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डॉ. महेश परिमल

भोपाल, म.प्र.
जन्म: हर वर्ष का मानसून 
शिक्षा: एम.ए. हिंदी, भाषाविज्ञान, पीएच.डी. (भाषाविज्ञान)
मातृभाषा: गुजराती
भाषाज्ञान: गुजराती, हिंदी, अँग्रेज़ी, छत्तीसगढ़ी, बाँग्ला, पंजाबी
संप्रति: स्वतंत्र लेखन
अन्य: 
डॉ. महेश परिमल का नाम साहित्य और मीडिया जगत में जाना-पहचाना नाम है। समाचार पत्र-पत्रिकाओं में यह नाम यदा-कदा पढ़ने को मिल ही जाता है। छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी में जन्मे एक किशोर का जीवन संघर्ष युवावस्था में उसे एक लेखक बना देता है और फिर पत्रकारिता का ककहरा सीखते-सीखते वही लेखक एक समीक्षक के रूप में अपना स्थान बना लेता है। जी हाँ, डॉ. महेश परिमल मूलत: एक लेखक हैं, किंतु स्वभावत: हम उन्हें एक समीक्षक मान सकते हैं। जो व्यक्ति शब्द तो क्या अक्षर भी ग़लत लिखा गया हो, तो अपने विचारों को गति नहीं देता, पहले उसे ठीक करता है और उसके बाद उन्हें शब्द और फिर वाक्य में परिवर्तित करता है, ऐसा जुनूनी लेखक अनायास ही समीक्षक बन जाता है। ज़मीन से जुड़ा लेखन उनकी पहचान रहा है। वे कभी कोरी कल्पना में नहीं जीते और न ही चाहते हैं कि उनका पाठक वर्ग कल्पनाओं की नदी में गोता लगाते हुए आशा-निराशा के भँवर में उलझे। वे जैसे साधारण हैं, वैसी ही सादगी और सरलता के साथ ज़मीनी हक़ीक़त तो अपनी लेखनी में उतारते हैं और पाठक वर्ग को सच्चाई का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। भाषाविज्ञान में पीएच.डी. का गौरव प्राप्त कर वे लेखन क्षेत्र में सतत आगे बढ़ रहे हैं। "लिखो पाती प्यार भरी", "अनदेखा सच", "अरपा की गोद में" के बाद "मेरी-तेरी उसकी लोरी" उनकी चौथी कृति है। 

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