हम सब सवारी हैं
काव्य साहित्य | कविता उपेन्द्र यादव1 Jun 2024 (अंक: 254, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
उबर चालक अपनी धुन में मस्त है
स्टीयरिंग पर चलते उसके हाथ
एक्सीलेटर पर चौकन्ने उसके पैर
मोबाइल की सटीक लोकेशन
और रेड सिगनल की विवशता
इस समय उसे दुनिया का
सबसे जटिल इंसान बनाती है
साथ ही बहुत संजीदा भी
अपनी नज़रों में वह महान् है
सड़कों का बादशाह सा कुछ
वह नहीं जानता कि
उसके बग़ल में एक कवि बैठा है
और पिछली सीटों पर
कोई प्रोफ़ेसर, तो कोई डॉक्टर
तो कोई इंजीनियर, तो कोई जज
जो स्कूल के दिनों को
ज़िन्दा रखने के लिए
निकल गये हैं हिमालय के
एक गुप्त एडवेंचरस डेस्टिनेशन पर
इस सबसे उसे कोई मतलब नहीं
इससे ज़्यादा मतलब तो उसे
ग्रीन सिगनल का होना ज़रूरी है
जब भी कोई फोन आता है
तो वह कहता है ‘रख जल्दी’
अभी मैं लाँग ड्राइव पर हूँ
सवारी लेकर जा रहा हूँ
हम सब उसके लिए सवारी हैं
इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं
तब पता चलता है कि
सचमुच हम सब सवारी ही तो हैं
ये रूप, रोब और ओहदा
तो कुछ भी नहीं है
ज़िन्दगी के चलते रथ पर
अपनी-अपनी यात्रा पूरी कर
एक दिन इस दुनिया को
अलविदा कह देंगे।
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