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कृषि का गणित

 

जलस्तर नीचे चला गया है
पलेवा में ज़्यादा पानी सोख रही है ज़मीन
बारिश नहीं हुई अच्छी भाद्रपद में
अगर नहीं हुई महावट
देना पड़ा पानी फ़सलों में इसी तरह आगे
तो घाटा ही घाटा है
सम्भव है फ़सल भी रहे कमज़ोर
 
खेती की पेचीदगियाँ
अगले तीन महीने नहीं मिलेगी फ़ुरसत
पिछले माह तक सोयाबीन की फ़सल में
पानी और कीटनाशक लगाने की अवधि की जानकारी
देते रहे भानु प्रकाश जब-तब
कवि हैं, लिखते हैं संवेदनापरक कविताएँ
मुझे अच्‍छा लगता है सुनना और जानना
फ़सलों और खेती के बारे में
 
याद आते हैं बचपन के वे दिन
जब ख़रीफ़ की फ़सल होती थी 
ज्वार, बाजरा और मक्का
मक्के के खेत में बो देते थे टिंडे, काचरी और फूट
तराई वाले खेतों में लगाए जाते थे चावल
रबी की फ़सल गेहूँ, चना, सरसों, अरहर, आलू, गन्ना
 
कुएँ से लगाया जाता था पानी
ट्यूब वैल आए थे बाद में
पंप चलते थे डीज़ल की मोटर से
ज़ेहन में होती पूस की रात
 
घूरा पका होता था घर के बाहर
केएमपी खाद, सर्दियों में यूरिया 
बीज, खाद, पानी
नहीं होते थे प्रयुक्त कीटनाशक तब
 
नहीं भरोसा मौसम का
कब हो जाए विध्वंसक
नहीं लगा सकते अनुमान
बदले ऋतुचक्र का
अनिश्चित उत्पादन
परिणाम पता नहीं
 
बहुत कठिन था कृषक जीवन
अब भी है
भानु से पूछकर कर लेता हूँ इसकी पुष्टि

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