गिरगिट के अब्बा श्री
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता हलीम ’आईना’21 Aug 2007
पूरे पाँच बरस बाद,
अपने चमचों और चमचियों की
फौज के साथ,
जैसे ही वो वोटों की
भीख माँगने आये,
मोहल्ले के
कुत्ते भौंके,
गधे रैंके,
और
मेढ़क टर्राए।
इतने में
पहली बरसात में ढही
स्कूली इमारत से
कूद कर,
एक गिरगिट आया
जिसने नेता जी को
काट खाया।
नेता जी चीखे
अबे गिरगिट के बच्चे
अपनी बिरादरी वालों को ही
काटता है,
हरामखोर अपने
बाप - दादाओं को ही डाँटता है।
गिरगिट ने जीभ निकाली
और देने लगा गाली,
’देखिए श्रीमान् !
आपने हमारे गिरगिटेपन का
किया है अपमान
इसलिए
मैंने आपको काटा है,
और
यह गिरगिट समाज का
आपके मुँह पर चाँटा है।
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