प्रिय मित्रो,
कल यानी शनिवार को हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी थी। इस बार की मुख्य वक्ता डॉ. रोहिणी अग्रवाल थीं। उन्होंने कहानी लेखन पर बहुत महत्वपूर्ण और रोचक ढंग से अपना दृष्टिकोण श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया। मैं न केवल उनके धाराप्रवाह वक्तव्य शैली और विचारों की स्पष्टता से प्रभावित हुआ बल्कि गिल्ड के सदस्यों और अन्य श्रोताओं के चेहरों पर बदलते भावों को देख कर भी विस्मित होता रहा। हालाँकि कैनेडा में अधिक हिन्दी कहानी लेखक नहीं है परन्तु लेखन प्रक्रिया की सूक्ष्मताओं को सभी लेखक अपनी अपनी विधा के अनुसार ग्रहण कर रहे थे।
हिन्दी राइटर्स गिल्ड की गोष्ठियाँ एक खुले मंच की तरह संचालित होती हैं और यह केवल हिन्दी राइटर्स गिल्ड के सदस्यों के लिए ही नहीं होतीं, कोई भी आ सकता है और समय की सीमा के अनुसार अपनी रचना का पाठ कर सकता है। इस बार बहुत से नए चेहरे देखने को मिले तो मन में विश्वास दृढ़ हुआ कि हिन्दी साहित्य कैनेडा की भूमि पर भी पल-बढ़ रहा है। आने वालों में कुछ युवा लेखक भी थे जो पहली बार गोष्ठी में आये थे। यह नवांगतुक गोष्ठी के साहित्यिक स्तर से प्रभावित और विस्मित हुए बिन न रह सके।
रोहिणी जी ने कई लेखकों की रचनाओं को उद्धृत करते हुए अपनी कहानी लेखन प्रक्रिया और इस दौरान लेखक की अन्तर्यात्रा के बारे में समझाया। लगभग एक घण्टा बोलने के बाद उन्होंने श्रोताओं को प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित किया और सब को संतोषजनक उत्तर भी दिए।
हिन्दी राइटर्स गिल्ड का आरम्भ से यही उद्देश्य रहा है कि जब भी अवसर मिले भारत से आए विद्वानों की बात सुनी जाए और उनसे जितना भी हो सीखा जाए। अभी गत दिनों फ़ेसबुक पर हिन्दी लेखकों की लेखन प्रक्रिया और सुझावों के प्रति उनकी असहिष्णुता की भर्त्सना हो रही थी। मेरे विचार थोड़े से अलग हैं - क्योंकि साहित्य कुंज में मैं नए लेखकों और विशेषकर छोटी आयु के लेखकों अवसर प्रदान करने को बहुत महत्वपूर्ण मानता हूँ और उन्हें प्रकाशित भी करता हूँ। मेरा अपना अनुभव है कि इन कच्चे लेखकों को समझाना और उनके द्वारा सुझावों को ग्रहण करना बहुत सहज प्रक्रिया है। एक बात का विशेष ध्यान रहे कि आलोचना करने और समझाने का ढंग कभी भी आक्षेप-पूर्ण न हो। इन लेखकों को अगर संपादक हतोत्साहित करते रहेंगे तो हानि हिन्दी साहित्य की ही होगी। साहित्यिक संस्थानों, साहित्यिक वेबसाइट्स का एक उद्देश्य केवल पुराने या स्थापित लेखकों को ही प्रकाशित करने का नहीं होना चाहिए बल्कि नई पीढ़ी के लेखकों के पोषण का भी होना चाहिए।
साहित्य कुंज के होमपेज पर "साहित्य के रंग, शैलजा के संग" का वीडियो कार्यक्रम इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है। यह कार्यक्रम साहित्यिक बातचीत की तरह संचालित किया जाता है और इसलिए जब भी संभव हो डॉ. शैलजा सक्सेना एक से अधिक वक्ताओं को आमन्त्रित करतीं हैं ताकि विचार-विमर्श साक्षात्कार न बन कर रह जाए। आप सभी से आग्रह है कि इस कार्यक्रम को अवश्य देखें। क्योंकि अभी साहित्य कुंज की वेबसाइट पूरी तरह से बनी नहीं है और वीडियो और ऑडियो पर काम होना बाक़ी है, परन्तु शीघ्र ही ऐसे कार्यक्रमों की एक लाइब्रेरी-सी साहित्य कुंज पर बन जाएगी।
- सादर
सुमन कुमार घई
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