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सम्पादकीय

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समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ISSN 2292-9754

पूर्व समीक्षित
वर्ष: 21, अंक 268, जनवरी प्रथम अंक, 2025

संपादकीय

और अंतिम संकल्प  . . .
सुमन कुमार घई

  प्रिय मित्रो, आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! आज नव वर्ष की पूर्व-संध्या में सम्पादकीय लिखने बैठा हूँ। इस समय भारत में सुबह के चार बजे हैं। कुछ घण्टों के बाद नव वर्ष के प्रथम सूर्योदय की स्वर्णिम किरणों से भारत जगमगा उठेगा। नव वर्ष की पहली भोर आशाओं के साथ आती है। न जाने कितने कवियों ने अपने अनुभवों को अपने शब्दों में बाँधा है। कल सुबह भी नव ऊर्जा का संचार होगा और यह भावों में प्रस्फुटित हो एक निर्झर की तरह बहने लगेगी।  सोच रहा हूँ कि एक और वर्ष बीत गया। स्वाभाविक है कि मैं भी अन्यों की तरह पलट कर...

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साहित्य कुञ्ज के इस अंक में

कहानियाँ

असली कहानी
|

  इस सम्मेलन में अपना परिचय देने के…

कबीर मुक्त द्वार सँकरा . . . 
|

  अपनी पुरानी डायरी के ये पृष्ठ-आप…

पैसा-पैसा-पैसा
|

  “बेटा, जब से पिछले सप्ताह भारत…

प्यार की एक नाज़ुक उड़ान
|

  यह एक ठंडी सर्दियों की दोपहर थी।…

बिटिया
|

  सुनीता चेकअप करा कर लौटी थी। …

मातृशक्ति और उसका त्याग
|

  बिलासी काम पर जाने को लगभग तैयार…

रागिनी
|

  रागिनी देखने में जितनी सुन्दर थी…

विधवा का बेटा
|

  मूल कहानी: ला विडोवा इ इल ब्रिगान्टे;…

शुक्रगुज़ार
|

  “सर इस पुरानी किताब को आप क्यों…

समझदारी
|

  सुबह जब मालती टहलने गई तो वहाँ बैठी…

साथी
|

  ये कहानी है अवंतिका की, अनिकेत की…

हास्य/व्यंग्य

आलेख

आत्मिक जुड़ाव 
|

  जातक के जन्म के समय पूर्व दिशा में…

निष्काम कर्म: सुख का आधार
|

  निष्काम कर्म का अर्थ है बिना किसी…

भारतीय वैचारिकी और चिन्तन
|

  भारत में आजकल सनातन शब्द पर बहुत…

श्याम बेनेगल
|

श्याम बेनेगल की फ़िल्में मनुष्यता को अपने…

सरलता
|

  सीधे-सादे व्यक्ति को मूर्ख, नासमझ,…

हरियाणा प्रदेश के नाम की व्युत्पत्ति
|

  हरयान या हरियान शब्दों से नहीं, अहिराणा…

हिन्दी हाइकु में ‘वृद्ध विमर्श’
|

साहित्य समाज का प्रेरक भी होता है और समाज…

समीक्षा

मानवीय समाज का अनुभूत सत्य का चित्रण है: स्वप्न वृक्ष 
|

समीक्षित कृति: स्वप्न वृक्ष (कहानी संग्रह)  लेखिका: डॉ. राशि सिन्हा …

समीक्षा आकांक्षा वार्षिक पत्रिका: नदी विशेषांक
|

समीक्षित पत्रिका: आकांक्षा वार्षिक पत्रिका: नदी विशेषांक वर्ष 19, अंक…

संस्मरण

अन्य

इक्कीसवीं सदी के नाम पत्र 03
|

  प्यारी पुत्री!  जन्मदिन की बधाई…

साक्षात्कार

कविताएँ

अधूरा सा
|

  मैंने कुछ लिखा उस लिखे को फिर पढ़ा…

अरमानों की यात्रा
|

  लिखती,  इसलिए नहीं, कि केवल…

आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान
|

  खिली-खिली हो ज़िन्दगी, महक उठे अरमान। …

उस घर में ही होंगी ख़ुशियाँ
|

  फूलों सा जहाँ महके अंगना उस घर में…

एक अहसास 
|

  कैसे भूल पाओगे मुझे तेरी सांँसों…

एक स्कूल
|

  बहुत सारे बच्चे बहुत सारे शिक्षक…

कल्पना नहीं करता
|

  मैं कल्पना नहीं करता,  बस सोचता…

कामना
|

  हे प्रभु मेरे ईश! बीत रहा दो हज़ार…

कृपा तुम्हारी भगवन 
|

कृपा तुम्हारी भगवन  जग में समा रही…

कैसे कहूंँ अलविदा–2024
|

  हे दिसंबर! कैसे कहूँ अलविदा –2024…

क्या खोया, क्या पाया
|

  उन गलियों से जब भी गुज़री,  आँखों…

क्या लिखूँ
|

  क्यूँ लिखूँ तुम्हें मैं कुछ, …

क्रांति
|

  देश पर जब छा जाएगी मनहूसियत लोकतंत्र…

चलो फिर से
|

  चलो फिर से  अजनबी बनते हैं, …

जादूगर क़लम का
|

  बुलंदी छूता जैसे परिंदा कोई गगन का…

ताले में बंद दुनिया
|

  मैं इसी दुनिया में एक  घर बनाना…

तुलसी है संजीवनी
|

  तुलसी है संजीवनी, तुलसी रस की खान। …

दिसंबर 
|

  लो आ गया दिसंबर वर्ष भर कि यादें…

नई भोर का स्वागतम
|

  मिटे सभी की दूरियाँ, रहे न अब तकरार।…

नए वर्ष में
|

  इस नए वर्ष में मिट जाएँ चिंता की…

पिता को मुखाग्नि 
|

  हम तो माने थे,  हमारा दिल नहीं …

पुलिस हमारे देश की
|

  पुलिस हमारे देश की,  हँस-हँस…

बेटी की विदाई 
|

  हम तो समझते थे  आँख के आँसू…

भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 011
|

  1. भरे दिल में ख़ुशियों वाले रंग …

महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल
|

  बने विजेता वह सदा, ऐसा मुझे यक़ीन। …

मावठा
|

  सर्दी की पहली बरसात  उपवन में…

मेरा बचपन
|

  भूला बिसरा बचपन याद आता है …

मैं ऐसा क्या लिख दूँ
|

  मैं ऐसा क्या लिख दूँ  कि लोग…

मैंने सोचा अमृत बरसेगा
|

  मैंने सोचा अमृत बरसेगा ग़रीबी हटेगी, …

राष्ट्र और राष्ट्रवाद
|

  राष्ट्र के प्रति जो हमारी निःस्वार्थ…

रिश्ते
|

  जब हम और तुम मिले थे नहीं था अपेक्षाओं…

विक्रम और बेताल 
|

  एक विक्रम था,  एक था बेताल, …

विश्वास का राग
|

  यह विश्वास का जो राग है न—…

शेर–सा दहाड़ तू
|

  बल असीम पास रख लहू, उत्तप्त साँस…

सँभाल कर रखना
|

  सँभाल कर रखना उन लम्हों को—…

संसद में मचता गदर
|

  संसद में मचता गदर, है चिंतन की बात। …

सदा तुम्हारा
|

  तुम क्यों नहीं समझती उस उदास लड़के…

सब ग़म घिर आए
|

  इस खिलखिलाहट का मतलब है वह बहुत उदास…

समकालीन की पीड़ा और चेतावनी
|

  सदियों से इस धरती में समाया हूँ …

सर्दी
|

  “ग़रीबी लड़ती रही ठंडी हवाओं…

सीखते सिखाते हुए 
|

  मैं सीखने पर आऊँ तो क्या कुछ नहीं…

सुनो कन्हैया
|

  (तंत्री छंद)    सुनो कन्हैया,…

स्त्रियों का क्रोधित होना
|

  तुम सुंदर हो तुम्हारी सुंदरता का…

स्वागत है ज़िन्दगी तेरा
|

  स्वागत है ज़िन्दगी तेरा जहाँ तू ले…

हँसो हँसो
|

  हँसो हँसो!  जितना हँस सकते हो…

हम जान नहीं पाते
|

  कल क्या है आज हम जान नहीं पाते शर्त…

हे दयावान! 
|

  दया करो, हे दयावान!  इस निर्धन…

हे प्रभु! 
|

  हे प्रभु! दया करो  मन मेरा भटका …

<

शायरी

अगर प्रश्नों के उत्तर मिल जाते
|

  अगर प्रश्नों के उत्तर मिल जाते, …

अधरों की अबीर . . . 
|

  बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब इसरम मक़बूज़…

डरपोक निडर
|

  डर-डर कर क्यों वो आता-जाता है, …

मुझको मोहब्बत अब भी है शायद
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  बहर: मुतकारिब मुरब्बा असलम सालिम…

