ज़रूरी है
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’23 Feb 2019
थोड़ी - सी छाँव
थोड़ी- सी धूप।
थोड़ी - सा प्यार
थोड़ी- सा रूप।
जीवन के लिए ज़रूरी है...
थोड़ा तकरार
थोड़ी मनुहार।
थोड़े -से शूल
अँजुरीभर फूल।
जीवन के लिए ज़रूरी है...
दो चार आँसू
थोड़ी मुस्कान।
थोड़ा - सा दर्द
थोड़े - से गान।
जीवन के लिए ज़रूरी है...
उजली- सी भोर
सतरंगी शाम।
हाथों को काम
तन को आराम।
जीवन के लिए ज़रूरी है...
आँगन के पार
खुला हो द्वार।
अनाम पदचाप
तनिक इन्तज़ार।
जीवन के लिए ज़रूरी है...
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आग के ही बीच में
- इस रजनी में
- उगाने होंगे अनगिन पेड़
- उजाले
- एक बच्चे की हँसी
- काँपती किरनें
- किताबें
- क्या करें?
- खाट पर पड़ी लड़की
- घाटी में धूप
- जीवन के ये पल
- नव वर्ष
- बच्चे और पौधे
- बरसाती नदी
- बहता जल
- बहुत बोल चुके
- भोर की किरन
- मुझे आस है
- मेघ छाए
- मेरी माँ
- मैं खुश हूँ
- मैं घर लौटा
- शृंगार है हिन्दी
- सदा कामना मेरी
- साँस
- हैं कहाँ वे लोग?
- ज़रूरी है
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
सामाजिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कहानी
कविता-मुक्तक
दोहे
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
प्रीति अग्रवाल 2019/09/14 02:21 AM
बहुत सुंदर, जीवन में संतुलन बिठाने के लिए सब कुछ ज़रूरी है!!