चाबी वाले खिलौने
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुदर्शन कुमार सोनी23 Feb 2019
बचपन में हम सभी ने चाबी वाला खिलौना ख़ूब खेला है चाहे वो कार रही हो या जीप या मोटरसायकल या कोई अन्य इसकी ख़ासियत इतनी ही है कि यह उतनी देर ही चलायमान रहता है जितनी देर इसकी चाबी भरी रहती है। अगली बार चलाने के लिये इसमें फिर से घर्र-घर्र कर चाबी भरनी पड़ती है। बच्चा भी ख़ुशी-ख़ुशी इसके आगे पीछे भागता रहता है और बंद हो जाने पर इसमें बार-बार चाबी भरता रहता है।
गंगू आज नज़र दौडा़ता है तो सब ओर चाबी वाले खिलौने दौड़ते नज़र आते हैं। जितनी देर जैसी चाबी भरी जाती है उतनी देर वे चलते रहते हैं दौड़ते रहते हैं! जो बेटा माँ-बाप की आँख का तारा था वह शादी के बाद अपनी पत्नी को सितारा समझने लगता है समझना भी चाहिये सात फेरे व वचन जो लिये हैं उसको निभाना तो ज़रूरी है! शादी के बाद बहुधा वह चाबी वाला खिलौना हो जाता है, यदि संयुक्त परिवार है तो यह चाबी बार-बार भरने की ज़रूरत पड़ती है अपनी बॉबी के इस चाबी भरने के कारण ही भाई-भाई से लड़ने तैयार हो जाता है बेटा माँ-बाप को आँख दिखाने की हिमाक़त करने लगता है।
इडियट बाक्स की हर चैनल में चल रहे पारिवारिक सीरियलो में तो हम ऐसे चाबी वाले खिलौनों की भरमार देखते हैं यह माँ-बाप, भाई-भाभी के लिये भरमार बंदूक का काम कर रहे हैं!
राजनैतिक दलों में भी यह सिद्धांत लागू होता है जितनी चाबी आला-कमान द्वारा भरी जाती है उतना ही प्रवक्ता बोलता है एक ही विषय पर वह एक ही दिन में दो तरह के वक्तव्य बडी़ सफ़ाई से दे सकता है; यदि उसकी चाबी दो बार भरी गई है! संसद विधान सभा में भी तो हम देखते हैं कि सत्ता पक्ष या विपक्ष दोनो नों प्रमुख लोग चाबी वाले खिलौने की तरह पेश आते है जितनी चाबी उतनी मात्रा में लॉबी। यदि चाबी साँप की बाँबी में हाथ डालने समान किसी मुद्दे के लिये भरी गयी हो तो बाँबी में भी हाथ डालने से परहेज़ नहीं होने वाला।
फ़िल्म इंडस्ट्री में भी डायरेक्टर हीरो हीरोईन को चाबी वाला खिलौना बनाने की कोशिश करता है। कई बार इसी बात पर तक़रार हो जाती है यदि हीरोईन कहानी की माँग के सिद्वांत के आधार पर कपडे़ उतारने के लिये तैयार नहीं होती है तो फिर उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। कारण वही चाबी वाला है कि निर्माता निंर्देशक की चाबी पर हीरोईन रूपी खिलौना चक्कर लगाने तैयार नहीं है। वकील भी केस लड़ते समय अपने मुविक्कल को चाबी वाले खिलौने की तरह पेश आने को कहता है कि उसने जितना कहा और समझाया है वैसा ही गीता पर क़सम खाकर झूठ बोलना नहीं तो सच के चक्कर में तुम्हे अगर उम्र क़ैद हो गई तो मै कुछ नहीं कर पाऊँगा!
रिटेल में इनक्यावन प्रतिशत निवेश की अनुमति होने व डीज़ल के दाम बढ़ने पर आपकी पार्टी क्या सर्मथन वापिस ले लेगी यह पत्रकार से पूछने पर प्रवक्ता कहेगा कि यह निर्णय तो पार्टी के श्रीमान या श्रीमती पार्टी की बैठक में लेंगे! पत्रकार कितना भी पूछे चाबी के हिसाब से ही हर बार जबाब आयेगा!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- एनजीओ का शौक़
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद प्रशिक्षण व शोध केन्द्र
- अगले जनम हमें मिडिल क्लास न कीजो
- अन्य क्षेत्रों के खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल
- असहिष्णु कुत्ता
- आप और मैं एक ही नाव पर सवार हैं क्या!
- आम आदमी सेलेब्रिटी से क्यों नहीं सीखता!
- आर्दश आचार संहिता
- उदारीकरण के दौर का कुत्ता
- एक अदद नाले के अधिकार क्षेत्र का विमर्श’
- एक रेल की दशा ही सारे मानव विकास सूचकांको को दिशा देती है
- कअमेरिका से भारत को दीवाली गिफ़्ट
- कुत्ता ध्यानासन
- कुत्ता साहब
- कोरोना मीटर व अमीरी मीटर
- कोरोना से ज़्यादा घातक– घर-घर छाप डॉक्टर
- चाबी वाले खिलौने
- जनता कर्फ़्यू व श्वान समुदाय
- जियो व जीने दो व कुत्ता
- जीवी और जीवी
- जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन
- टिंडा की मक्खी
- दुख में सुखी रहने वाले!
- धैर्य की पाठशाला
- नयी ’कोरोनाखड़ी’
- नये अस्पताल का नामकरण
- परोपकार में सेंध
- बेचारे ये कुत्ते घुमाने वाले
- भगवान इंसान के क्लासिक फर्मे को हाईटेक कब बनायेंगे?
- भोपाल का क्या है!
- भ्रष्टाचार व गज की तुलना
- मल्टीप्लेक्स और लुप्तप्रायः होता राष्ट्रीय चरित्र
- मार के आगे पति भी भागते हैं!
- मुर्गा रिटर्न्स
- युद्ध तुरंत बंद कीजो: श्वान समुदाय की पुतिन से अपील
- ये भी अंततः गौरवान्वित हुए!
- विज्ञापनर
- विदेश जाने पर कोहराम
- विवाद की जड़ दूसरी शादी है
- विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद
- शर्म का शर्मसार होना!
- श्वान कुनबे का लॉक-डाउन को कोटिशः धन्यवाद
- संपन्नता की असमानता
- साम्प्रदायिक सद्भाव इनसे सीखें!
- सारे पते अस्पताल होकर जाते हैं!
- साहब के कुत्ते का तनाव
- सूअर दिल इंसान से गंगाधर की एक अर्ज
- सेवानिवृत्ति व रिटायरमेंट
- हाथियों का विरोध ज्ञापन
- हैरत इंडियन
- क़िला फ़तह आज भी करते हैं लोग!
आत्मकथा
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 1 : जन्म
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 2 : बचपन
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 3 : पतित्व
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 4 : हाईस्कूल में
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 5 : दुखद प्रसंग
- सत्य पर मेरे प्रयोग: महात्मा गाँधी जी की आत्म कथा के अंश - 6 : चोरी और प्रायश्चित
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं