यहाँ पीपल की छाँव है
काव्य साहित्य | कविता संजीव बख्शी30 Apr 2012
यह रास्ता
जो तेजी से बढ़ रहा है
मंजिल चाहे जो हो
जैसा भी
ठहरिए
आप यहीं करिए इंतज़ार
वापस आएगा यह
इसी रास्ते
रास्ते के ऊपर
दौड़ रहा है
रास्ता
बेतहाशा
हाँफ रहा है
दौड़ते- दौड़ते
यह मंजिल पर भी ठहरेगा
मुझे नहीं लगता
मंजिल पेड़ पर फली है
रास्ता आएगा पेड़ के नीचे
पेड़ नहीं जाता कहीं चल कर
न मंजिल
मौसम आएगा इसी रास्ते
खुशियाँ इसी रास्ते
ठहरिए यहीं करिए इंतिजार
पीपल की छाँव है यहाँ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं