अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ISSN 2292-9754

पूर्व समीक्षित
वर्ष: 21, अंक 270, फरवरी प्रथम अंक, 2025

संपादकीय

समय की गति और सापेक्षता का सिद्धांत
सुमन कुमार घई

  प्रिय मित्रो, वर्ष का पहला महीना बीत भी गया। समय कितनी तेज़ गति से भागता है। समय की अवधारणा क्या है, क्या समय की परिभाषा वैश्विक रूप से नैसर्गिक है? क्या मानव समय को अपने साँचे में ढाल लेता है ताकि वह समय को समझ सके। क्या वास्तव में मनुष्य समय को अपने साँचे में ढालता है या समय व्यक्ति को अपने साँचे ढालता है। यह प्रश्न भी उलझाने वाला है। यह प्रश्न ही व्यक्तिपरक है। ठीक अल्बर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत की तरह। समय की गति कम और अधिक होती रहती है परिस्थितियों के कारण।  संपादकीय बहुत अधिक अमूर्त विचार पर आधारित हो रहा है।...

आगे पढ़ें

साहित्य कुञ्ज के इस अंक में

कहानियाँ

अदृष्ट 
|

(प्रिय पाठको,  मार्च, 2022 के साहित्य…

एक और चेहरा
|

  अब क्या कहूँगा लाखादीन से? उसे कौन-सा…

तमाचा
|

  अंतरिक्ष के हाथ से जैसे ही मोबाइल…

तालियाँ
|

  कॉलेज केन्टीन का गरमा-गरम वातावरण।…

प्रेम पत्र
|

  “ये क्या है?”  “चिट्ठी…

मैं कहाँ आ गयी
|

  मैं एक छोटे से शहर सूरजपुर में रहती…

रविवार की छुट्टी
|

  देर रात सब काम निबटा कर लेटने लगी…

रूममेट
|

  राधिका ने विश्वविद्यालय में सहायक…

समय के पंख 
|

  “यह हुई ना बात! यह कच्चे-पक्के…

सर्प राजकुमार
|

  मूल कहानी: इल रि सरपेंटी; चयन एवं…

क़ीमत
|

  सरपंच ने कहा , “आप, अपनी लड़क़ी…

हास्य/व्यंग्य

आलेख

जन्म पत्रिका और संतान
|

  ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु:…

नेताजी और जबलपुर शहर
|

  महान स्वतंत्रता संग्रामी नेताजी सुभाष…

शनिदेव की दृष्टियों के भेद
|

  शनिदेव एक राशि में ढाई वर्ष तक गोचर…

समीक्षा

क्याप
|

समीक्षित पुस्तक: क्याप (उपन्यास) लेखक: मनोहर श्याम जोशी प्रकाशक: वाणी…

बदलते दिनाँकों की तरह
|

संग्रह: बदलते दिनाँकों की तरह विधा: कविता कवि: राजकुमार कुम्भज प्रकाशक:…

बुद्धिनाथ मिश्र को समझने का सफल प्रयास
|

समीक्षित पुस्तक: बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता सम्पादक: अवनीश सिंह चौहान…

