शिक्षा : एम. एस सी.(रसायन) हिन्दी संस्कृत विशारद ।
संप्रति : शा.उत्कृष्ठ उ.मा.शाला बाबई होशंगाबाद से 31-10-2005 कोप्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त।वर्तमान में साहित्य सृजन एवं सामाजिक कार्य में संलग्न ।
प्रकाशन एवं लेखनः साठ के दशक से लेखन प्रारंभ। धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, भारती, मधुमति, रंग-चकल्लस, इंगित, सरिता, मुक्ता, योजना, आरोग्य संदेश, एवं समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित, आकाशवाणी इंदौर भोपाल से नियमित काव्यपाठ।
संकलन:
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गाते चलें पढ़ाते चलें
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उजाले की कसम
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माटी चंदन है
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फागुन आनें वाला है प्रकाशनाधीन ।
सम्मानः वर्ष 1962 में अखिल रंग भारतीय काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कृत
लेखक की कृतियाँ
ग़ज़ल
- कहने लगे बच्चे कि
- आज कोई तो फैसला होगा
- ईमानदारी से चला
- उसी को कुछ कहते अपना बुतखाना है
- जब कभी मैं अपने अंदर देखता हूँ
- जैसा सोचा था जीवन आसान नहीं
- दुनियाँ में ईमान धरम को ढोना मुश्किल है
- दूर बस्ती से जितना घर होगा
- नया सबेरा
- नये पत्ते डाल पर आने लगे
- मछेरा ले के जाल आया है
- रोशनी देने इस ज़माने को
- हर चेहरे पर डर दिखता है
- हर दम मेरे पास रहा है
गीतिका
कविता
विडियो
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ऑडियो
उपलब्ध नहीं