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हिन्दू कॉलेज में प्रेमचंद जयंती पर प्रो. अपूर्वानंद का व्याख्यान

आवाज़ में भी रोशनी होती है – प्रो. अपूर्वानंद
हिंदू कॉलेज में प्रेमचंद जयंती पर वेबिनार

 

दिल्ली— "हम भी इस घृणा, नफ़रत, छोटेपन और ओछेपन से बाहर निकल आएँगे और हम उस सफ़र को जारी रख सकेंगे जो मनुष्यता का सच्चा सफ़र है।  किन्तु प्रेमचंद की बातों को याद रखें कि इंसान होने का भरपूर आनंद तभी ले पाएँगे जब यह आनंद समूचे समाज और समूह को मिले।" महान कथाकार प्रेमचंद की 141 जयंती के अवसर पर हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित ऑनलाइन वेबिनार में जाने-माने आलोचक और हिंदी साहित्य के आचार्य डॉ. अपूर्वानंद ने उक्त विचार व्यक्त किए। "प्रेमचंद को क्यों पढ़ें?" विषय पर प्रो अपूर्वानंद ने कहा कि प्रेमचंद पर बात करते हुए कुछ भी नया नहीं कहा जा सकता बल्कि सब दोहराया ही जाता है किंतु दोहराने का शिक्षा और साहित्य दोनों में ही बहुत महत्त्व  है। प्रेमचंद को पढ़ते हुए उनके विचार से शायद ही प्रेमचंद के साहित्य का कोई कोना है जो महादेवी वर्मा, जैनेंद्र, अज्ञेय, निराला, बेनीपुरी, दिनकर, नागार्जुन, भीष्म साहनी जैसे पुराने साहित्यकार व लेखकों से छूटा होगा। प्रेमचंद समस्याओं के कारण लेखक नहीं बने अपितु याद रखना चाहिए कि रचनाकार जब लिखता है तो वह दरअसल किसी राष्ट्रीय कर्त्तव्यवश या किसी सामाजिक सुधार के  कर्त्तव्यवश नहीं लिखता है बल्कि इसलिए लिखता है क्योंकि उसे लोगों में दिलचस्पी है, उसे आसपास की ज़िंदगी में लुत्फ़ आता है। प्रेमचंद को भी इस ज़िंदगी में अत्यधिक आनंद आता है और उनकी गहरी दिलचस्पी चलते-फिरते लोगों में है कि यह काम करते हुए क्या सोच रहे हैं? इसका दिल कैसे धड़क रहा है? उन लोगों के भाव-भंगिमाओं अंदाज़, मनोभावों में बहुत दिलचस्पी है। प्रेमचंद की साहित्य की परिभाषा के अनुसार  मनोभावों का चित्रण करने वाला ही लेखन साहित्य है। 

उन्होंने कहा कि गोदान केवल भारतीय किसान की त्रासदी नहीं बल्कि होरी, धनिया, गोविंदी, मालती, मिर्ज़ा साहब, राय साहब आदि तमाम लोगों के जीवन की कहानी है इसलिए केवल एक सूत्र देखना प्रेमचंद और गोदान दोनों के साथ अन्याय है। अपने मित्र डॉ. यशपाल की बात याद करते हुए हमें कहते हैं चलते समय लक्ष्य पर निगाह रखो पर रास्ता है जिस पर चलना है तो उसे पकड़कर मत रहो, रुक-रुक कर चलो, रास्ते का आनंद लो, आप सिर्फ़ अंतिम बिंदु लक्ष्य पर निगाह रखने की हड़बड़ी ना करें। यही उपन्यासकार की दृष्टि है जिसमें वे जीवन के विस्तार को उसकी विविधता को प्रस्तावित करता है। अतः सही कहा गया है प्रेमचंद उपन्यास पढ़ने वालों का एक समाज बनाते थे। 

प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि साहित्य की भाषा विद्वानों के बीच बनती है अर्थात्‌ जो भाषा के साथ अदब से पेश आते हैं ना कि सड़क किनारे बनती हैं। उस भाषा के लिए रचनाकार को अत्यधिक जतन करना होता है। महादेवी वर्मा भी प्रेमचंद की भाषा पर कहती हैं कि एक तरफ़ उनकी भाषा में जल है और दूसरी तरफ ज्वाला है। प्रेमचंद भाषा को जिस नज़रिए से गढ़ रहे हैं उस नज़रिए को ध्यान रखना चाहिए, वह भाषा में आनंद लेने योग्य है। प्रेमचंद के लेख "दास्तान ए आज़ाद" में भाषा का आनंद  देखा जा सकता है। 

प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि इंसान होना बहुत कठिन काम है; यह प्रेमचंद बार-बार अपने कहानियों-उपन्यासों से हमें याद दिलाते हैं। "पंच परमेश्वर" कहानी के अमर प्रश्न "क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात ना कहोगे?" के माध्यम से नैतिकता की शिक्षा देने का प्रयास करते हैं। प्रेमचंद का साहित्य धर्मनिरपेक्ष है, वे अपने लेखन में हिंदू-मुसलमान की बराबर सहारना एवं आलोचना करते हैं। प्रेमचंद की वैचारिकी और भाषा को समझाने के लिए प्रो. अपूर्वानंद ने अनेक सूत्र रखते हुए प्रेमचंद के संदर्भ में लिखे गए अनेक हिंदी साहित्यकारों के लेखों का उन्होंने अपने व्याख्यान में ज़िक्र किया। प्रश्नोत्तरी सत्र में विद्यार्थियों के जिज्ञासापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देते हुए प्रो. अपूर्वानंद ने कहा प्रत्येक साहित्य का यही उद्देश्य है कि वह मनुष्य को मनुष्य होने का एहसास दिला सके। प्रश्नोत्तरी सत्र का संयोजन विभाग के अध्यापक डॉ. नौशाद द्वारा किया गया।

इससे पहले हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर राय ने प्रो अपूर्वानंद का स्वागत और विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने प्रो. अपूर्वानंद की सद्य प्रकाशित पुस्तक "यह प्रेमचंद हैं" का उल्लेख कर बताया कि साधारण पाठकों को ध्यान में रखकर प्रेमचंद के महत्त्व की पुनर्स्थापना करने वाली यह पहली आलोचना पुस्तक है। विभाग के वरिष्ठ अध्यापक डॉ. विमलेन्दु तीर्थंकर ने प्रो अपूर्वानंद का परिचय दिया। हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने सभा के इतिहास और गतिविधियों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि नयी पीढ़ी को साहित्य की विरासत से जोड़कर संवेदनशील पाठक और नागरिक बनाना ही सभा का उद्देश्य है। आयोजन में विभाग के डॉ. अभय रंजन, डॉ. हरींद्र कुमार, डॉ. रचना सिंह सहित दूर-दराज़ के अनेक लेखक-पाठक और विद्यार्थी-शोधार्थी भी शामिल हुए। वेबिनार का संयोजन डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया। 

— प्रस्तुति
दिशा ग्रोवर
हिंदी साहित्य सभा, हिंदूकॉलेज,
दिल्ली विश्विद्यालय, दिल्ली- 110007

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