़तई ज़रूरी नहीं है कि जो सो रहा है वह सुन नहीं रहा है, जो साक्षर है वह शिक्षित भी हो। कुछ खंबे बेवज़ह खड़े हैं, कुछ परचम बेवज़ह गड़े हैं, कुछ सीने बेवज़ह तने हैं।

अगर जागे हुए हो तो स्वीकार लो कि यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि जहाँ तक बिजली नहीं पहुची वहाँ तक रोशनी भी नहीं पहुचेगी, क्योंकि ख़ुदा सिर्फ़ पानी नहीं बरसाता, अपने नूर की बारिश भी करता है।

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि प्रेम है तो झगड़ा नहीं होगा, और झगड़ा है तो प्रेम नहीं है। यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि स्कूल की बिल्डिंग भव्य है तो रिज़ल्ट भी शानदार होगा, अस्पताल ख़ूबसूरत है तो इलाज भी सही होगा, किसान मेहनती है तो फ़स्ल भी भरपूर होगी।

यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि पटकथा शानदार है तो प्रस्तुती भी प्रभावशाली होगी, पोस्टर आकर्षक है तो फ़िल्म भी उम्दा होगी, पिता ज़हीन है तो बेटा भी क़ाबिल होगा।

अगर यह ज़रूरी नहीं है तो यह भी क़तई ज़रूरी नहीं है कि अधिकारी है तो भ्रष्ट ही होगा, धनवान है तो अहंकारी ही होगा, नेता है तो झूठा ही होगा, डॉक्टर है तो लुटेरा ही होगा, व्यापारी है तो लालची ही होगा।

अगर ज़रूरी है तो यह विश्वास ज़रूरी है कि यह दुनियाँ चल रही है तो सिर्फ़ इसलिये चल रही है क्योंकि इसमें अच्छे लोग बाक़ी हैं। यक़ीन मानिये यहाँ बुरों का प्रतिशत बहुत कम है, अच्छे लोग बहुत ज़्यादा है, तभी तो यह दुनियाँ इंसानों के रहने लायक़ स्थान हुई है।

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