ISSN 2292-9754
पूर्व समीक्षित
वर्ष: 21, अंक 270, फरवरी प्रथम अंक, 2025
संपादकीय
समय की गति और सापेक्षता का सिद्धांत
सुमन कुमार घईप्रिय मित्रो, वर्ष का पहला महीना बीत भी गया। समय कितनी तेज़ गति से भागता है। समय की अवधारणा क्या है, क्या समय की परिभाषा वैश्विक रूप से नैसर्गिक है? क्या मानव समय को अपने साँचे में ढाल लेता है ताकि वह समय को समझ सके। क्या वास्तव में मनुष्य समय को अपने साँचे में ढालता है या समय व्यक्ति को अपने साँचे ढालता है। यह प्रश्न भी उलझाने वाला है। यह प्रश्न ही व्यक्तिपरक है। ठीक अल्बर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत की तरह। समय की गति कम और अधिक होती रहती है परिस्थितियों के कारण। संपादकीय बहुत अधिक अमूर्त विचार पर आधारित हो रहा है।...
साहित्य कुञ्ज के इस अंक में
कहानियाँ
हास्य/व्यंग्य
आँकड़े बोलते हैं जी
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | मुकेश गर्ग ‘असीमित’न्यूज़पेपर पढ़ रहा था, एक ख़बर देखकर चौंका।…
आहार दमदार आज के
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | प्रीति सुरेंद्र सिंह परमारभोज्य पदार्थ खाए नहीं जाते हैं भाई…
हुज़ूर इस क़द्र हॉर्न बजाते न चलिये
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अख़तर अलीकोई सितार बजाता है कोई गिटार बजाता…
आलेख
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को समझने में कठिनाइयाँ
ऐतिहासिक | सत्यवान सौरभसिंधु घाटी सभ्यता की लिपि जिसमें…
समीक्षा
क्याप
पुस्तक समीक्षा | विजय नगरकरसमीक्षित पुस्तक: क्याप (उपन्यास) लेखक: मनोहर श्याम जोशी प्रकाशक: वाणी…
बदलते दिनाँकों की तरह
पुस्तक समीक्षा | खेमकरण ‘सोमन’संग्रह: बदलते दिनाँकों की तरह विधा: कविता कवि: राजकुमार कुम्भज प्रकाशक:…
बुद्धिनाथ मिश्र को समझने का सफल प्रयास
पुस्तक समीक्षा | रामनारायण रमणसमीक्षित पुस्तक: बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता सम्पादक: अवनीश सिंह चौहान…
समवेत संकलनों का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव: ‘नवगीत अर्द्धशतक’ (खण्ड-एक)
पुस्तक समीक्षा | अवनीश सिंह चौहानकृति: नवगीत अर्द्धशतक (खण्ड-एक) सम्पादक: शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'’…
हिंदी ग़ज़ल महत्त्व और मूल्यांकन
पुस्तक चर्चा | ज़ियाउर रहमान जाफरीचर्चित पुस्तक: हिंदी ग़ज़ल महत्त्व और मूल्यांकन (आलोचना) लेखक: डॉ. ज़ियाउर…
संस्मरण
पिता जो हमें सर्वशक्तिमान लगते थे (भाग-1)
व्यक्ति चित्र | प्रकाश मनुभाग—1 पिता के बारे में लिखते हुए उनकी…
मैंने कथाकार कमलेश्वर को बतौर संपादक ही जाना
स्मृति लेख | शैलेन्द्र चौहानकल शिवपुरी से मित्र ज़ाहिद खान का…
अन्य
सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में हिंदी और हिंदीतर भाषाओं के उन्नयन हेतु एक समन्वित अभियान: विशेष संदर्भ-अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन-2025
कार्यक्रम रिपोर्ट | मनोज मोक्षेंद्रआज की तारीख़ में हिंदी भाषा और साहित्य…
कविताएँ
शायरी
कवयित्री: डॉ. मधु संधु
इस अंक की पुस्तकें
दरिया–ए–दिल
ग़ज़ल
1. समर्पण
1. 61. कर दे रौशन दिल को…
2. कुछ शेर
3. पुरोवाक्
4. जीवनानुभावों की नींव…
5. बहता हुआ दरिया-ए-दिल
6. शायरी की पुजारन— देवी…
7. ग़ज़ल के आईने में देवी…
8. अपनी बात
9. 1. तू ही एक मेरा हबीब…
10. 2. रात का पर्दा उठा…
11. 3. इक नया संदेश लाती…
12. 4. मुझमें जैसे बसता…
13. 5. तू ही जाने तेरी मर्ज़ी,…
14. 6. नज़र में नज़ारे ये…
15. 7. हाँ यक़ीनन सँवर गया…
16. 8. मन रहा मदहोश मेरा…
17. 9. इंतज़ार उसका किया…
18. 10. अपनी निगाह में न…
19. 11. नाम मेरा मिटा दिया…
20. 12. तुझको ऐ ज़िन्दगी…
21. 13. रात क्या, दिन है…
22. 14. धीरे धीरे दूरियों…
23. 15. गीता का ज्ञान कहता…
24. 16. बंद है जिनके दरीचे,…
25. 17. ग़म की बाहर थी क़तारें…
26. 18. ले गया कोई चुरा…
27. 19. हर किसी से था उलझता…
28. 20. हार मानी ज़िन्दगी…
29. 21. आँचल है बेटियों…
30. 22. आपसे ज़्यादा नहीं…
31. 23. काश दिल से ये दिल…
32. 24. मत दिलाओ याद फिर…
33. 25. तमाम उम्र थे भटके…
34. 26. रात को दिन का इंतज़ार…
35. 27. दिल का क्या है,…
36. 28. है हर पीढ़ी का अपना…
37. 29. क्या ही दिन थे क्या…
38. 30. चुपके से कह रहा…
39. 31. फिर कौन सी ख़ुश्बू…
40. 32. चलते चलते ही शाम…
41. 33. होती बेबस है ग़रीबी…
42. 34. निकला सूरज न था,…
43. 35. क़हर बरपा कर रही…
44. 36 हर हसीं चेहरा तो…
45. 37. दिन बुरे हैं मगर…
47. 39. देख कर रोज़ अख़बार…
48. 40. दूर जब रात भर तू…
49. 41. जीने मरने के वो…
50. 42. ‘हम हैं भारत के'…
51. 43. मेरा तारूफ़ है क्या…
52. 44. यह राज़ क्या है…
53. 45. मेरी हर बात का…
54. 46. दिल को ऐसा ख़ुमार…
55. 47. मेरा घरबार है अज़ीज़…
56. 48. तेरा इकरार है अज़ीज़…
57. 49. पार टूटी हुई कश्ती…
58. 50. ख़ुद की नज़रों में…
59. 51. हमारा क्या है सरमाया…
60. 52. जो सदियों से रिश्ते…
61. 53. क्या जाने मैंने…
62. 54. सूद पर सूद इकट्ठा…
63. 55. हमने आँगन की दरारों…
64. 56. महरबां ज़िन्दगी क्या…
65. 57. तमाम उम्र थे भटके…
66. 58. ख़त्म जल्दी मामला…
67. 59. सहरा सहरा ज़िन्दगी…
68. 60. वो मानते भी मुझे…
69. 62. क्या ये क़िस्मत…
71. 64. खो गया है गाँव मेरा…
72. 65. पढ़े तो कोई दीन-दुखियों…
73. 66 आँखों के आँगन में…
74. 67. नाम तेरा नाम मेरा…
75. 68. ये शाइरी क्या चीज़…
76. 69. दिले-नादां सँभल…
77. 70. हम क़यामत ख़ुद पे…
78. 71. जब ख़ुशी रोई पुराने…
80. 73. उठो सपूतो देश के…
81. 74. घनी छाँव देता वो…
82. 75. रिदा बन गया बद्दुआओं…
83. 76. यह नवाज़िश है ख़ुदा…
84. 77. ज़िन्दगी है या, ये…
85. 78. आँख से आँख हम मिला…
86. 79. जो बात लाई किनारे…
87. 80. चेहरे की ओर देख,…
88. 81. मैं जहाँ के सभी…
89. 82. किसने लिखी है वसीयत,…
90. 83. थरथराता रह गया डर…
91. 84. वो कैसे बोझ का दिल…
92. 85. दोस्त बनकर यूँ गुलों…
93. 86. पंछियों के बालों…
94. 87. अश्क आँखों से गर…
95. 88. कैसे उजड़े हैं आशियाँ…
96. 89. ये वो है कशकोल जिसका…
97. 90. है बाग़ बाग़ मिरा…
97. 90. है बाग़ बाग़ मिरा…
97. 90. है बाग़ बाग़ मिरा…
98. 91. सिसकियों से वास्ता…
99. 92. बेवजह होती हैं जब…
100. 93. देखो समझो फूल काँटे…
101. 94. जूझा तब तब वो अपनी…
102. 95. इन्द्रधनुष-सा रंग…
103. 97. अपनों के बीच ग़ैर…
104. 97. तारीकियाँ मिटा दो,…
105. 98. बेसबब, बेवक़्त अपनों…
106. 99. वो खिवैया बनके आएगा…
क्रमशः
इस अंक के लेखक
डॉ. शैलजा सक्सेना (विशेषांक संपादक)
मित्रो, बसंत पंचमी की आप सब को अनंत शुभकामनाएँ! बसंत प्रतीक है जीवन और उल्लास का। साहित्य का बसंत उसके लेखकों की रचनात्मकता है। आज के दिन लेखक माँ सरस्वती से प्रार्थना कर अपने लिए शब्द, भाव, विचार, सद्बुद्धि, ज्ञान और संवेदनशीलता माँगता है, हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि मानव मात्र में जीने की.. आगे पढ़ें
(विशेषांक सह-संपादक)
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साहित्य जगत - भारत
साठोत्तर काव्य आंदोलन में संघर्ष मूलक काव्य की प्रवृत्तियाँ—संगोष्ठी संपन्न: युवा उत्कर्ष मंच
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ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ का विमोचन संपन्न
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