ज़िंदगी
काव्य साहित्य | कविता विकास वर्मा8 Dec 2014
कुछ अतीत की स्मृतियों के भीगे-से पल,
कुछ भविष्य के सपनों की धुँधली-सी तस्वीरें,
और बस,
सृजनहीन वर्तमान का प्रतिक्षण,
यूँ ही हाथों से फिसलते जाना….
कितना सिमट जाती है ज़िंदगी कभी-कभी!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
अनूदित कहानी
शोध निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}