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ज़ाइऑन नेशनल पार्क की यात्रा

यह पार्क अमेरिका के लोगों के लिए भी एक सपने से कम नहीं है क्योंकि वे ही इसे एक बार नहीं, बार बार देखना पसंद करते हैं।

भारतवर्ष में भी एक से एक दर्शनीय स्थल हैं किन्तु जिस तरह उन्हें अमेरिका में आकर्षक बनाकर प्रस्तुत किया जाता है तथा उनसे आय अर्जित करने की चेष्टा की जाती है, वैसी सोच भारत में कम ही देखने को मिलती है। अमेरिका ने जगह-जगह दर्शनीय स्थल विकसित किये हैं और हर जगह अच्छा ख़ासा शुल्क लगा दिया है, जिससे उस दर्शनीय स्थलों की साल-सँभल की जाती है।

यहाँ पर सप्ताहांत में कहीं न कहीं बाहर जाकर घूमने की प्रथा है। यहाँ के लोग पाँच दिन जम कर काम करते हैं, और सप्ताहांत में आसपास के या लम्बा सप्ताहांत हो तो दूर-दराज़ के दर्शनीय स्थल देखते हैं। नए लड़के लड़कियाँ ही नहीं, प्रौढ़ और महत्वाकांक्षी पुरुष भी हाइकिंग करते हैं, पहाड़ों पर चढ़ते हैं, जंगलों में भ्रमण करते हैं। २०१५ में जब मैं लॉस अन्जेलेस में बेटे के पास था तो संयोग से एक लॉन्ग वीकेंड मिल गया। लम्बे सप्ताहांत का अर्थ है कि शनिवार रविवार के साथ ही एक दो छुट्टियों का जुड़ जाना। यानी लगातार चार पाँच दिन का अवकाश। बेटे और पुत्रवधू ने कार्यक्रम बनाया कि इस बार ज़ाइऑन नेशनल पार्क देखा जाए!

ज़ाइऑन नेशनल पार्क लॉस एंजेलेस से ४६० मील की दूरी पर स्थित है। पहले लास वेगस का पड़ाव फिर ज़ाइऑन नेशनल पार्क। यदि सड़कों पर ट्रैफ़िक जाम (जैम) न हो तो लॉस एंजेलेस से लास वेगस साढ़े तीन घंटे में पहुँचा जा सकता है किन्तु ऐसा कम ही होता है, शनिवार रविवार यहाँ कारों की रेलम-पेल मची रहती है। जीपीएस ने बताया कि जैम लगा हुआ है अतः पाँच घंटे में पहुँच पाएँगे। मीलों तक नंगे और काले पहाड़ देखते जाइए। केवल गाजर घास या केक्टस यत्र-तत्र उगे हुए दिखाई देते हैं। जब लॉस अन्जेलेस से लास वेगस के लिये जा रहे थे तो उस २७० मील की यात्रा में एक भी नदी या झरना देखने को नहीं मिला क्योंकि यह पूरी की पूरी यात्रा मरुस्थल की यात्रा है। जिस प्रकार थार का मरुस्थल हिंदुस्तान में है, ठीक उसी तरह किन्तु क्षेत्रफल में शायद यहाँ का और भी बड़ा रेगिस्तान है। दिनांक २२ मई को हम लोग लगभग दो बजे दोपहर यात्रा पर कार से निकले। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि २७० मील की यात्रा में एक भी नदी नाला या जल स्रोत नहीं! सीमेंट से बनी हुई मनुष्य निर्मित मात्र एक नहर को देखकर ही संतोष करना पड़ा। वह भी लगभग २०० मील के यात्रा पूरी करने के बाद दिखाई दी। यद्यपि यह पानी से, या कहें एकदम साफ़ जल से लबालब भरी बह रही थी। लॉस अन्जेलेस से हम लोग लगभग पाँच घंटे की ड्राइव करके लास वेगस पहुँचे। एक रात वहाँ से बीस मील दूर के एक रिसोर्ट में बिताई। लास वेगस क्योंकि पिछली यात्रा में अच्छी तरह देख चुके थे इसलिए वहाँ के स्थलों को पुनः देखने का मन नहीं हुआ। हाँ, इस बार एक बात नयी पता चली कि लगभग प्रत्येक होटल/केसिनो में प्रमाण पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, जिनमें तीन घंटे में विवाह का प्रमाण पत्र प्राप्त हो जाता है तथा एक घंटे में तलाक़ का प्रमाण पत्र मिल जाता है। पिछली बार लास वेगस के एक होटल में २०१३ की यात्रा में रुक कर देख लिया था, रात भर में एक मिनट भी सो नहीं सके थे। प्रत्येक होटल एक आलीशान जुआ घर बना होता है, रात भर शराबियों जुआड़ियों का शोर-गुल मचा रहता है। यद्यपि मरुस्थल के बीचों-बीच बनाया गया है किन्तु लास वेगस को इंद्र की सभा की तरह विकसित किया गया है, जिसे देखने के लिए प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में दर्शक आते हैं। यह स्थान एक से एक महँगे जुआघरों में खेलने और ऐश करने का दुनिया का एकमेव आकर्षक स्थल है। यद्यपि सुना है चीन ने भी इससे भी ऊँचा प्रतियोगी शहर विकसित कर अमेरिका को भी मात दे दी है। इस शहर का नाम मकाऊ है, किन्तु पहले का तो यह ही है! वरिष्ठ या प्रौढ़ भारतीयों के लिए तो लॉस वेगस वैसे ही पकाऊ और ऊबाऊ है, फिर भला मकाऊ, और कितना पकाऊ होगा कल्पना की जा सकती है! वैज्ञानिक और आर्थिक प्रगति में वह भी अमेरिका से आगे होने की होड़ में है।

यहाँ के कर्मठ लोगों ने उस मरुथल को विश्व का एक अत्यंत महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल बना दिया है, जहाँ विदेशों से भीड़ की भीड़ उमड़कर ऐश करने यानी शराब पीने और जुआ खेलने आदि के लिए आती है। आप कहीं भी खड़े हो जाइए दो मिनिट में ही कोई आदमी या महिला, कई लड़कियाँ और उनके होटल और रेट के साथ आपके सामने खड़े हुए मिल जायेंगे। इस तरह दुनिया की सबसे बड़ी ऐशगाह का नाम है, लास वेगस।

ज़ाइऑन नेशनल पार्क प्रवेश द्वार

पहले पड़ाव को पार करने के बाद, हम लोग लगभग १९० मील दूर ज़ाइऑन नेशनल पार्क में बीच जंगल में बने हुए अत्यंत मनमोहक रिसोर्ट में दो रातों के लिए रुके। यहाँ लकड़ी के ३३ रिसोर्ट निर्मित किये गए हैं, सप्ताहांत में जहाँ जगह मिलना मुश्किल काम है। एक-एक रिसोर्ट का किराया ४५० डॉलर प्रतिदिन का है फिर भी यहाँ घूमने वालों का ठट्ठ लगा रहता है। हरेक रिसोर्ट दूसरे रिसोर्ट से लगभग १/४ मील की दूरी पर अलग-सलग स्थित है। ज़ाइऑन नेशनल पार्क के प्रत्येक रिसोर्ट में पुस्तकालय है, जिसमे चार-पाँच सौ पुस्तकें रखी रहती हैं, बढ़िया, किचन, स्वीमिंग पूल, जकूज़ी, इन्टरनेट की सुविधा, यानी आलीशान घर सरीखी सारी व्यवस्थाएँ वहाँ होती हैं। किराया भी तो ४५० डॉलर प्रतिदिन है! यद्यपि अपनी आदत के अनुसार जब मैं सुबह-सुबह दोनों दिन घूमने को निकला तो मुझे बड़े आकार की गिलहरी और खरगोशों के आलावा कुछ नहीं मिला। हाँ, इस जगह भरपूर हरियाली है, यहाँ वर्ष होती रहती है। जब हम लॉस एंजेलेस से चले थे तब ही मौसम की भविष्यवाणी में बता दिया गया था की दोनों दिन मात्र दो घंटे का सूरज रहेगा और बाक़ी समय बरसात होती रहेगी, और लगभग वैसा ही हुआ भी। रात में वहाँ मैंने किम हीकोक्स की एक पुस्तक पढ़ी, जिसका नाम था "द मेकिंग ऑफ़ नेशनल पार्क्स, ऐन अमेरिकन आईडिया" इस पुस्तक का प्राक्कथन जिमी कार्टर ने लिखा है। यह १९१६ के बाद कभी प्रकाशित हुई है। लेखक ने अपनी किताब में लिखा है कि १६३० के पहले यहाँ के रेड इन्डियन्स (जिन्हें किताब में इन्डियन्स ही लिखा गया है) को सरकार चलाने की समझ नहीं थी। इसी बीच १६३० में इंग्लैंड से गोरे लोगों का सैलाब यहाँ आना शुरू हुआ। और उन्होंने वर्जीनिया में पहला डेरा जमाया। आगन्तुक अपने साथ अपनी भाषा, चेचक की बीमारी और अपने जंगल-राज के नियम भी साथ-साथ लाये। सत्रहवीं शताब्दी में उन अंग्रज़ों ने यहाँ के जंगल देखे। यहाँ के सीधे-सादे लोगों पर जंगल-राज करते हुए शासन तो किया ही, प्रकृति का एक अद्भुत ख़ज़ाना भी उनके हाथ लग गया।

