ज़िन्दगी का सामना बस इस तरह करते रहे
शायरी | ग़ज़ल डॉ. गौरव कक्कड़ ’वारिस’16 Feb 2008
ज़िन्दगी का सामना बस इस तरह करते रहे
बद्दुआ करते रहे वो हम दुआ करते रहे
शहर सारा सो गया है चुप की चादर ओढ़ कर
हम यूँ ही अपनी कहानी का बयाँ करते रहे
वक़्त की आँधी ने जिनके पर जला राख कर दिए
हम उन्हीं नन्हे परिंदों की दवा करते रहे
हम ने अपनी आँखों के आगे ही परदा कर लिया
हादसे तो अपने शहरों में हुआ करते रहे
उम्मीद हम इंसाफ़ की करते रहे पर देख लो
मुंसिफ़ों के सामने ही सर कटा करते रहे
सोच अपनी क़ैद है अब तक दरो दीवार में
यूँ तो महताबों को जाकर हम छूआ करते रहे
हर क़दम पे मौत को हँस कर मिला करते रहे
ज़िंदगी जीने का बस यूँ हक़ अदा करते रहे
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