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तेजेन्द्र शर्मा के कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ का लोकार्पण नेहरू सेन्टर लंदन के मंच से...

• कथा यू.के. संवाददाता


भारतीय उच्चायोग लंदन, नेहरू सेन्टर लंदन एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने एक साझे कार्यक्रम में तेजेन्द्र शर्मा के नवीनतम कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ के लोकार्पण समारोह का आयोजन किया। लोकार्पण समारोह ज़ूम पर आयोजित किया और लाइव स्ट्रीम फ़ेसबुक, ट्विटर एवं यू-ट्यूब पर दिखाई गयी। भारी संख्या में दर्शकों ने इस कार्यक्रम का लुत्फ़ उठाया। नेहरू सेन्टर के उप-निदेशक श्री बृजकुमार गुहारे ने सभी प्रतिभागियों, एवं फ़ेसबुक, ट्विटर व यू-ट्यूब पर श्रोताओं का स्वागत किया।

लोकार्पण करते हुए नेहरू सेंटर के निदेशक एवं अंग्रेज़ी के लोकप्रिय लेखक श्री अमीश त्रिपाठी ने कहा  कि कोरोना ने जहाँ एक ओर डर का माहौल पैदा कर दिया है वहीं तकनीक ने हमें ऐसे अवसर प्रदान किये हैं कि हम अलग-अलग देशों में रहते हुए भी एक मंच पर इकट्ठे हो कर एक दूसरे से संवाद कर पा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा,  “भारतीय सभ्यता भी नदियों के तट पर शुरू हुई थी। ठीक वैसे ही इंग्लैण्ड की सभ्यता का विकास भी टेम्स नदी के तट से हुआ होगा। हमारे लिये यह गर्व का विषय है कि तेजेन्द्र शर्मा जैसे वरिष्ठ कवि ने अपने नवीनतम कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ के लोकार्पण के लिये नेहरू सेन्टर के मंच को चुना। मैं आपको बधाई देता हूँ और कामना करता हूँ कि संग्रह को पाठक हाथों हाथ लें।” 

भारतीय उच्चायोग के मंत्री समन्वय श्री मनमीत सिंह नारंग ने तेजेन्द्र शर्मा जी को बधाई देते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि, “तेजेन्द्र शर्मा के लेखन में गहराई है, संवेदनाएँ हैं और उनकी रचनाएँ हृदयस्पर्शी होती हैं। उन्होंने अप्रवासी हिन्दी साहित्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा रखा है।” 

वरिष्ठ साहित्यकार एवं काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी के प्रचार प्रसार और लेखन के लिये प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा की निजी ज़िन्दगी, उनका अपनी माँ एवं बहनों के प्रति स्नेह और दिनचर्या की चर्चा करते हुए तेजन्द्र जी के लेखन को रेखांकित किया। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा की एक ग़ज़ल का पाठ भी किया – “बहुत से गीत ख़्यालों में सो रहे थे मेरे / तुम्हारे आने से जागे हैं कसमसाए हैं / जो नग़में आजतक मैं गुनगुना न पाया था / तुम्हारी बज़्म में ख़ातिर तुम्हारी गाए हैं।”

ब्रिटिश सांसद श्री विरेन्द्र शर्मा ने भावुक स्वर में कहा, “तेजेन्द्र मेरे छोटे भाई हैं। इस बेहतरीन कविता संग्रह के लिये मैं उसे बधाई देता हूँ। साहित्यकार, कवि समाज को एक नयी दिशा देते हैं। यदि उनकी सोच अच्छी न हो तो समाज को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। तेजेन्द्र का साहित्य इसका विशेष उदाहरण है। तेजेन्द्र की सोच सकारात्मक है, भाषा सरल है और दिल तक पहुँचती है। वे एक अच्छे दिल के इन्सान हैं। तेजेन्द्र अपने लेखन के माध्यम से इस मुल्क़ में भारत और ब्रिटेन के समुदायों में  निकटता पैदा करने का प्रयास करते हैं। मैं उन्हें इस मुहिम में शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।”

ग़ाज़ियाबाद से युवा कवयित्री नंदिनी श्रीवास्तव ने तेजेन्द्र शर्मा की कविता टेम्स का पानी का पाठ करने से पहले कहा, “यह मेरे जीवन का पहला काव्य संग्रह है जिसमें साहित्य के सभी नौ रस मौजूद हैं। हर प्रकार की कविता इस संकलन में शामिल हैं।” कविता सुनाते हुए उन्होंने दो शेरों पर ख़ास ध्यान देते हुए पढ़ा - “बाज़ार संस्कृति में नदियां नदियां ही रह जाती हैं / बनती हैं व्यापार का माध्यमत, माँ नहीं बन पाती हैं। ... जी लगाने के कई साधन हैं टेम्स नदी के आसपास / गंगा मैया में जी लगाता है, हमारा अपना विश्वास।”

वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने अपने वक्तव्य में तेजेन्द्र की कुछ कविताओं पर विशेष ध्यान दिलवाया। उन्होंने सबसे पहले ‘सुबह का अख़बार’ कविता का पाठ किया और कहा, “सच्ची प्रेम कविता यह कविता है। इस में प्रेम भी है और कविता भी है। यह कोई फ़ॉर्मूलाबद्ध तेरी बाँहों में मर जाऊँ टाइप कविता नहीं है। इस संकलन की विशेषता यह है कि इसमें बहुत सी कोटेशन्स पाठक को मिलती हैं। इस संग्रह की कविताओं में बहुत गहरा काँटेण्ट है। जैसे ‘मकड़ी बुन रही है जाल’ एक अद्भुत अंतर्राष्ट्रीय कविता है। संग्रह की हर कविता संप्रेषित होती है आपको स्पर्श करती है। हर कविता कोई न कोई संदेश दे कर जाती है, दिल पर असर करती है। कर्मभूमि का पर्स्पेक्टिव बिल्कुल हट कर है। एक कविता को मैं संग्रह की साहसिक कविता मानूँगा जिसमें वे इंग्लैण्ड को अपना देश बताते हैं। ‘मैं कवि हूँ इस देश का’ एक अलग क़िस्म की कविता है।” उन्होंने बात जारी रखते हुए कहा कि यदि मेरा बस चले तो मैं कविता ‘हम ऐसे क्यों हो जाते हैं’ को तुरन्त पाठ्यक्रम में लगवा दूँ। यह कविता एक पूरा जीवन दर्शन है। इस संग्रह में कहन भी नया है, विचार भी और अंदाज़ भी। तेजेन्द्र जी ने संग्रह की भूमिका भी शानदार लिखी है। 

मेरठ से शामिल हुए कवि मनोज कुमार मनोज ने कविता संग्रह ‘टेम्स के तट से’ पर बात करते हुए कहा, “कविता की जितनी भी विधाएँ हैं उन सभी का इस्तेमाल तेजेन्द्र भाई ने अपने संग्रह में किया है और अधिकार से किया है। कवि भी पक्षियों औऱ बादलों की तरह सीमा में नहीं बाँधे जा सकते। रचनाकार अपने साथ दूसरे देशों में अपनी संस्कृति की ख़ुशबू ले जाते हैं। और भाई तेजेन्द्र शर्मा ने यह काम बख़ूबी किया है।” मनोज कुमार मनोज ने तेजेन्द्र शर्मा के कुछ शेर सस्वर गा कर सुनाए – “डरा डरा सा मैं रातों को जाग जाता हूँ / नींद आती है मगर सो नहीं मैं पाता हूँ। सवाल यह नहीं ये शहर क्यों डराता है / सवाल ये है कि मैं क्यों भटक सा जाता हूँ। जो लोग गाँव की मिट्टी को यहां लाए हैं / बदन में उनके अपनेपन की महक पाता हूँ।”

भारतीय उच्चायोग के हिन्दी अताशे श्री तरुण कुमार तकनीकी कारणों से कार्यक्रम से कुछ विलम्ब से जुड़ पाए। उनका मानना है कि यह काव्य संग्रह तेजेन्द्र जी के विचारों, भावों और संवेदनाओं की संपूर्णता में अभिव्यक्ति है। उनकी रचनाएँ जीवन और यथार्थ से जुड़ी होती हैं। इस संग्रह में लगभग 150 से अधिक कविताएँ हैं जो जीवन के हर रंग को छूती हैं। शायद ही कोई ऐसा विषय होगा जो इस संग्रह में समाहित न हुआ हो। संग्रह की शीर्षक कविता टेम्स का पानी केवल दो नदियों की तुलना नहीं है। दो संस्कृतियों के बीच की भी तुलना है। भौतिकता और आध्यात्म का द्वन्द्व भी है। तेजेन्द्र जी के अनुसार गँगा माँ है और टेम्स केवल बहता पानी। तेजेन्द्र जी एक संवेदनशील रचनाकार हैं और किसी विचारधारा के दबाव में नहीं लिखते हैं। उनकी कविताओं का कैनवस काफ़ी विशाल है। उनकी चिन्ता और चिन्तन में केवल मानव समाज ही नहीं अपितु संपूर्ण चराचर जगत है। गिलहरी कविता इसका जीवंत उदाहरण है। उनकी कविताओं में  जहाँ एक ओर प्रवास का जीवन और यहां के संघर्ष हैं तो वहीं अपने देश की सुनहरी यादें भी हैं। 

तेजेन्द्र शर्मा की सुपुत्री आर्या शर्मा ने मुंबई से कार्यक्रम में शिरकत करते हुए कहा कि मेरे पापा एक मल्टी-फ़ेसेटिड इन्सान है जिनके पास शब्दों का ख़ज़ाना है बेहतरीन यादें हैं। वे अपने अर्थपूर्ण शब्दों से अपनी रचनाओं को रचते हैं। मेरे पापा अपनी बात बहुत सरल ढंग से रखते हैं जो सब तक पहुँच जाती है। पापा हर चीज़ को बहुत सुलझे हुये ढंग से प्रस्तुत करते हैं। मैं तो परवीन शाकिर और जावेद अख़्तर की ग़ज़लों की किताबें पढ़ती हूँ अब यह संकलन मेरा प्रिय संकलन बन गया है। आर्या ने अपने पापा की कविता – ‘क्यूं आसानी से समझ आ जाते हो’ का पाठ किया। किसी भी कवि या लेखक का आज की युवा पीढ़ी से जुड़ने के लिये सरल भाषा का इस्तेमाल करना ज़रूरी है। यह सोशल मीडिया का ज़माना है। इस संकलन इतनी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं जिन्हें हम इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर कैप्शन के तौर पर लिख सकते हैं। 

कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ के प्रकाशक जितेन्द्र पात्रो (प्रलेक प्रकाशन, मुंबई) ने सभी उपस्थित हस्तियों का स्वागत करते हुए तेजेन्द्र शर्मा से अपने कुछ संस्मरण साझा करते हुए कहा, “मेरी तेजेन्द्र शर्मा जी से पहली मुलाक़ात मुंबई विश्वविद्यालय में डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय के कार्यालय में हुई। और मैं बाबू जी (तेजेन्द्र शर्मा) की पर्सनेलिटी का कायल हो गया। मैं जब उन्हें अपनी कार में छोड़ने गया तो बस आधे घन्टे के सफ़र में ही हमारे बीच एक रिश्ता कायम हो गया। उम्र का कोई फ़ासला नहीं महसूस हो रहा था। लग रहा था जैसे किसी दोस्त के साथ गुफ़्तगू चल रही है। तेजेन्द्र जी एक ऐसे प्रवासी लेखक हैं जो यूथ को अपने साथ लेकर चलते हैं। बाबूजी में एक सम्मोहन क्षमता है।"

तेजेन्द्र शर्मा ने पूरे पैनल का धन्यवाद करते हुए फ़ेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर उपस्थित मित्रों और श्रोताओं का भी धन्यवाद किया। उन्होंने अपनी लेखन यात्रा को संक्षिप्त शब्दों में साझा किया। उनका कहना था कि वे तब तक कुछ नहीं लिखते जब तक उनके पास लिखने को कुछ नया न हो। उन्होंने ब्रिटेन में एक मुहिम चलाई थी कि यहाँ कि कवि कथाकार नॉस्टेलजिया भूल कर अपने आसपास के समाज और स्थितियों पर अपनी क़लम चलाएँ। उन्होंने अपनी एक कविता सुनाई भीः “जो तुम न मानो मुझे अपना, हक़ तुम्हारा है / यहां जो आ गया इक बार वो हमारा है।”

राहुल व्यास ने अपने कुशल संचालन के दौरान अपनी छोटी छोटी टिप्पणियों के माध्यम से तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व और कविताओं पर रौशनी डाली। उनका कहना था, आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य / मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!! और जब एक व्यक्ति कहानीकार के साथ साथ उतना ही अच्छा और शब्द-समर्थ कवि भी तो यह सौभाग्य स्वतः दोगुना हो जाता है। तेजेन्द्र शर्मा जी का जो साहित्य है  या  उनकी जो लेखनी है ,इतने बड़े साहित्यकार होने के बावजूद, वो बहुत सरलता और सहजता से लिखते हैं। तेजेन्द्र जी ने न सिर्फ़ बड़े-बड़े साहित्यकारों और विद्वानों को अपने लेखन से प्रभावित किया है, बल्कि आम  इंसान को भी हिंदी से और साहित्य से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। हम सभी के लिए एक बड़े ही गर्व की बात है कि हमारे पास एक ऐसे महान साहित्यकार मौजूद हैं ,जो एक आम इंसान/भारतीय को साहित्य और हिंदी से जोड़ने में एक कड़ी का काम करते हैं। तेजेन्द्र जी की कविताएँ बेहतरीन तो हैं ही मगर जब  आर्या जी ने इन कविताओं को अपनी आवाज़ दी तो यह कविताएँ और भी सुंदर बन पड़ी।

नेहरू सेन्टर के उपनिदेशक श्री बृज कुमार गुहारे ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए तेजेन्द्र शर्मा जी का धन्यवाद किया कि उन्होंने अपनी पुस्तक के लोकार्पण के लिये नेहरू सेन्टर के मंच का इस्तेमाल किया। 

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