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प्रिय मित्रो,
                साहित्य कुञ्ज के इस अंक में दो नए स्तम्भ आरम्भ किए जा रहे हैं। पहला है “किशोर साहित्य” और दूसरा है “अपनी बात”। 

वैसे अभी तक बाल साहित्य स्तम्भ में किशोर साहित्य की कहानियाँ और कविताएँ प्रकाशित हो रही थीं, परन्तु ऐसा करते हुए मुझे अनुभव होता था कि यह किशोर साहित्य के साथ न्याय नहीं है। किशोर साहित्य अपने आप में साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है और अगर हम साहित्य प्रेमी इसे इसके उचित स्थान पर पहुँचाना चाहते हैं तो इसे अलग स्तम्भ के रूप में प्रकाशित करना ही होगा ताकि इसका विस्तार किया जा सके।

हिन्दी में कितना किशोर साहित्य उपलब्ध है, इसके बारे में मैं आँकड़े इकट्ठे करने में असमर्थ रहा हूँ। आज के युग में जो इंटरनेट पर नहीं है, उसे खोज पाना आसान काम नहीं है। मैं आधुनिक किशोर साहित्य की बात कर रहा हूँ। बचपन में या अपनी किशोरावस्था में शायद मुझे एक-दो ही किशोर साहित्य के उपन्यास पढ़ने को मिले थे, जो कि अँग्रेज़ी के उपन्यासों के अनुवाद थे। एक के बारे में याद आ रहा है कि वह रूडीयार्ड किप्लिंग के “द जंगल बुक” का अनुवाद था। 

पहला प्रश्न है- आज के समय में कितना किशोर साहित्य लिखा जा रहा है? दूसरा प्रश्न है कि यह साहित्य किन माध्यमों द्वारा किशोरों तक पहुँच रहा है? यह अकाट्य तथ्य है कि वर्तमान समय के बच्चे कंप्यूटर-प्रवीण हैं और बहुत सी जानकारी जो उनको मिल रही है वह इसी माध्यम द्वारा ही मिलती है। इसीलिए इस विषय पर जो भी जानकारी मैंने इकट्ठी करनी चाही वह कंप्यूटर के माध्यम से ही की। “किशोर साहित्य” के नाम पर अधिक कुछ मिला ही नहीं। अमेज़न पर भी किशोर साहित्य की केवल बीस पुस्तकें मिलीं, उनमें से कितनी वास्तव में किशोरों के लिए हैं, यह जानना भी लगभग असंभव ही था। अगर आप यही सर्च अमेज़न इंडिया पर हिन्दी में करते हैं तो परिणाम और भी निराशजनक ही मिलेंगे।

अगले चरण में मैंने हिन्दी किशोर साहित्य लिख कर गूगल पर खोजा तब उसके परिणाम भी लगभग नदारद ही थे। चाहें तो आप भी करके देखें। मैं यह नहीं कह रहा कि किशोर साहित्य उपलब्ध नहीं है - परन्तु उसे प्राप्त करना सहज नहीं है। मुद्रित (प्रिंटिड) पुस्तकें उपलब्ध होंगी पर आप उन्हें खोजेंगे कैसे? अब आप प्रकाशकों की वेबसाईट पर जाकर खोजने का प्रयास करें। पहले “किशोर साहित्य” सेक्शन/विषय ही नहीं मिलेगा। बाल साहित्य की कुछ पुस्तकें दिखाई देंगी जो कि बहुत छोटी वय के बच्चों के लिए उपयुक्त हैं।

किशोर साहित्य की उपलब्धता के प्रति इतनी चिंता क्यों? किशोरावस्था एक बहुत कोमल अवस्था होती है, यह समय किशोर मानसिकता के लिए बाल्यावस्था से वयस्कावस्था में परिवर्तित होने का समय होता है। प्रायः इस अवस्था में जो रुचियाँ और अरुचियाँ उत्पन्न होती हैं वह आजीवन होती हैं। अगर हम इस तथ्य से चिंतित हैं कि दिन-प्रतिदिन हिन्दी पाठकों की कमी हो रही है तो हम किशोरावस्था के पाठकों को क्यों अलक्षित कर रहे हैं? क्या हम उनमें हिन्दी साहित्य के प्रति आजीवन रुचि, प्रेम और लगाव पैदा नहीं करना चाहते? अगर हम उनके कोमल हृदयों में साहित्य प्रेम की ज्योति प्रज्ज्वलित करना चाहते हैं तो इस अवस्था के दौरान ही हमें उन्हें साहित्य के प्रति सचेत करना चाहिए; हिन्दी साहित्य को मनोरंजन के एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। इस विकल्प का वह प्रारूप होना चाहिए जो उनके लिए सहज और सुलभ्य है। जो उपकरण उनके हाथों में सदा दिखाई देते हैं, उसी पर ही यह साहित्य उपलब्ध होना चाहिए। इसी विचार के साथ इंटरनेट पर “किशोर साहित्य” की नींव (?) रख रहा हूँ। विशेष बात है कि इस स्तम्भ की पहली कहानी एक किशोर- क्षितिज जैन द्वारा लिखी हुई है। आप से अनुरोध है कि इस किशोर लेखक की कविताएँ भी पढ़ें और कहानी भी - नाम है क्षितिज जैन। आने वाले दिनों में बाल साहित्य की कुछ रचनाओं को इस स्तम्भ के अन्तर्गत स्थानांतरित कर दूँगा।
आप सभी से अनुरोध है कि इस विषय पर सोचना आरम्भ करें। रोचक और उपयोगी किशोर साहित्य का सृजन आरम्भ करें जो किशोर में उर्ध्वोन्मुख मानसिकता का विकास करे। हिन्दी साहित्य के पाठकों की कम होती संख्या की समस्या का उन्मूलन किशोर साहित्य के सृजन, प्रचार और प्रसार पर निर्भर करता है।

