महिला सशक्तिकरण
काव्य साहित्य | कविता रिया गुलाटी15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
मैं नारी हूँ, कमज़ोर नहीं,
चुनौतियों का डटकर सामना करना है मेरे लिए सही।
रिश्तों की डोर को प्यार से जोड़ती हूँ,
न जाने क्यों बीच में मैं अपनी पहचान खो देती हूँ।
सीखा हैं मैंने ज़िन्दगी में आगे बढ़ना,
अब नहीं घर से बाहर निकलने से डरना।
चलना है अब मुझे सर उठाकर,
ताकि मेरी कामयाबी पर भी सब करे फ़ख़्र।
अपने सपनों को हक़ीक़त में है मुझे बदलना,
लोगों की नकारात्मक बातों में अब नहीं उलझना।
औरों से ज़्यादा मुझे अपने आप में स्वयं विश्वास करना।
मक़सद है मेरा कि इस भीड़ में अब और नहीं भटकना।
सीख रही हूँ अपने आप से प्यार करना,
अपने आत्म सम्मान के लिए बिलकुल नहीं किसी के आगे झुकना।
दुनिया में अपना नाम कमाऊँगी,
और अन्य नारियों के लिए एक सही मिसाल बनूँगी।
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