हिंदी ग़ज़ल महत्त्व और मूल्यांकन 
|

चर्चित पुस्तक: हिंदी ग़ज़ल महत्त्व और मूल्यांकन (आलोचना) लेखक: डॉ. ज़ियाउर…

संस्मरण

एक आप बीती
|

  बात १९७१ की मई-जून के महीने की होगी।…

अन्य

कविताएँ

अधूरा
|

  उठती है रोज़ एक सुबह खुलता है एक चारदीवारी…

अपने अन्दर
|

  बैठ के अपने अन्दर झाँकना होगा, …

अवसाद
|

  स्मृतियाँ क्षीण होती दृष्टि में, …

आज़ाद पुरुष
|

  उठो देश के लोगों  ख़ुद के अधिकारों…

उपवन के गीत
|

  उपवन के गीत  जो बनाते थे कभी…

ओस
|

  ओस प्रेमिका की तरह होती है . . .…

कभी नहीं
|

  मनमानी कभी की नहीं,  ज़ुर्रत…

कहता है गणतंत्र!
|

  बात एक ही यूँ सदा, कहता है गणतंत्र। …

कुदाल 
|

  कुदाल छीलती है  धरती का सीना…

कौन हो तुम
|

  हे देविका, मेरी प्रेमिका वास्तव में…

गणतंत्र दिवस है न्यारा!
|

  आओ फिर लहरायें तिरंगा प्यारा, …

ग़ाज़ीपुर, गंगा और इश्क़
|

  ज़िंदगी में तुम भी मिलोगी नहीं पता…

चलते चलते . . . 
|

  चलते चलते  कभी-कभी  भटक…

जनवरी की रात 
|

  जनवरी में तिल था  तिल में गुड़…

जल
|

  जल सींचता है फ़सल को जैसे माँ दूध…

जागे हुए
|

हमने नहीं देखी सुबह की पहली किरण हमने महसूस…

जीवन का आशय
|

  ना ही अर्थ रहित है जीवन ना ही अर्थ…

ताना-बाना
|

  गर रूठ जाए ज़माना कभी  तो बरगद…

ताप
|

  ताप भरता है फ़सलों में जोश वो कहता…

तुम्हारे बाद
|

  नदियों ने जब छला मिट्टी को मिट्टी…

देशभक्त की पुकार 
|

  देश तुझसे,  मैं एक बात कहना…

देशभक्ति
|

  हमारा तन-मन मिट्टी का गुणगान करता…

देहद्रोही
|

  जब बहोत प्यार आता है मुझे तुम पर…

नन्ही गुड़िया
|

  नन्ही नन्ही गुड़िया आई चाँद सितारे…

नहीं देख पाओगे तुम!
|

  (कभी टूट कर चाहा था तुमने, …

पुरुष ऐसे ही होते हैं
|

  मैं तब तक लापरवाह हूँ जब तक तुम्हारी…

पैंडोरा बॉक्स 
|

  मन की अतल गहराइयों में एक बक्सा पड़ा…

प्यार तो प्रखर था
|

  प्यार तो प्रखर था सुबह सा तरुण था, …

प्रजातंत्र का तंत्र
|

  भारत के गणतंत्र की,  ये कैसी…

बचपन की ओर
|

  सत्ताईस बरस का हूँ एक चौथाई टूट चुका…

बेचैनी 
|

  यह बेचैनी क्या है?  अधूरी आकांक्षा? …

महाकुंभ
|

  महाकुंभ के अमृत जल में भाव-भक्ति…

माया के भ्रम 
|

  अपने जैसा होने को भी  क्या क्या…

मिट्टी 
|

  मिट्टी माँ की तरह  ही होती है…

मित्र से बात 
|

  और सुना,  इतने दिन,  कहाँ…

मेरा क्षितिज खो गया!
|

  उस दिन मैंने संकष्टी चतुर्थी का त्योहार…

मैं स्वयं
|

  कोई मुझे समझे न समझे मैं समझूँगा…

मैंने भी एक किताब लिखी है
|

  मैंने भी एक किताब लिखी है, जिसमें…

मोनालिसा 
|

  छा गई मोनालिसा सोशल मीडिया पर …

राजीव कुमार – 042
|

  1. कोई सितम बाक़ी होगा सनम फिर जो…

विडंबना
|

