प्रेम प्यासा
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
लाल जोड़े में सजी-सँवरी बैठी कल्पना, कल्पना के अथाह सागर में गोते लगा रही थी, रात में मनायी सुहागरात का रसानुभव कर रही थी कि अचानक उस पर कुठाराघात हुआ, मन-मस्तिष्क विदीर्ण हो गया क्योंकि अमोल ने आते ही प्रश्न किया, "तुमने पहले किसी से प्यार किया है?" और उसकी आँखें प्रतिक्षारत, कल्पना के चेहरे पर गड़ गई थीं। कल्पना की चुप्पी का एहसास कर अमोल ने दुसरा प्रश्न किया "कहाँ-कहाँ और कितनी बार डेट पर गई थी?" अमोल के इस तरह के तीखे प्रश्न ने कल्पना को भीतर तक झकझोर कर रख दिया था, क्योंकि उसकी आँखें लगातार कह रही थीं "जवाब दो, कुछ तो बोलो।"
अमोल के बेबाक प्रश्न से अवाक् कल्पना अचंभित थी। कल्पना नहीं चाहती थी कि शक के दायरे अपनी हदें तोड़े। कल्पना के मन-मस्तिष्क में यह प्रश्न, बबंडर की तरह विनाशकारी प्रतीत हो रहा था और प्रश्न का उत्तर, ज्वालामुखी में मैग्मा की तरह दबा हुआ था जो क्रेटर से बाहर आते ही सब कुछ जला देता है। चुप्पी ही शक की जन्मदात्री है, अंततः कल्पना ने कुछ बोलने के लिए होंठ हिलाए लेकिन कुछ सोचकर दोनों होंठ आपस में चिपका लिए। कल्पना के चेहरे पर उदासी के बादल तैर गए, उसकी साँसें तेज़-तेज़ चलने लगीं, उसकी आँखें कड़ी हो गई थीं और आँसू के कुछ बूँदें आँखों के दायरे से बाहर निकल जाना चाहती थीं।
विस्मय की इस अवस्था को महसूस कर अमोल ने कहा, "माफ़ करना कल्पना, मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं चाहता, बस पहले प्यार का एहसास चाहता हूँ, वो करा दो, यह मेरी सिर्फ़ इच्छा है, कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है।"
अमोल की हल्की सी मुस्काहट ने कल्पना के रोम-रोम पुलकित कर दिया और कल्पना का इस तरह से अमोल की तरफ देखना, पहले प्यार के एहसास का पहला क़दम था।
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