न्यू इंग्लैंड के निर्माता फ्रांसिस हिग्गिनसंस ने लिखा कि यह देश लकड़ी और वनों से पटा पड़ा है और यहाँ के वनों में तरह-तरह के रंगों के सर्प अजगर आदि हैं। सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से अठारहवीं शताब्दी तक साहित्यिकारों, कलाकारों और दर्शन शास्त्रियों को यहाँ लाकर दिखाया गया जिन्होंने यहाँ की सभ्यता के विकास में भरपूर योगदान दिया। तत्कालीन पेंटिंग्स बताती हैं कि तब के अमेरिकन्स सभ्यता के किस पड़ाव तक पहुँचे थे। पेंट-कोट और हैट पहने हुए, घोड़ों पर, ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर जाते गोरों के अनेक चित्र पुस्तक में हैं। लेखक जेफ़रसन ने तो जब पूरा देश घूमा तो लिखा कि यह देश सुन्दरता में दुनिया का स्वर्ग है और इतना बड़ा है कि समुद्र से समुद्र तक इसे व्यवस्थित करने में एक हज़ार साल और लगेंगे। यद्यपि उसका आकलन ग़लत सिद्ध हुआ। यह काम काफ़ी जल्दी कर लिया गया। जिस प्रकार भारत में मानसून के मौसम में ही लगातार पानी गिरता है, यहाँ ऐसा नहीं है। फ़्लोरिडा और सीएटल में तो वर्ष भर पानी गिरता रहता है। जबकि लॉस वेगस के आसपास मरुस्थल जैसे क्षेत्र में साल भर पानी नहीं गिरता।

ज़ाइऑन नेशनल पार्क में वर्जिन रिवर

ऊटा के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित यह सबसे पुराना और सर्वाधिक देखा जाने वाला नेशनल पार्क है जो एक सौ सैंतालिस हज़ार (१४७०००) एकड़ में फैला हुआ है। २२०० (बाइस सौ) फीट ऊँचाई तक एक ही पत्त्थर से प्राकृतिक रूप से निर्मित पहाड़ यहीं देखे जा सकते हैं और ये पहाड़ दसियों मील तक फैले हुए हैं। यहाँ एक नदी का नाम वर्जिन रिवर है जो पहाड़ों के ठीक बगल में बहती है जिसे देखने के लिये उसके समानांतर एक पगडंडी जाती है। यह पगडंडी इतनी कम चौड़ी है कि पद-यात्री यदि दोनों हाथों को फैलाकर चले तो दोनों सीमाएँ छूते हुए चलता रहता है। सप्ताहांत यानी (वीकेंड) पर यहाँ दर्शकों का रेला लगा रहता है। हज़ारों की संख्या मे सैलानी इस पार्क को देखने आते हैं। स्वाभाविक है नदी को भी देखने जाते हैं। पार्क की सबसे प्रभावी कोई वस्तु है तो वह एक टनल (गुफा) है, जो १.१ (एक दशमलव एक) मील लम्बी बनाई गयी है जो ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों को बीच-बीच में ब्लास्ट करके, कुरेदकर एक बड़ा गोल आकार देकर तैयार की गयी है, जिसमें से आराम से दो गाड़ियाँ आ-जा सकती हैं। एक जाने वाली और एक आने वाली। यद्यपि आवागमन को व्यवस्थित करने के लिए टनल के दोनों सिरों पर कुछ कर्मचारी मुस्तैदी से तैनात रहते हैं जो कारों को कभी लम्बे समय तक रोकते, कभी जाने देते हैं, आवागमन में कोई व्यवधान नहीं आने देते। यह टनल १९२७ में बननी शुरू हुई थी और १९३० में बनाकर तैयार हुई, और उन दिनों इस पर बीस लाख डॉलर का खर्च आया था। ज़ाइऑन केनियन की सुन्दरता की ख्याति पहली बार सन १९९३ में बढ़ी जिस वर्ष तीस लाख लोगों ने इसे देखा। बाईकर्स और ड्राइवर्स के कारण ज़ाइऑन केनियन की लोकप्रियता बहुत बढ़ी है क्योंकि वे इसके मनोरम दृश्यों को समेटने सिनावा के मंदिर (टेम्पल ऑफ़ सिनावा) तक जाते हैं। सिनावा उस क्षेत्र का कोई सर्वमान्य महापुरुष हुए हैं जो अंग्रज़ों के आने से पहले के हैं, जिनके नाम पर यह मंदिर बनाया गया है जो मात्र पत्त्थर की गुफा है, किन्तु उसकी मान्यता मंदिर जैसी है। इस पार्क में एक चट्टान का नाम (वीपिंग रॉक) सुबकती हुई चट्टान, है क्योंकि उसके ऊपरी हिस्से से थोड़ा-थोड़ा पानी झरता ही रहता है जो नीचे आकर वर्जिन रिवर में मिल जाता है। जब हम वर्जिन रिवर को देखने गए तब उसमें मटमैला पानी था, जिसके लिए शटल का उद्घोषक बार-बार कह रहा था की तीन दिन तक पानी एकदम पारदर्शी था किन्तु बरसात होने से कल से मटमैला हो गया है।

