अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं 

 

ख़ामियाँ और ख़ूबियाँ 
सभी मनुज जीव जंतु मात्र में होतीं
पराई ख़ामियाँ दिख जातीं 
दूसरों की ख़ूबियाँ नज़र नहीं आतीं! 
 
ख़ुद की ख़ूबियाँ दिखती रहतीं 
ख़ुद की ख़ामियाँ नज़रअंदाज़ हो जातीं! 
 
हर कोई एक दूसरे की 
झूठी प्रशंसा करके रिश्तेदारी निभाता 
सच में कोई किसी की ख़ामियाँ बताकर 
किसी को अपना शत्रु नहीं बनाना चाहता! 
 
हे मानव! ऐसे में ‘मनुर्भवः’ मनुष्य बनो 
हे मानव! अनवरत मन ही मन मनन करो 
‘आत्मानाम विजानीहि’ अपने आप को जानो 
पहचानो आत्मज्ञानी बनो जीव मात्र से प्रेम करो! 
 
तुम्हें प्रिय है जो भी वस्तु और ख़ुशियाँ 
वही वस्तु और ख़ुशियाँ सब जीव जंतु को बाँटो 
तुम्हें अप्रिय जो कुछ भी उसे दूसरे को मत दो! 
  
तुम्हें चाहिए धन वैभव पद प्रतिष्ठा आत्म सुख
दूसरों के लिए धन वैभव पद प्रतिष्ठा की कामना करो
सुख बाँटो कभी किसी को दुख नहीं दो गाली मत डाँटो! 
 
नहीं किसी का हक़ मारो, नहीं किसी का एहसान लो 
माता पिता हैं स्वाभाविक दाता उनके दिए ग्रहण करो 
क़ुदरत ने आवश्यकतानुसार जगत में सबकुछ परोसा 
अपने शुभकर्म व श्रम से वांछित फल हासिल कर लो! 
 
अवैध अनाधिकार किसी का अर्जित धन नहीं लेना, 
वर्ना कर्मफल सिद्धांत से लेना का पड़ जाएगा देना, 
इच्छा वासना कामना वश जीव जंतु को आना जाना, 
एक जन्म का लेन-देन दूसरे जन्म में पड़ता चुकाना, 
अस्तु ऐसा कोई काम न कर जिससे पड़ जाए रोना! 
 
ऐसा कोई धर्म नहीं जो कहता जीवों को दुख पहुँचाना, 
ऐसी कोई संस्कृति नहीं जिसमें चलन हो गला रेतना, 
मानव मन से निर्धारित करता विधि-विधान मनमाना, 
जिस विधि से किसी जीव को मनुज क्षति पहुँचाएगा, 
उसी विधि से वो जीव फिर से बदला चुकाने आएगा! 
 
पुत्र-पुत्री, वधू-जमाई, बहन-भाई स्वाभाविक लेनदार होते, 
पिछले जन्म के लेन-देन के लिए सम्बन्धी बनके आते, 
कुछ रिश्ते ऐसे भी जिसे पूर्व जन्म में हमने सताए होते, 
जब तक लेन-देन चुकता नहीं होता तब तक ये नहीं जाते! 
 
कर्मफल सिद्धांत का नियंत्रण सिर्फ़ मानव कर सकता, 
मानव अपनी ख़ूबियाँ विकसित कर ख़ामियाँ मिटा कर, 
सिर्फ़ सत्कर्म करे न किसी को डराए न किसी को मारे, 
बुद्ध व महावीर की तरह बन जाओ हर्ष विषाद से परे! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं