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ये बारिश! वो बारिश? 

उबलती गर्मियों के बाद, जो बारिश हुई होगी, 
धूप से तप रहे लोगों को, कुछ राहत मिली होगी,
सूखते पेड़, पाकर जल ज़रा सा, बच गए होंगे, 
धूप से जल रहे कुछ बीजों में, अंँखुए1 उगे होंगे, 
ज़मीं की प्यास भी, शायद,ज़रा सी बुझ गई होगी, 
हवाओं की हरारत भी, तनिक सी, घट गई होगी। 
 
शहरों, क़स्बों, देहातों में, ख़ूब मस्तियाँ हुई होंगी, 
अमीरों के घरों की खिड़कियाँ भी, खुल गई होंगी,
वो गोरे नर्म नाज़ुक हाथ, खिड़की से बढ़े होंगे, 
उँगलियों से नर्म बारिश की बूँदें, छेड़ते होंगे, 
लगा कर छतरियाँ बच्चे, मज़े से खेलते होंगे, 
बड़े भाई-बहिन भी, साथ उनके हो गए होंगे, 
बना कर नाव काग़ज़ की, होड़ में लग गए होंगे, 
देखकर बचपना माँ-बाप भी, ख़ुश हो रहे होंगे, 
पकौड़ों और भुट्टों की, खुश्बुयें आ रही होंगी, 
समोसे-चाय की महफ़िलें, घरों में सज गयी होंगी, 
कार में बैठ कर कुछ लोग, मैख़ाने गए होंगे, 
जाम टकरा रहे होंगे, कहकहे लग रहे होंगे। 
 
भूख से रो रहे बच्चों को, माँ बहला रही होगी, 
मजूरी आज बारिश में, नहीं उसको मिली होगी,
वहाँ, उस झोपड़ी की छत, अचानक गिर गई होगी, 
पुराने बाँस-बल्ली पर, फूस से जो बनी होगी,
ओढ़ कर बोरियाँ, पेड़ों के नीचे, भीगते होंगे,
घरौंदे आजतक जिनके, खुले फुटपाथ ही होंगे। 
 
बहुत बारिश हुई, शायद, कहीं बादल फटे होंगे, 
गिरी हैं बिजलियाँ ऐसी, बहुत से घर ढहे होंगे, 
मरे होंगे बहुत से, सैकड़ों बे-घर हुए होंगे, 
चढ़े सैलाब का पानी, शहर में घुस गया होगा, 
घरों का माल और अस्बाब, उसमें गुम हुआ होगा। 
गाँव के खेत, कच्चे घर, बाढ़ में बह गये होंगे, 
पेड़ उखड़े हुए होंगे, मवेशी मर रहे होंगे, 
कुठलों2 में सहेजा अन्न, भीग कर सड़ गया होगा, 
कुओं और पंप का पानी भी, गन्दा हो गया होगा, 
बहुत बदहाल, भूखे और प्यासे हो रहे होंगे, 
गुहारें मदद की सरकार से, सब कर रहे होंगे, 
वबा3, बीमारियाँ, कीड़े-मकोड़े, बढ़ गए होंगे, 
जो हैं बे-हाल, बे-घर, तंग उनको कर रहे होंगे। 
 
दुआ है बारिश, रब की, जो जीवन, जान देती है, 
ख़ुदा की बद्दुआ बारिश, जान लेती, डुबोती है। 
 
1. अँखुए=अंकुर; 2. कुठला=अनाज रखने के लिए मिट्टी की बखारी; 3. वबा= महामारी

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टिप्पणियाँ

Sarojini Pandey 2021/08/14 10:10 AM

बहुत सूक्ष्मता से बरसात का अवलोकन एवं भावपूर्ण वर्णन

पाण्डेय सरिता 2021/08/13 07:44 AM

बहुत ही यथार्थ चित्रण बरसात की

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