दो बदमाश
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’8 Jan 2019
दो बदमाश बड़े हैं ख़ास
दिनभर ऊधम मचाते हैं ।
घर की थाली और कटोरी
दूर फेंक कर आते हैं ।
इक पलंग के नीचे छुपता
इक टेबल पर चढ़ जाता है ।
एक खड़ा होकर खिड़की में
ज़ोरों से चिल्लाता है ।
दूजा घर के बर्तन लेकर
बिना ताल बजाता है ।
एक नींद में सपने देखे
जगकर इक मुस्काता है ।
जब फोन की घण्टी बजती
बड़का दौड़ लगाता है
छुटका छुपकर मार झपट्टा
झट से फोन उठाता है ।
‘हलो-हलो’ जब कोई करता
छुटका खिल-खिल करता है
मुँह बढ़ाकर आगे बड़का
फुर्र-फुर्र कर मन हरता है।
घर के गहरे सन्नाटे पर
विजय इन्होंने पाई है ।
इनके घर में आ जाने से
घर में ख़ुशबू छाई है ।
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