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विश्वरंग – भोपाल में भव्य और सार्थक महोत्सव

4 से 10 नवंबर के बीच भोपाल में टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव का भव्यतम आयोजन हुआ। हिंदी को केंद्र में रख कर सात दिन तक चले इस 'विश्वरंग'  में तीस देशों के पाँच सौ से अधिक रचनाकारों ने शामिल हो कर एक ऐसा वैश्विक उत्सव रचा जो एशिया के अब तक के सबसे बड़े साहित्य और संस्कृति के आयोजन के रूप में जाना जाएगा।

आईसेक्ट समूह के पाँच विश्वविद्यालयों के इस संयुक्त उपक्रम को भोपाल के रवींद्रनाथ टैगोर विश्व विद्यालय के परिसर, रवींद्र भवन, भारत भवन, स्वराज भवन और मिंटो हाल में साकार होते देखना एक अद्भूत अनुभव रहा। भारतीय भाषाओं और बोलियों, फिल्मों, नाट्य संगीत, बाल और वैज्ञानिक लेखन, प्रवासी साहित्य, विश्व कविता और थर्ड जेंडर के कविता सत्रों जैसे विभिन्न विषयों पर लगभग साठ विशिष्ठ सत्रों ने विचार-विमर्श को सार्थक दिशा दी। 

टैगोर की सांस्कृतिक विरासत के पुनरावलोकन के बहाने कबीर, फैज़, इक़बाल, गाँधी, चित्रकला, सरोद, वायलिन, शहनाई वादन, गुंदेचा बंधुओं के ऐतिहासिक ध्रुपद गायन एवं लोक नृत्यों ने इस समावेशी उत्सव को साहित्य के साथ एकरस कर दिया। इस सुदीर्घ महोत्सव की यह विशेषता रही कि इसके प्रारंभिक आयोजनों को स्कूलों में आयोजित कर व्यापक स्तर पर स्कूलों को जोड़ा गया। लगभग पचास शहरों में पुस्तक यात्राएँ आयोजित कर हज़ारों युवा साहित्य प्रेमियों और स्थानीय रचनाकारों को इस उत्सव से जोड़ना महत्वपूर्ण रहा। हिंदी शिक्षण में अग्रणी विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों, वहाँ के विद्यार्थियों व प्रवासी भारतीय लेखकों को इस महोत्सव से जोड़ कर आयोजकों ने विश्व रंग को अनूठी पहचान दी। बद्रवास्ती के संचालन में चले उर्दू के मुशायरे ने प्रस्तुति और स्तर के नए कीर्तिमान बनाए। 

हिंदी कथा के पिछले दो सौ वर्षों की महत्वपूर्ण छह सौ कहानियों को अठारह खंडों में प्रकाशित करने के लिए वनमाली सृजन पीठ के डॉ. मुकेश वर्मा का यह भगीरथ कार्य हिंदी भाषा के लिए स्मरणीय बन गया। प्रमुख सत्रों में डॉ. कमल किशोर गोयनका, नंदकिशोर आचार्य, मधुसूदन आनंद, विनोद तिवारी, ज्ञान चतुर्वेदी, सतीश जायसवाल और कई लब्ध प्रतिष्ठत लेखकों की श्रोताओं के बीच उपस्थिति कार्यक्रमों को प्रतिष्ठा दे रही थी। श्री जवाहर कर्नावट की विदेशों से प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के संकलन, दुष्यंत पांडुलिपि संग्रहालय और निर्मेश ठाकर के कैरिकेचर, गर्भनाल पत्रिका द्वारा हिंदी लिपि तथा विदेशों मे हिंदी प्रसार के लिए किए कार्यों की प्रस्तुतियाँ विश्व रंग के आकर्षण का केंद्र बनीं।

आईसेक्ट समूह के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे, लीलाधर मंडलोई और नेपथ्य में काम करने वाले आत्माराम शर्मा, अरविंद चतुर्वेदी तथा कई समर्पित कार्यकर्ताओं को यह उत्सव उनकी अप्रतिम सफलता की याद दिलाता रहेगा। 

 (प्रस्तुति – धर्मपाल महेंद्र जैन, टोरंटो)
 

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