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कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रिय मित्रो,

साहित्य कुञ्ज का दिसम्बर का प्रथम अंक आपके समक्ष है। लगभग २०२० का वर्ष पूरा हो गया। यह एक ऐसा वर्ष है जो कभी भी विस्मृत नहीं होगा। कोरोना की महामारी के प्रकोप से कोई भी अछूता नहीं रहा। चाहे कोई समृद्ध विकसित देश था या कोई तीसरी चौथी दुनिया का दिन-प्रतिदिन जीवित रहने के लिए संघर्षरत देश या समाज।  इस महामारी ने मानव के त्रिगुण स्पष्ट कर दिए। सत्व से लेकर रज से तमस तक। हर देश के राजनैतिक दलों ने जम कर मृत्यु की राजनीति खेली। हर देश के विपक्ष ने हर संभव प्रयत्न किया कि आमजन पीड़ित हो ताकि उसकी वेदना को भुना कर उनका दल इस विपदा में नायक बन कर उभरे।

महामारी से प्रभावित समाज में अगर राजनीति कृष्णपक्ष है तो साहित्य शुक्लपक्ष। साहित्यकारों के मन से मानवता के प्रति संवेदना बह निकली। यह संवेदना केवल प्रकाशन तक सीमित नहीं रही बल्कि आधुनिक तकनीकी अपनाते हुए, विश्वग्राम की संज्ञा कम से कम साहित्यिक जगत में तो साकार होती दिखाई देती है। कामना तो यही है कि कोविड का प्रकोप शीघ्र समाप्त हो और जो अंतरराष्ट्रीय सौहार्द साहित्यिक जगत में जन्मा है, वह फलता-फूलता रहे।

मैं इन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में अधिक भाग नहीं ले पाया। साहित्य कुञ्ज के अतिरिक्त भी कुछ साहित्यिक दायित्व हैं जो समय माँगते हैं। फिर भी तीन-चार बार भाग लेने का अवसर प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त हुआ। आज सुबह भी वैश्विक हिन्दी परिवार के मंच पर पत्रकारिता की चर्चा में भाग लेने का अवसर मिला। अच्छा लगा, पर इससे बेहतर हो सकता था। समय सीमित था और वक्ता अधिक थे।  संचालन के लिए भी समय चाहिए और भूमिका बाँधने वाले को भी। इस तरह से प्रत्येक वक्ता के हिस्से पाँच-सात मिनट आए। फिर भी मैं आयोजकों के प्रति अनुगृहीत हूँ कि कुछ तो बोलने का अवसर मिला।

अभी हाल ही में भोपाल में विश्वरंग का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन समाप्त हुआ है। उसमें कैनेडा ने भी पहली बार भाग लिया। इस अवसर पर हमने एक गद्य और एक पद्य संकलन की ई-पुस्तकें पुस्तक बाज़ार.कॉम द्वारा प्रकाशित की हैं जो कि निःशुल्क pustakbazaar.com पर उपलब्ध हैं। इन्हें आप अपने Android मोबाइल द्वारा ऐप द्वारा प्राप्त भी कर सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं। पद्य संकलन में कैनेडा के 41 कवियों की रचनाएँ हैं। गद्य संकलन में 21 लेखकों की गद्य रचनाएँ संकलित की गई हैं। इनमें कहानियाँ, लघुकथाएँ, आलेख, व्यंग्य और संस्मरण इत्यादि हैं। यह परियोजना कई वर्षों से साकार नहीं हो पा रही थी। बात मुद्रित संस्करण के प्रतिबंधों पर अटक जाती थी। ई-पुस्तक में न तो पृष्ठों की सीमा और न ही प्रकाशन के व्यय की चिन्ता। शायद ऊपर वाले की भी यही इच्छा थी की यह दोनों संकलन अवश्य प्रकाशित हों, क्योंकि ई-पुस्तकों के अपलोड करने बाद अगले दिन ही मेरा लैपटॉप ख़राब हो गया। साहित्य कुञ्ज का यह अंक अपने पुराने पीसी पर निकाल रहा हूँ। अभी तक मेरे पूरे जीवन में मेरा कंप्यूटर कभी भी ख़राब नहीं हुआ। यह अनुभव कोई अच्छा नहीं है। पर सीख व्यक्ति को हर अनुभव से मिलती है। इससे भी सीखा हूँ - पिछले दो दिन से सब कुछ गूगल डॉक्स और गूगल ड्राइव पर ही कर रहा हूँ। अब होते रहें मेरे कंप्यूटर ख़राब। अगर तकनीकी आदमी को अपने पर निर्भर बना कर पंगु बना सकती है तो उसका सही प्रयोग व्यक्ति को सर्वशक्तिमान भी बना सकती है। वैश्विक पटल पर यह साहित्यिक जगत पहले से ही प्रमाणित कर रहा है और मैं दो दिन से। मैंने आरम्भ में कहा था कि यह वर्ष कभी भी विस्मृत नहीं हो सकता।

– सुमन कुमार घई


 

टिप्पणियाँ

शैली 2021/06/15 05:52 PM

बहुत से कारण हैं, यह वर्ष यादों में बना तो रहेगा ही, चाहे यादें अच्छी हों या दुःखद। प्रभावी लेखन.

डॉ. वंदना मुकेश 2020/12/03 07:28 PM

आदरणीय सुमन जी , साहित्य के डिजिटलीकरण को लेकर आपने जो कहा , वह सटीक है। यह वर्ष साहित्य के डिजिटलीकरण के क्रांति वर्ष के रूप में स्मरण किया जायोगा.

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