कवयित्री: डॉ. मधु संधु

अच्छा लगता है

कविता: अच्छा लगता है; लेखिका: डॉ. मधु संधु; स्वर: नीरा    

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इस अंक की पुस्तकें

दरिया–ए–दिल


1. समर्पण
1. 61. कर दे रौशन दिल को…
2. कुछ शेर
3. पुरोवाक्‌
4. जीवनानुभावों की नींव…
5. बहता हुआ दरिया-ए-दिल
6. शायरी की पुजारन— देवी…
7. ग़ज़ल के आईने में देवी…
8. अपनी बात
9. 1. तू ही एक मेरा हबीब…
10. 2. रात का पर्दा उठा…
11. 3. इक नया संदेश लाती…
12. 4. मुझमें जैसे बसता…
13. 5. तू ही जाने तेरी मर्ज़ी,…
14. 6. नज़र में नज़ारे ये…
15. 7. हाँ यक़ीनन सँवर गया…
16. 8. मन रहा मदहोश मेरा…
17. 9. इंतज़ार उसका किया…
18. 10. अपनी निगाह में न…
19. 11. नाम मेरा मिटा दिया…
20. 12. तुझको ऐ ज़िन्दगी…
21. 13. रात क्या, दिन है…
22. 14. धीरे धीरे दूरियों…
23. 15. गीता का ज्ञान कहता…
24. 16. बंद है जिनके दरीचे,…
25. 17. ग़म की बाहर थी क़तारें…
26. 18. ले गया कोई चुरा…
27. 19. हर किसी से था उलझता…
28. 20. हार मानी ज़िन्दगी…
29. 21. आँचल है बेटियों…
30. 22. आपसे ज़्यादा नहीं…
31. 23. काश दिल से ये दिल…
32. 24. मत दिलाओ याद फिर…
33. 25. तमाम उम्र थे भटके…
34. 26. रात को दिन का इंतज़ार…
35. 27. दिल का क्या है,…
36. 28. है हर पीढ़ी का अपना…
37. 29. क्या ही दिन थे क्या…
38. 30. चुपके से कह रहा…
39. 31. फिर कौन सी ख़ुश्बू…
40. 32. चलते चलते ही शाम…
41. 33. होती बेबस है ग़रीबी…
42. 34. निकला सूरज न था,…
43. 35. क़हर बरपा कर रही…
44. 36 हर हसीं चेहरा तो…
45. 37. दिन बुरे हैं मगर…
47. 39. देख कर रोज़ अख़बार…
48. 40. दूर जब रात भर तू…
49. 41. जीने मरने के वो…
50. 42. ‘हम हैं भारत के'…
51. 43. मेरा तारूफ़ है क्या…
52. 44. यह राज़  क्या है…
53. 45. मेरी  हर बात का…
54. 46. दिल को ऐसा ख़ुमार…
55. 47. मेरा घरबार है अज़ीज़…
56. 48. तेरा इकरार है अज़ीज़…
57. 49. पार टूटी हुई कश्ती…
58. 50. ख़ुद की नज़रों में…
59. 51. हमारा क्या है सरमाया…
60. 52. जो सदियों से रिश्ते…
61. 53. क्या जाने मैंने…
62. 54. सूद पर सूद इकट्ठा…
63. 55. हमने आँगन की दरारों…
64. 56. महरबां ज़िन्दगी क्या…
65. 57. तमाम उम्र थे भटके…
66. 58. ख़त्म जल्दी मामला…
67. 59. सहरा सहरा ज़िन्दगी…
68. 60. वो मानते भी मुझे…
69. 62. क्या ये क़िस्मत…
71. 64. खो गया है गाँव मेरा…
72. 65. पढ़े तो कोई दीन-दुखियों…
73. 66 आँखों के आँगन में…
74. 67. नाम तेरा नाम मेरा…
75. 68. ये शाइरी क्या चीज़…
76. 69. दिले-नादां सँभल…
77. 70. हम क़यामत ख़ुद पे…
78. 71. जब ख़ुशी रोई पुराने…
80. 73. उठो सपूतो देश के…
81. 74. घनी छाँव देता वो…
82. 75. रिदा बन गया बद्दुआओं…
83. 76. यह नवाज़िश है ख़ुदा…
84. 77. ज़िन्दगी है या, ये…
85. 78. आँख से आँख हम मिला…
86. 79. जो बात लाई किनारे…
क्रमशः

इस अंक के लेखक

विशेषांक

कैनेडा का हिंदी साहित्य

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विशेषांक सूची

डॉ. शैलजा सक्सेना (विशेषांक संपादक)

मित्रो,  बसंत पंचमी की आप सब को अनंत शुभकामनाएँ! बसंत प्रतीक है जीवन और उल्लास का। साहित्य का बसंत उसके लेखकों की रचनात्मकता है। आज के दिन लेखक माँ सरस्वती से प्रार्थना कर अपने लिए शब्द, भाव, विचार, सद्बुद्धि, ज्ञान और संवेदनशीलता माँगता है, हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि मानव मात्र में जीने की.. आगे पढ़ें

(विशेषांक सह-संपादक)

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