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’केसरिया फागुन’: हिन्दी राइटर्स गिल्ड की पुलवामा शहीदों को रचनात्मक श्रद्धांजलि

हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने ९ मार्च २०१९ को ब्रैमप्टन की स्प्रिंगडेल शाखा लाइब्रेरी में दोपहर १.३० से ४.३० बजे एक विशिष्ट कार्यक्रम ’केसरिया फागुन’ आयोजित करके पुलवामा के शहीदों को रचनात्मक श्रद्धांजलि दी। 

भीषण शीत और हवा के बाद भी लगभग चालीस लोगों के बीच यह विशिष्ट कार्यक्रम समय पर आरंभ हुआ। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीमती शैलजा सक्सेना ने किया। उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए सभी श्रीताओं से १ मिनट का मौन रखने का आग्रह किया। भारत में उत्पन्न कठिन स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ प्रश्न युद्ध का नहीं बल्कि आतंक को समाप्त करने का है क्योंकि हमारे वीर लड़ते हुए शहीद नहीं हुए अपितु षड़यंत्र का शिकार होकर शहीद हुए हैं। ऐसे वातावरण में बात युद्ध और शांति की नहीं, आतंक समाप्त करने की होनी चाहिये और इस कार्य में लेखक अपने सामाजिक दायित्त्व को समझते हुए महती भूमिका निभा सकता है। शैलजा जी ने सर्वप्रथम श्रीमती आशा बर्मन को मंच पर आमंत्रित किय। आशा जी ने प्रदीप जी के एक सुप्रसिद्ध गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों” गाकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और यह भी कहा कि कई दशक प्रवास में रहने पर भी एक भारतीय सदा स्वदेश से जुड़ा रहता है। उनकी इस भावपूर्ण प्रस्तुति ने सभी की आँखें नम कर 

इसके पश्चात् डॉ. जगमोहन सिंह सांगाजी को  मंच पर आमंत्रित किया गया। उन्होंने कहा कि इतने समय से हम इतने युद्धों के परिणाम देखने के बावजूद भी युद्ध कर रहे हैं। शायद हम अभी तक अच्छे इंसान नहीं बन सके। उन्होंने अपनी कविता में एक अच्छा इंसान बनने का सन्देश देते हुए कहा कि सभी अच्छा बनने की कोशिश करें तो ही संसार बेहतर हो सकता है।

निर्मल सिद्धू जी ने एक अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना सुनाई, "हम शहीदों की शहादत को न भुला पायेंगे”। इसके बाद श्री इकबाल बरार जी ने अपने मधुर स्वर में देशभक्ति का गीत ’ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन’ को गाकर सुनाया।

इसके पश्चात श्री बालकृष्ण जी ने कविता पाठ के साथ साथ युद्ध का एक अत्यंत रोचक समाधान प्रस्तुत किया। उनके अनुसार यदि वैज्ञानिक परमाणु बम के स्थान पर एक ऐसा ‘शांति बम’ निर्मित कर सकें जिसके डालने से सबके मन में शांति हो जाए तो संभवत: विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। तदुपरांत श्री सतीश सेठी जी ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए युद्ध बँदी वीरों की स्थिति पर अपनी मार्मिक कविता सुनाई। उनकी कविता ने यह सोचने पर बाध्य किया कि शहीदों को तो हम सम्मानित करते हैं पर जो वीर शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाएँ, आघात और अंग-भंग की कठोर स्थिति को झेलते हुए दुश्मनों के कब्ज़े में आ जाते हैं, उनके और उनके परिवार को हम भूल जाते हैं।

दीपक राज़दान जी ने सभा में युद्ध को स्थिति के अनुसार आवश्यक बताते हुए कहा कि युद्ध चाहें जितना भी विध्वंसात्मक हो पर कभी-कभी आत्मरक्षा के लिए आवश्यक भी हो जाता है इसीलिए श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया था।

श्रीमती सीमा बागला प्रथम बार मासिक गोष्ठी में आयीं थीं, अपनी सुन्दर कविता में आवश्यकतानुसार युद्ध की भेरी बजाने का आह्वान करते हुए उन्होंने सन्देश दिया कि समय आ गया है कि एकबार फिर से अर्जुन गांडीव उठायें। इसके बाद श्रीमती आशा मिश्रा ने प्रसादजी का उद्बोधन गीत ’हिमाद्री तुंग श्रृँग से’ गाकर प्रस्तुत किया। 

इसके पश्चात श्री राज माहेश्वरी ने भारतीय राजनीति के ऐतिहासिक गुजराल सिद्धांतों की चर्चा कर भारत और उसके पड़ोसी देशों के संबंधों की चर्चा की।

श्री नरेन्द्र ग्रोवर ने एक अत्यंत मार्मिक रचना पढ़ी जिसका भाव था कि शहीदों के जीवन के कष्टों को शब्दों में कैसे बाँधू? उन्होंने सही ही कहा कि हर शब्द और श्रद्धाँजलि शहीदों की वीरता और त्याग के सामने अपूर्ण है।

तदुपरांत पूनम चन्द्र ‘मनु’ ने शहीदों के जीवन की आहुति को व्यर्थ न जाने देने की बात करते हुए वीर रस की एक अत्यंत प्रभावशाली रचना सुनाईं; “चिंघाड़ो कि तुम भारत हो, जब तक शत्रु न मिट जाए ।
भूल जाओ तुम बुद्ध के वंशज हो, भूल जाओ तुम बुद्ध के वंशज हो
शिव बन कर ताण्डव करो…रणचण्डी बन रक्तपात करो ...”

श्रीमती कृष्णा जी अपनी क्षणिकाएँ सुनाकर सबको मुग्ध कर दिया।

अंत में सुश्री अरूज राजपूत जी ने शहीदों को नमन करते हुए इन कठिन परिस्थितियों में शांति का आह्वान किया। वे यू. एन. ओ. में भी ’पीस डेलिगेशन’ के सदस्य के रूप में जा चुकी हैं। उन्होंने अपनी कविता में "किनारे-किनारे अमन के पौधे लगाने" की बात की। अरूज जी इस गोष्ठी की अंतिम वक्ता थीं। 

कार्यक्रम का आरम्भ सभी अतिथियों का स्वागत श्री अरुण कुमार बर्मन तथा श्रीमती आशा बर्मन द्वारा लाए गए स्वादिष्ट जलपान और दीपक राज़दान द्वारा लाए गए गर्म कशमीरी कहवा द्वारा किया गया था। भावनाओं और विचारों की संतुलित रचनात्मक धारा के बीच डॉ. शैलजा सक्सेना ने सफल संचालन करते समय बीच-बीच में युद्ध और शांति के विभिन्न पहलुओं पर हिंदी के वरिष्ठ कवियों की रचनाओं के उदाहरण भी दिये जैसे दिनकर, नरेश मेहता इत्यादि जिससे उनके संचालन ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। इस प्रकार  हिन्दी राइटर्स गिल्ड द्वारा शहीदों को एक अत्यंत भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी।

-आशा बर्मन

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