ज़ख़्म भी देते हैं
शायरी | ग़ज़ल चंपालाल चौरड़िया 'अश्क'1 Mar 2019
ज़ख़्म भी देते हैं मरहम भी लगा देते हैं
दर्द भी देते हैं फिर दर्दे-दवा देते हैं
खूब एहसान का ये ढंग निकाला उनने
करते गुमराह और फिर राह बता देते हैं
ख़्वाब में आते हैं आने का करते हैं वादा
वादा करते हैं फिर वादा भुला देते हैं
प्यार करना कोई ग़ुनाह तो नहीं है यारो
प्यार किया है हमने उसकी सज़ा देते हैं
हमें तड़पाते हैं, तरसाते हैं क्योंकर वो ’अश्क’
सताने वालों को भी हम तो दुआ देते हैं।
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