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यह ऋतु मस्तानी

नमस्कार दोस्तो,

मैं आज  बसंत पंचमी के बारे में अपने विचार हिंदी के प्रसिद्ध कविवर ‘सेनापति’ की इन पंक्तियों के साथ साँझा करना चाहती हूँ –

"चहकि चकोर उठे, करि-करि जोर उठे।
टेर उठी सारिका, विनोद उपजावने।
चटकि गुलाब उठे, लटकि सरोज पूंज।
खटकि भराल रितुराज सुनि आवे॥"

भारत एक महान देश है। इसकी प्राकृतिक शोभा निराली है। पूरे संसार में छः ऋतुओं की सुंदरता संसार के किसी अन्य देश को प्राप्त नहीं है। बसंत ऋतु की शुरुआत सर्दी के अंत से होती है। बसंत के आते ही प्रकृति में एक नया जीवन आ जाता है। यह मौसम में ताज़ी हवा, गुनगुनी धूप के साथ उत्तम स्वास्थ्य लेकर आता है। कोयल की मीठी कूक, सरसों के खेतों में लहलहाते पीले फूलों, आमों की मंजरियों की महक से चारों ओर का वातावरण मनमोहक हो जाता है।

इस सुहाने मौसम में बसंत पंचमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता हैं। कहते हैं कि इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था, जो कि ज्ञान, संगीत और कला की देवी मानी जाती हैं। इसलिए यह दिन देवी सरस्वती के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। बंसत पंचमी को श्री पंचमी या फिर सरस्वती पंचमी भी कहते हैं। ऐसा कहा गया है कि इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं। क्योंकि इस दिन पीला रंग बहुत ही शुभ माना जाता है, मान्यता है पीला रंग देवी सरस्वती का पंसदीदा रंग है, इसलिए पूजा के वक़्त उन्हें केसर युक्त खीर और पीले लड्डू भोग के लिए चढ़ाए जाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि देवी सरस्वती की मूर्ति को पीले रंग की साड़ी और सुंदर-सुंदर ज़ेवर पहना कर उनका शृंगार किया जाता है। पश्चिम बंगाल में तो माँ सरस्वती की मूर्ति का विसर्जन गंगा नदी मे किया जाता है।

इस तरह अब मैं इन पंक्तियों के साथ अपने विषय को विराम देना चाहूँगी –

बसंत ऋतु आई, बसंत ऋतु आई।
साथ अपने पंचमी ओै होली लाई॥
सरसों फूली खेतों में।
अबीर गुलाल खिला गालों में॥
बौर आमों में उठी झूल।
देख माँ सरस्वती हुई ख़ुश॥
वीणा से निकले स्वर।
रहो खुश, रहो स्वस्थ॥
क्योंकि है मेरी यह ऋतु मस्तानी।

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