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सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

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ISSN 2292-9754

पूर्व समीक्षित
वर्ष: 21, अंक 280, जुलाई प्रथम अंक, 2025

संपादकीय

कृत्रिम मेधा (एआई) वरदान या अभिशाप
सुमन कुमार घई

  एक वर्ष पूर्व कभी-कभार हमें कृत्रिम मेधा (एआई) के निर्माण, विकास, सम्भावनाओं इत्यादि के विषय पर कुछ सुनाई दे जाता था। उस समय हम नहीं जानते थे कि यह उपकरण (मैं इसे एक उपकरण ही मानता हूँ) इतनी शीघ्र हमारे दैनिक जीवन का एक अंश बन जाएगा। अंश भी ऐसा जो दिन-प्रतिदिन, प्रत्यक्ष और या परोक्ष रूप में हमारे जीवन को ही नियंत्रित कर रहा है और यह नियंत्रण भी बढ़ता जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है, इससे समझना कठिन नहीं है। हम सब जानते हैं कि किस तरह हम कम्प्यूटर तकनीकी पर इतना निर्भर हो चुके हैं कि इसके प्रयोग के बिना हम जी...

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साहित्य कुञ्ज के इस अंक में

कहानियाँ

अगर शीशा दरका तो . . . 
|

  ड्राइवर ने गाड़ी में ब्रेक लगाए तो…

कानों में जूँ क्यों नहीं रेंगती
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  हाईकोर्ट खचाखच भरा हुआ था। सभी प्रतीक्षा…

चाह
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  वे दोनों घर के लोगों और अपने कामों…

जादू के हाथ
|

  शहर से कुछ दूरी पर था उसका गाँव।…

ननिहाल बब्बू का
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  तीन भाईयों और चार बहनों में सबसे…

पानी पानी हो गया
|

  वर्षा ऋतु का आरंभ समझो। रात, दोपहर…

बँधी हुई मुट्ठी
|

  पेशे से मैं एक नर्स हूँ। ऑपरेशन के…

बेला
|

  मूल कहानी: एरबाबियांका; चयन एवं पुनर्कथन:…

लीच 
|

  डोडीताल ट्रैक पर बेबर की पगडंडी के…

शिक्षा की पाँच दीपशिखाएँ
|

  1. काग़ज़ से आगे रीमा हर बार परीक्षा…

सर, क्या आप ख़ुश हैं?
|

  राजीव वर्मा लखनऊ के एक निजी अंग्रेज़ी…

हत्यारे सा चेहरा
|

  “बच्चों, ज़रा जाकर देखो तो…

हास्य/व्यंग्य

होनहार युवराज
|

  आज दरबार की अति गोपनीय मीटिंग के…

ग़म-ए-रोज़गार
|

  “दुनिया ने तेरी याद से बेगाना…

आलेख

योग: तन, मन और आत्मा के मिलन का विज्ञान
|

  हर साल 21 जून को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय…

समीक्षा

ईश्वरानंद कविता की समीक्षा
|

कविता:  ईश्वरानंद (कविता कोश) लेखिका: डॉ. पुष्पिता अवस्थी  …

फ़न और शख़्सियत एक आत्मीय दृष्टिकोण . . . 
|

शीर्षक: तेरी–मेरी कहानी (लघुकथा संग्रह)  लेखिका: डॉ. विभा कुमरिया…

संस्मरण

कविताएँ

अजनबीपन की दीवार
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  एक भोली सी लड़की कुछ ख़्वाब लिए, …

अपने हाथों से
|

  वे लोग  कम पढ़े-लिखे थे …

अप्सरा 
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(सॉनेट)    तुम्हें देखा, पर न…

आईना
|

  आईना वही है— चेहरे बदल गए, …

आत्म-व्यथा
|

  मैं कौन हूँ?  रोज़ सुबह घर से…

एक बरसात ऐसी भी
|

  मूसलाधार बरसात हो रही थी  उसी…

काश . . .
|

न जात-पाँत होती, न बग़ावत होती,  न…

घर के माने
|

  मिट्टी और ईंटों के ढेर  को घर…

चाय पियो जी
|

(देव घनाक्षरी छन्द)    चाहत चहुँ…

ज्वालामुखी
|

  मैं चुप हूँ,  जैसे कोई पर्वत—…

तात और बेटी
|

  देख कर बेटी की चहचाहट, प्रति-तात…

नन्ही परी
|

  राह में हर दिन वह दिखती,  मनमोहक…

पत्रलेखा
|

(सॉनेट)    श्रंगों पर आच्छादित…

पानी-पानी
|

  काग़ज़ पी गये,  सारा पानी, …

पिता: एक अनकहा संवाद
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(विश्व पितृ दिवस पर एक कविता)   पिता …

