16 शृंगार
काव्य साहित्य | कविता मधु शर्मा1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने का सोचा है,
आपका भी सहयोग चाहिए फिर देखिए कमाल होता है।
बर्मिंघम की बेटियों को सोलह शृंगार करना सिखाना है,
सिर से पाँव तक के आभूषणों से उन्हें परिचित कराना है।
क्रमिक सूची कुछ यूँ होगी:
करेंगी परिश्रम तो माथे पर भाग्य रूपी बिंदिया चमकाएँगी,
लज्जा होगी नयनों में तो, मात काजल को भी दे जाएँगी।
शर्म से हुए लाल गालों के आगे हर रंग फीका पड़ जाएगा,
मधुर वाणी के आगे मोल लिप्स्टिक का कुछ न रह जाएगा।
हाथों में मेहँदी फिर भी हर काम में बढ़चढ़ कर हाथ बटाएँगी,
चूड़ियों भरी कलाई से बेटियाँ क़लम-तलवार दोनों चलाएँगी।
उनके पाँवों का अनुपम महावर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाएगा,
आने वाली पीढ़ियाँ उस पर चलीं तो डर दुम दबा दौड़ जाएगा।
झुमके, बाज़ूबंद, कंगन, कमरबंद और पहनेंगी बेटियाँ पायल,
परन्तु स्त्री-जाति अपमानित हुई तो बन जाएँगी शेरनी घायल।
उनका पहरावा रंगीला व अति मनमोहक परन्तु सादा सा होगा,
देखने में गुड़िया, लेकिन भीतरी मनोबल उनका दुर्गा सा होगा।
इत्र गुणों का लगा कर बेटियाँ जब जहाँ-जहाँ से भी गुज़रेंगीं,
बरसों तक उनके नाम व काम की महक वहाँ महकती मिलेगी।
ओढ़नी मान-मर्यादा की ओढ़ जब वे संसार के सन्मुख आएँगी,
यू.के. के साथ-साथ पृथ्वी की चारों दिशाएँ उनके गुण गाएँगी।
मुकुट सफलता का पहन जब जग-रूपी मन्च पर मुस्कुराएँगी,
गुंडों और मवालियों की गर्दनें तब शर्म से स्वयं झुक जाएँगी।
कन्या को भारी बोझ समझ उन्हें दुत्कारने वाले उनके परिवार,
देखिएगा! करने लगेंगे बेटियों से भी बेटों समान लाड़-दुलार।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता
- 16 का अंक
- 16 शृंगार
- 6 जून यूक्रेन-वासियों द्वारा दी गई दुहाई
- अंगदान
- अकेली है तन्हा नहीं
- अग्निदाह
- अधूरापन
- असली दोस्त
- आशा या निराशा
- उपहार/तोहफ़ा/सौग़ात/भेंट
- ऐन्टाल्या में डूबता सूर्य
- ऐसे-वैसे लोग
- कविता क्यों लिखती हूँ
- काहे दंभ भरे ओ इंसान
- कुछ और कड़वे सच – 02
- कुछ कड़वे सच — 01
- कुछ न रहेगा
- कैसे-कैसे सेल्ज़मैन
- कोना-कोना कोरोना-फ़्री
- ख़ुश है अब वह
- खाते-पीते घरों के प्रवासी
- गति
- गुहार दिल की
- जल
- दीया हूँ
- दोषी
- नदिया का ख़त सागर के नाम
- पतझड़ के पत्ते
- पारी जीती कभी हारी
- बहन-बेटियों की आवाज़
- बेटा होने का हक़
- बेटी बचाओ
- भयभीत भगवान
- भानुमति
- भेद-भाव
- माँ की गोद
- मेरा पहला आँसू
- मेरी अन्तिम इच्छा
- मेरी मातृ-भूमि
- मेरी हमसायी
- यह इंग्लिस्तान
- यादें मीठी-कड़वी
- यादों का भँवर
- लंगर
- लोरी ग़रीब माँ की
- वह अनामिका
- विदेशी रक्षा-बन्धन
- विवश अश्व
- शिकारी
- संवेदनशील कवि
- सती इक्कीसवीं सदी की
- समय की चादर
- सोच
- सौतन
- हेर-फेर भिन्नार्थक शब्दों का
- 14 जून वाले अभागे अप्रवासी
- अपने-अपने दुखड़े
- गये बरस
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
सजल
चिन्तन
लघुकथा
- अकेलेपन का बोझ
- अपराधी कौन?
- अशान्त आत्मा
- असाधारण सा आमंत्रण
- अहंकारी
- आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
- आदान-प्रदान
- आभारी
- उपद्रव
- उसका सुधरना
- उसे जीने दीजिए
- कॉफ़ी
- कौन है दोषी?
- गंगाजल
- गिफ़्ट
- घिनौना बदलाव
- देर आये दुरुस्त आये
- दोगलापन
- दोषारोपण
- नासमझ लोग
- पहली पहली धारणा
- पानी का बुलबुला
- पिता व बेटी
- प्रेम का धागा
- बंदीगृह
- बड़ा मुँह छोटी बात
- बहकावा
- भाग्यवान
- मोटा असामी
- सहानुभूति व संवेदना में अंतर
- सहारा
- स्टेटस
- स्वार्थ
- सोच, पाश्चात्य बनाम प्राच्य
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
shaily 2022/11/29 03:45 PM
ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी कविता का एक-एक शब्द सच हो। लडकियों को समाज, परिवार में स्थान मिले, उनमें जागृति और मनोबल आये। साधुवाद