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'पर्यावरण' विषयक हाइकु संगोष्ठी

'हाइकु गंगा' व्हाट्सएप समूह के तत्त्वावधान में दिनांक 27 जून 2021  को आज की ज्वलंत समस्या 'पर्यावरण' विषय पर आनॅलाइन हाइकु संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी  पर्यावरण के विविध पक्षों यथा – जल संरक्षण, जल शुद्धिकरण, वायु-प्रदूषण  से बचाव, ध्वनि-प्रदूषण की समस्या व समाधान तथा अग्नि व पृथ्वी की महत्ता पर केन्द्रित  थी। देश के प्रसिद्ध  हाइकुकारों ने न केवल दूषित होते पर्यावरण पर चिंता व्यक्त की बल्कि समाधान भी प्रस्तुत किये। प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति होने के कारण तथा विवेकशील प्राणी होने के नाते मनुष्य ही पर्यावरण की शुद्धता एवं प्रकृति संरक्षण पर चिंतन करते हुए निदान खोज सकता है। कटु सच्चाई यह भी है कि मनुष्य ने ही पर्यावरण को सबसे अधिक नुक़्सान पहुँचाया है, इसलिए यह मनुष्य का दायित्त्व भी है कि वह पर्यावरण को दूषित होने से बचाये। इन्हीं विचारों के आलोक में डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने संगोष्ठी का संयोजन किया।

माँ वीणा पाणि के श्री चरणों में नमन करते हुए श्री निहाल चन्द्र शिवहरे जी ने संगोष्ठी के शुभारम्भ में सभी का आह्वान किया कि हम सब प्रतिवर्ष एक नीम का पेड़ लगायें। वास्तव में हमारी छोटी-छोटी कोशिशें एकाकार होकर संपूर्ण समाज व मानवता के लिए बड़ी हितकारी हो सकती हैं। 

सर्वप्रथम मुख्य अतिथि डॉ. सुषमा सिंह जी ने अपने  उद्बोधन में कहा, "पर्यावरण असंतुलन प्राकृतिक आपदाओं का कारण है, जब ये विध्वंसक रूप  दिखाते हैं तब मनुष्य के वश में कुछ नहीं रहता। समय रहते हमें सचेत रहने की आवश्यकता है।" 

विशिष्ट अतिथि इन्दिरा किसलय जी ने अपने महत्त्वपूर्ण वक्तव्य मे कहा, "पर्यावरण की क़ीमत पर हम विकास की अंधी सुरंग में जा रहे हैं जो विनाश के मुहाने पर ख़त्म होती है। हमें चेतना होगा अन्यथा प्रकृति हमें कभी माफ़ नहीं करेगी। 'नैसर्गिक जीवन शैली’ ही एकमात्र विकल्प है।" दूसरी विशिष्ट अतिथि पुष्पा सिंघी जी ने अति महात्त्वाकांक्षा तथा जागरुकता के अभाव को पर्यावरण प्रदूषण का कारण माना। 

अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात हाइकु पाठ की शृंखला में सर्वप्रथम अंजू निगम  जी ने हाइकु प्रस्तुत किये। उन्होंने अपने हाइकु में  वनों के कटने से जल-प्लावन की समस्या को रेखांकित करते हुए सावधान किया– कटे जंगल/बढ़े जल प्लावन/ नहीं मंगल। डॉ. नीना छिब्बर जी ने पानी, धरा व जंगल को त्रिदेव की उपाधि प्रदान करते हुए इनके संरक्षण पर बल दिया– पर्यावरण/पानी, धरा, जंगल/बने त्रिदेव। डॉ. ए.पी. शाक्य जी ने मानव की अतिभौतिकतावादी प्रवृत्ति के कारण बढ़ते प्रदूषण  की समस्या को उठाते हुए समाधान भी प्रस्तुत किया– ये प्रदूषण/बन जाता गरल/बनें सरल। डॉ. सुभाषिनी शर्मा जी ने जल संरक्षण पर बल देते हुए वृक्षारोपण का महत्त्व बताया– बो दीं उम्मीदें/आशा के आँगन में/ साँसें उगेंगी। डॉ. सुरंगमा यादव ने मानव की दोहरी मानसिकता पर व्यंग्य किया– ए.सी. में बैठ/प्रकृति प्रेम पर/ लिखते लेख। डॉ. कल्पना दुबे जी ने सचेत किया कि जल व पृथ्वी से ही हमारा अस्तित्व है– जल-जमीन/बचाया अगर तो/रहेंगे हम। डॉ. सुषमा सिंह जी ने भी आगाह किया, यदि पर्यावरण की शुद्धता पर अभी भी हमने ध्यान नहीं दिया तो प्रलय अवश्यंभावी है– एक प्रलय /खड़ी है मुँह बाए/हर दिशा में। कार्यक्रम की संयोजिका व हाइकु मर्मज्ञ डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने सुंदर भाव प्रधान हाइकु प्रस्तुत किये। विवेकशील प्राणी मानव के द्वारा पर्यावरण प्रदूषित किया जाना खेद की बात है। वे कहती हैं– नर प्रबुद्ध/फिर भी कर देता/जग अशुद्ध। बढ़ते प्रदूषण के कारण मनुष्य नाना बीमारियों से ग्रसित हो रहा है। हरे-भरे वनों को काटकर हम कंक्रीट के वन उगाते जा रहे हैं, इसी संदर्भ में पुष्पा सिंघी जी ने कहा– कंक्रीट वन/विषैला पानी-हवा/मेज़ पे दवा। इन्दिरा किसलय जी मानव की अति महत्त्वाकांक्षा पर व्यंग्य करते कहती हैं– चाँद पे बस्ती/बसा लेना बाद में/धरा बचा लो। ध्वनि प्रदूषण भी आज एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। वर्षा अग्रवाल जी ने सत्य ही कहा– ध्वनि प्रदूषण/श्रवण शक्ति चोर/हैं चहुँओर। बढ़े वाहन तथा चिमनियों का धुआँ हवा में ज़हर घोल रहे हैं। हम व्यक्तिगत प्रयासों से इसमें कमी ला सकते हैं। साधना वेद जी ने इसीलिए कहा– दोस्ती निभाएँ/शाला या कार्यालय/साथ में जाएँ। डॉ. सरस दरबारी जी ने देश में लाकॅडाउन से पूर्व तथा लाकॅडाउन की अवधि में पर्यावरण की स्थिति का आंकलन प्रस्तुत किया– उज्ज्वल नभ/चिमनियाँ सुषुप्त/ वायु है शुद्ध। प्रतिमा प्रधान जी ने भावी पीढ़ी के लिए चिंता व्यक्त की– हरे ख़तम/रंग बचे हैं काले/बच्चों खातिर।

हाइकु पाठ को अल्प विराम देते हुए  कार्यक्रम के अध्यक्ष  डॉ. शैलेष गुप्त वीर जी का उदबोधन सुनने का अवसर मिला। उन्होंने कहा, "पर्यावरण हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण और प्रकृति के प्रत्येक कण में उपस्थित है। हमें इसके महत्त्व को समझना होगा। पर्यावरण के प्रति मनुष्य आदिकाल से ही चेतनायुक्त था। यही कारण है कि मनुष्य ने जल, अग्नि, पवन, पृथ्वी, अन्न आदि सभी में देवत्व के दर्शन किये और उनकी पूजा की।" उद्बोधन के पश्चात अपने हाइकु के माध्‍यम से उन्होंने संदेश दिया– जल के साथ/जिये कल की पीढ़ी/रोप दो पौधे। निहाल चन्द्र शिवहरे जी ने ओज़ोन पर्त के क्षरण पर चिंता व्यक्त की– गहनतम/चिमनियों का धुआँ/ओज़ोन पर्त।

संगोष्ठी की समापन बेला में डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया तथा पर्यावरण संरक्षण का संकल्प भी दिलाया।

प्रस्तुति: डॉ. सुरंगमा यादव 

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