पुनःस्मृति
|

  मेरी हर बात में तुमको मेरी हर मुलाक़ात…

प्रीत
|

  ‘प्रीत’ जो लगी है तुझसे…

प्लास्टिक का प्रहार
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(देव घनाक्षरी छन्द)   सोचूँ सोच-सोचकर…

बंजारा
|

  मैं बंजारा हूँ— ना मेरा कोई…

बसंत से पावस तक
|

  इस धरा पर वसंत की ऋतु आने पर, …

भुइयाँ भवानी
|

  न ऊँचा मंदिर, न सोने का मुकुट, …

मन मरुस्थल
|

  भीतर कहीं एक मरुस्थल है— जहाँ…

मेरा अनुपात
|

मेरा अनुपात,  तुमसे,  सामंजस्य…

रातरानी
|

  जब साँझ बिन बोले उतरती है आँगन पर, …

रिक्त संपादकीय
|

  स्याही की धार थम गई,  शब्दों…

रोटी के रंग
|

  (मनहरण कवित्त छन्द) औरत अकेली अकुलाती…

विज्ञानकु: विदुषी मैत्रेयी
|

  ब्रह्मवादिनी मैत्रेयी थी महान गुणों…

विज्ञानकु: गार्गी वाचक्नवी
|

  वेदों की ज्ञाता गार्गी को तर्क शास्त्र…

सच कहते हैं लोग
|

  कहते हैं लोग अपने पिता की छवि हो…

समय बड़ा बलवान 
|

  समय बड़ा बलवान  समय पर राजा …

सौतन
|

  (मनहरण कवित्त छन्द) सपत्नी स्नेह…

स्त्री होने की कविता
|

  सुनो लड़कियो  तुम्हारी पलकों…

हल चलाता बुद्ध
|

  वो बोलता नहीं,  बस सुबह सबसे…

<

शायरी

प्रेम
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  प्रेम को जीवंत सदा बनाए रहा कीजिए। …

कवयित्री: डॉ. मधु संधु

अच्छा लगता है

कविता: अच्छा लगता है; लेखिका: डॉ. मधु संधु; स्वर: नीरा    

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इस अंक की पुस्तकें

भीतर से मैं कितनी खाली


1. प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
3. बहुआयामी व्यक्तित्व…
4. कुछ तो कहूँ . . .
5. मेरी बात
6. 1. सच मानिए वही कविता…
7. 2. तुम स्वामी मैं दासी
8. 3. सुप्रभात
9. 4. प्रलय काल है पुकार…
10. 5. भीतर से मैं कितनी…
11. 6. एक दिन की दिनचर्या
12. 7. उम्मीद नहीं छोड़ी…
13. 8. मैं मौत के घाट उतारी…
14. 9. क्या करें? 
15. 10. समय का संकट
16. 11. उल्लास के पल
17. 12. रैन कहाँ जो सोवत…
18. 13. पाती भारत माँ के…
19. 14. सुख दुख की लोरी
20. 15. नियति
21. 16. वे घर नहीं घराने…
22. 17. यादों में वो बातें
23. 18. मन की गाँठें
24. 19. रेंग रहे हैं
25. 20. मुबारक साल 2021
26. 21. जोश
27. 22. इल्म और तकनीक
28. 23. शर्म और सज्दा
29. 24. लम्स
30. 25. अपनी नौका खेव रहे…
31. 26. नया साल
32. 27. बहाव निरंतर जारी…
33. 28. तनाव
34. 29. यह दर्द भी अजीब…
35. 30. रात का मौन
36. 31. रावण जल रहा
37. 32. लौट चलो घर अपने
38. 33. उम्मीद बरस रही है
39. 34. क़ुदरत परोस रही
40. 35. रेत
41. 36. मेरी यादों का सागर
42. 37. मन का उजाला
43. 38. लड़ाई लड़नी है फिर…
44. 39. सिहर रहा है वुजूद
45. 40. मेरी जवाबदारी
क्रमशः

इस अंक के लेखक

विशेषांक

कैनेडा का हिंदी साहित्य

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विशेषांक सूची

डॉ. शैलजा सक्सेना (विशेषांक संपादक)

मित्रो,  बसंत पंचमी की आप सब को अनंत शुभकामनाएँ! बसंत प्रतीक है जीवन और उल्लास का। साहित्य का बसंत उसके लेखकों की रचनात्मकता है। आज के दिन लेखक माँ सरस्वती से प्रार्थना कर अपने लिए शब्द, भाव, विचार, सद्बुद्धि, ज्ञान और संवेदनशीलता माँगता है, हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि मानव मात्र में जीने की.. आगे पढ़ें

(विशेषांक सह-संपादक)

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