साहित्य कुञ्ज में दूसरा नया स्तम्भ “अपनी बात” है। इसका संयोजन आलेख मेन्यू के अंतर्गत किया गया है। बहुत बार ऐसा होता है कि आप किसी विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करना चाहते हैं परन्तु उसकी अभिव्यक्ति आलेख की तरह विस्तृत नहीं है यानी बस आप अपनी बात साझी करना चाहते हैं। आपके लिए यह स्तम्भ बिलकुल सटीक है। जिस तरह से फ़ेसबुक पर लिखते हैं, वही बात आप यहाँ पर भी लिख सकते हैं परन्तु यह फ़ेसबुक नहीं है। आपकी “अपनी बात” संपादित होगी और अभी केवल नए अंक प्रकाशन के समय ही प्रकाशित होगी। फ़ेसबुक से तुलना में इसलिए भी अलग है कि आपकी अपनी बात हमेशा आपके फ़ोल्डर में सहेजी रहेगी - फ़ेसबुक की तरह टाईमलाईन में खो नहीं जाएगी। हो सकता है कि समय के साथ इसमें और परिवर्तन किए जाएँ और यह परिचर्चा का रूप ले ले।

तीसरी महत्वपूर्ण बात अप्रकाशित रचनाओं की अनिवार्यता है। प्रायः आप यह वाक्य पढ़ते हैं, हो सकता है कि आप सोचते भी हों कि अव्यवसायिक वेबसाइट्स जो रचनाओं का कोई देय नहीं देतीं वह यह क्यों प्रतिबंध लगाती हैं? ऐसा करने के कई कारण हैं।

हम सभी जानते हैं कि पूरा इंटरनेट एक विशाल पुस्तकालय की तरह है। किसी भी लेखक की कोई भी रचना इंटरनेट जो किसी भी साईट का हिस्सा है, उचित खोज द्वारा ढूँढ़ी जा सकती है। अगर किसी एक लेखक की एक ही रचना कई वेबसाइट्स पर है तो उसका लेखक को क्या लाभ? यह तो वही हुआ कि पुस्तकालय की हर शेल्फ़ पर एक ही किताब रखी है। इससे बेहतर तो यह होगा कि प्रत्येक शेल्फ़ पर एक नई किताब पड़ी हो। दूसरा अंतर वेबसाइट को पड़ता है। मैं जो कहने जा रहा हूँ उस पर उन वेबसाइट के प्रकाशकों को भी ध्यान देना चाहिए जो बिना अनुमति के दूसरी वेबसाइट्स की रचनाएँ कॉपी करके अपनी वेबसाइट पर पेस्ट कर लेते हैं। गूगल या अन्य सर्च इंजन इस समस्या से निपटने के लिए नित्य नए विकल्प ढूँढ़ रहे हैं। उनका अपना हित भी इस में है कि सर्च के परिणाम सही और सटीक हों। बहुत पहले मैटा की-वर्ड, टैग्स इत्यादि इसी दिशा में किए गए प्रयास थे। वर्तमान में किसी भी रचना के साथ कुछ ऐसी जानकारी भी अपलोड होती है जो केवल यह सर्च इंजन पढ़ पाते हैं और उसे बदला नहीं जा सकता। किस समय और किस तारीख़ को क्या प्रकाशित हुआ इसका लेखा-जोखा उसमें रहता है। सर्च इंजन जब परिणाम देते हैं तो वह उस साइट को प्राथमिकता देते हैं जहाँ  वह रचना पहले प्रकाशित हुई थी। इसका प्रभाव वेबसाइट की ग्लोबल रैंकिग पर पड़ता है। कॉपी पेस्ट करने वाली साइट की रैंकिग दिन प्रतिदिन गिरती रहती है और जिस साइट से रचना उठाई जाती है उसकी रैंकिंग स्वतः बढ़ जाती है। यानी पुनः प्रकाशन का लाभ पूर्व प्रकाशन करने वाली साइट को ही होता है। इस रैंकिग को निर्धारित करने के अन्य गुणक और कारक भी होते हैं उनके विषय में यहाँ बात नहीं करूँगा। बस यह समझ लें कि साहित्य कुञ्ज में भविष्य में अप्रकाशित रचनाओं को ही प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें सोशल मीडिया से लेकर व्यक्तिगत ब्लॉग सम्मिलित हैं क्योंकि सर्च इंजन रैंकिंग निर्धारित करते हुए इन्हें भी देखते हैं।

अगर आप अभी भी अपनी रचना को विभिन्न साइट्स पर प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो कृपया अपने हित के लिए रचना को पहले उस साइट पर प्रकाशित करवाएँ जहाँ उचित सम्पादन होता है। सही प्रूफ़रीडिंग के बाद वर्तनी की त्रुटियाँ संशोधित की जाती हैं। अंततः रचना के साथ आपका नाम प्रकाशित होता है और सही या ग़लत वर्तनी, विराम चिह्नों के प्रयोग और रचना के स्तर का लाभ या हानि आपकी होती है। हाँ, अच्छी वेबसाइट पर प्रकाशित करवाने के बाद उसे आप कहीं अन्य वेबसाइट पर प्रकाशित करवाना चाहें तो आपकी इच्छा।

- सादर
सुमन कुमार घई

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