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मोहनदास नैमिशराय

दलित साहित्य को स्थापित करने और उसे शिखर तक ले जाने में अविस्मरणीय भूमिका निभाने वाले मोहनदास नैमिशराय का जन्म 5 सितम्बर 1949 को मेरठ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् कुछ समय वे मेरठ के एक कॉलेज में प्रवक्ता रहे। अपना पूरा जीवन दलित पत्रकारिता एवं साहित्य को समर्पित कर चुके नैमिशराय ने अनेक राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में दलितों से जुड़े मुद्दों और समस्याओं को उठाया। वे जितने निडर पत्रकार रहे, उतने ही बेबाक और प्रखर साहित्यकार भी। भाषायी तेवर उनके साहित्य को अलग पहचान देते हैं। वे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों और धार्मिक पाखण्डों पर बड़ी ही निर्दयता से प्रहार करते हैं। उनकी आत्मकथा अपने-अपने पिंजरे (पहला भाग), अपने-अपने पिंजरे (दूसरा भाग) तथा रंग कितने संग मेरे (तीसरा भाग) तीन खण्डों में प्रकाशित हुई है। उनके विशाल रचना-संसार में आवाजें, हमारा जवाब, दलित कहानियाँ (कहानी संग्रह); क्या मुझे खरीदोगे, मुक्तिपर्व, आज बाजार बंद है, झलकारी बाई, महानायक अम्बेडकर, जख्म हमारे, गया में एक अदद दलित (उपन्यास); अदालतनामा, हैलो कामरेड (नाटक); सफदर एक बयान, आग और आंदोलन (कविता-संग्रह), आदि शामिल हैं। दलित पत्रकारिता एक विमर्श (चार-भाग), दलित आंदोलन का इतिहास (चार भाग), हिन्दी दलित साहित्य, अन्य चर्चित कृतियाँ हैं। उनके दो दर्जन से अधिक रेडियो नाटक हिन्दी रेडियो नाटक में संकलित हैं। उन्होंने बच्चों के लिए भी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, झलकारी बाई आदि की संक्षिप्त जीवनियाँ लिखी। वे लगभग 6 वर्षों तक डॉ. अम्बेडकर प्रतिष्ठान (भारत सरकार) में सम्पादक रहे। कई वर्षों तक बयान पत्रिका का सफलता पूर्वक सम्पादन करने वाले नैमिशराय डॉ. अम्बेडकर स्मृति पुरस्कार 1993, वाणिज्य हिन्दी ग्रन्थ पुरस्कार 1995, डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार 1998, डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल मिशन पुरस्कार (कनाडा) 1998, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार 2006, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार-2015 से सम्मानित हो चुके है। अपने उत्कृष्ट सामाजिक एवं साहित्यिक योगदान के कारण डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर राष्ट्रीय सामाजिक विज्ञान संस्थान, महू (म.प्र.) द्वारा भी उन्हें 2010 में विशेष रूप से सम्मानित किया गया है। 
 (सम्पर्क सूत्र: 8860074922)

– सतीश खनगवाल

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