सिनावा का मंदिर (टेम्पल ऑफ़ सिनावा)

सर्दी के मौसम में यहाँ बर्फ गिरती है अतः सैलानियों की संख्या बहुत ही कम हो जाती है इसलिए उन के लिए छूट रहती है कि वे अंदर तक अपनी कारें ले जाएँ। उन दिनों शटल की व्यवस्था नहीं रहती। केवल एक बार प्रवेश द्वार पर टिकिट लेकर वे अपने वाहन से घूम सकते हैं। किन्तु गर्मी के मौसम में शनिवार रविवार को दर्शकों की बहुत बड़ी भीड़ उमड़ती है इसलिए प्रवेश पर पच्चीस डॉलर का टिकिट लेना पड़ता है और अपने वाहनों को नेशनल पार्क की सीमा से बाहर छोड़ना पड़ता है। यात्रियों को कोई असुविधा तो नहीं हो रही है, यह देखना रेंजरों का काम है, जो अनवरत सतर्कता से दौड़-धूप करते रहते हैं। गर्मी में यहाँ शटल की व्यवस्था रहती है, जो दो बड़ी-बड़ी बसों से जुड़ी होती है जिसमें यात्रियों को अनेक सुनिश्चित स्थानों पर, उनकी मंशानुसार छोड़ती या लेती चलती है। शटल जब खाली होती है तो सबसे पहले छोटे-छोटे बच्चे लिए पति-पत्नी बैठते हैं, बाद में वरिष्ठ नागरिक और सबसे बाद में युवाओं को प्रवेश दिया जाता है। संख्या में सौ दो सौ शटल तो होंगी जो थोड़ी-थोड़ी देर से चक्कर पूरा करती ही रहती हैं। शटल व्यवस्थित रूप से चल रही हैं या नहीं अथवा यात्रियों को कोई असुविधा तो नहीं हो रही है इस बात की पुष्टि करने के लिए रेंजर महिलाएँ या पुरुष अपनी अपनी कारों में बैठकर घूम-घूम कर निरीक्षण करते रहते हैं। शटल सभी यात्रियों की यात्रा मुफ़्त में कराती है यानी एक बार प्रवेश द्वार पर पच्चीस डॉलर दे दिए फिर कहीं से भी कहीं तक, किसी भी स्टॉप से चढ़ सकते हैं या किसी भी स्टॉप पर उतर सकते हैं। गर्मी के मौसम में सुबह आठ बजे शटल चलना शुरू होती हैं और अंतिम शटल रात्रि साढ़े नौ बजे तक यात्रियों को पार्क की सीमा से बाहर छोड़ती है। इस बीच कोई यात्री कितना भी भीतर घूमे कोई रोक-टोक नहीं। भीतर कुछ स्टॉप पर होटल, कैंटीन, खाने-पीने की भरपूर व्यवस्था रहती है। हर जगह मूत्रालय-शौचालय तथा पानी की अच्छी व्यवस्था देखी जा सकती है। पहले इसे ज़ाइऑन केनियन कहा जाता था। ३१ जुलाई १९०९ को इसे तत्कालीन राष्ट्रपति विलियम हॉवर्ड टेफ्ट द्वारा राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया और १९१९ में राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क)।

अंतिम दिन हमने जकूज़ी के गर्म पानी में दो तीन घंटे बैठकर भरपूर आनंद लिया क्योंकि उस रिसोर्ट के दो दिन के लिए किराये के रूप में ९०० डॉलर जो दिए थे!

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नोट- सुधि पाठक इस यात्रा संस्मरण को पढ़ते…

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