क्योंकि मैं सूर्य हूँ
काव्य साहित्य | कविता सागर कमल1 May 2019
मैं उगता हूँ , मैं चढ़ता हूँ
मैं जल-जलकर चमकता हूँ
डूबना भी मुझी को पड़ता है
क्योंकि मैं सूर्य हूँ!
मैंने भोगी है परिवर्तन की
अनंत ज्वलंत यात्रा
यही जलता हुआ परिवर्तन मेरी पूँजी है
इस पूँजी का समान वितरण
करना मुझी को पड़ता है
क्योंकि मैं सूर्य हूँ!
मैं ही तो हूँ सृष्टि का मूलाधार
मेरे बिना तुम्हारे कल्प-विकल्प क्या हैं?
तुम्हारी सर्द विचारों से भरी दुनिया को
भावों का ताप
देना मुझी को पड़ता है
क्योंकि मैं सूर्य हूँ!
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