  रोज़  सूरज के आने के साथ शुरू…

शाह हो या हो फ़क़ीर
|

  ख़र्च हो जाएँगे ख़र्च होना होगा, …

सरस्वती वंदना
|

हे ज्योतिर्मयी, ज्ञान की देवी, ऐसा वर दे…

सूखा
|

  सूखा इसलिये भी पड़ता है कि आदमी की…

सूरज
|

  सूरज पिता की तरह होता है, जो धूप…

स्त्री
|

शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती  तीनों का…

स्वीकार करना तुम
|

  जिस रूप में तुमको मिलूँ प्रिये! …

हवा
|

  हवा बल प्रदान करती है, भरती है जज़्बा…

हाँ मुझे इश्क़ है तुझसे
|

  हाँ मुझे इश्क़ है तुझ से,  क्या…

ख़ूबसूरती 
|

  ख़ूबसूरती!  सिर्फ़ शक्ल व सूरत…

ज़रा सी अनबन
|

  ज़रा सी अनबन से रिश्ते ख़राब न कीजिए, …

<

शायरी

इस शहर की कोई बात कहो
|

  इस शहर की कोई बात कहो,  एक ग़ज़ल…

तुम्हारी हरकतों से कोई तो ख़फ़ा होगा
|

  बहर: मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़…

निगोड़ा दर्द
|

  दर्द निगोड़ा यह जाता क्यों नहीं, …

पल-पल का पूछते हिसाब
|

  बहर:  बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब…

पास इतनी, अभी मैं फ़ुर्सत रखता हूँ
|

  बहर : हज़ज मुसम्मन अख़रब अख़्र्म अबतर…

मुझे जब से अपना बनाया है उसने
|

  बहर: मुतकारिब मुसम्मन सालिम अरकान:…

लाख पर्दा करो ज़माने से
|

  बहर: ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू…

कवयित्री: डॉ. मधु संधु

अच्छा लगता है

कविता: अच्छा लगता है; लेखिका: डॉ. मधु संधु; स्वर: नीरा    

विडिओ देखें

इस अंक की पुस्तकें

दरिया–ए–दिल


1. समर्पण
1. 61. कर दे रौशन दिल को…
2. कुछ शेर
3. पुरोवाक्‌
4. जीवनानुभावों की नींव…
5. बहता हुआ दरिया-ए-दिल
6. शायरी की पुजारन— देवी…
7. ग़ज़ल के आईने में देवी…
8. अपनी बात
9. 1. तू ही एक मेरा हबीब…
10. 2. रात का पर्दा उठा…
11. 3. इक नया संदेश लाती…
12. 4. मुझमें जैसे बसता…
13. 5. तू ही जाने तेरी मर्ज़ी,…
14. 6. नज़र में नज़ारे ये…
15. 7. हाँ यक़ीनन सँवर गया…
16. 8. मन रहा मदहोश मेरा…
17. 9. इंतज़ार उसका किया…
18. 10. अपनी निगाह में न…
19. 11. नाम मेरा मिटा दिया…
20. 12. तुझको ऐ ज़िन्दगी…
21. 13. रात क्या, दिन है…
22. 14. धीरे धीरे दूरियों…
23. 15. गीता का ज्ञान कहता…
24. 16. बंद है जिनके दरीचे,…
25. 17. ग़म की बाहर थी क़तारें…
26. 18. ले गया कोई चुरा…
27. 19. हर किसी से था उलझता…
28. 20. हार मानी ज़िन्दगी…
29. 21. आँचल है बेटियों…
30. 22. आपसे ज़्यादा नहीं…
31. 23. काश दिल से ये दिल…
32. 24. मत दिलाओ याद फिर…
33. 25. तमाम उम्र थे भटके…
34. 26. रात को दिन का इंतज़ार…
35. 27. दिल का क्या है,…
36. 28. है हर पीढ़ी का अपना…
37. 29. क्या ही दिन थे क्या…
38. 30. चुपके से कह रहा…
39. 31. फिर कौन सी ख़ुश्बू…
40. 32. चलते चलते ही शाम…
41. 33. होती बेबस है ग़रीबी…
42. 34. निकला सूरज न था,…
43. 35. क़हर बरपा कर रही…
44. 36 हर हसीं चेहरा तो…
45. 37. दिन बुरे हैं मगर…
47. 39. देख कर रोज़ अख़बार…
48. 40. दूर जब रात भर तू…
49. 41. जीने मरने के वो…
50. 42. ‘हम हैं भारत के'…
51. 43. मेरा तारूफ़ है क्या…
52. 44. यह राज़  क्या है…
53. 45. मेरी  हर बात का…
54. 46. दिल को ऐसा ख़ुमार…
55. 47. मेरा घरबार है अज़ीज़…
56. 48. तेरा इकरार है अज़ीज़…
57. 49. पार टूटी हुई कश्ती…
58. 50. ख़ुद की नज़रों में…
59. 51. हमारा क्या है सरमाया…
60. 52. जो सदियों से रिश्ते…
61. 53. क्या जाने मैंने…
62. 54. सूद पर सूद इकट्ठा…
63. 55. हमने आँगन की दरारों…
64. 56. महरबां ज़िन्दगी क्या…
65. 57. तमाम उम्र थे भटके…
66. 58. ख़त्म जल्दी मामला…
67. 59. सहरा सहरा ज़िन्दगी…
68. 60. वो मानते भी मुझे…
69. 62. क्या ये क़िस्मत…
71. 64. खो गया है गाँव मेरा…
72. 65. पढ़े तो कोई दीन-दुखियों…
73. 66 आँखों के आँगन में…
74. 67. नाम तेरा नाम मेरा…
75. 68. ये शाइरी क्या चीज़…
76. 69. दिले-नादां सँभल…
77. 70. हम क़यामत ख़ुद पे…
78. 71. जब ख़ुशी रोई पुराने…
80. 73. उठो सपूतो देश के…
81. 74. घनी छाँव देता वो…
82. 75. रिदा बन गया बद्दुआओं…
83. 76. यह नवाज़िश है ख़ुदा…
84. 77. ज़िन्दगी है या, ये…
85. 78. आँख से आँख हम मिला…
86. 79. जो बात लाई किनारे…
87. 80. चेहरे की ओर देख,…
88. 81. मैं जहाँ के सभी…
89. 82. किसने लिखी है वसीयत,…
90. 83. थरथराता रह गया डर…
91. 84. वो कैसे बोझ का दिल…
92. 85. दोस्त बनकर यूँ गुलों…
93. 86. पंछियों के बालों…
94. 87. अश्क आँखों से गर…
95. 88. कैसे उजड़े हैं आशियाँ…
96. 89. ये वो है कशकोल जिसका…
97. 90. है बाग़ बाग़ मिरा…
97. 90. है बाग़ बाग़ मिरा…
97. 90. है बाग़ बाग़ मिरा…
98. 91. सिसकियों से वास्ता…
99. 92. बेवजह होती हैं जब…
100. 93. देखो समझो फूल काँटे…
101. 94. जूझा तब तब वो अपनी…
102. 95. इन्द्रधनुष-सा रंग…
103. 97. अपनों के बीच ग़ैर…
104. 97. तारीकियाँ मिटा दो,…
105. 98. बेसबब, बेवक़्त अपनों…
106. 99. वो खिवैया बनके आएगा…
क्रमशः

इस अंक के लेखक

विशेषांक

कैनेडा का हिंदी साहित्य

विशेषांक पर जायें
विशेषांक सूची

डॉ. शैलजा सक्सेना (विशेषांक संपादक)

मित्रो,  बसंत पंचमी की आप सब को अनंत शुभकामनाएँ! बसंत प्रतीक है जीवन और उल्लास का। साहित्य का बसंत उसके लेखकों की रचनात्मकता है। आज के दिन लेखक माँ सरस्वती से प्रार्थना कर अपने लिए शब्द, भाव, विचार, सद्बुद्धि, ज्ञान और संवेदनशीलता माँगता है, हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि मानव मात्र में जीने की.. आगे पढ़ें

(विशेषांक सह-संपादक)

समाचार

साहित्य जगत - विदेश

साहित्य जगत - भारत

साहित्य जगत - भारत