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16 शृंगार

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने का सोचा है, 
आपका भी सहयोग चाहिए फिर देखिए कमाल होता है। 
बर्मिंघम की बेटियों को सोलह शृंगार करना सिखाना है, 
सिर से पाँव तक के आभूषणों से उन्हें परिचित कराना है। 
 
क्रमिक सूची कुछ यूँ होगी:
 
करेंगी परिश्रम तो माथे पर भाग्य रूपी बिंदिया चमकाएँगी, 
लज्जा होगी नयनों में तो, मात काजल को भी दे जाएँगी। 
शर्म से हुए लाल गालों के आगे हर रंग फीका पड़ जाएगा, 
मधुर वाणी के आगे मोल लिप्स्टिक का कुछ न रह जाएगा। 
 
हाथों में मेहँदी फिर भी हर काम में बढ़चढ़ कर हाथ बटाएँगी, 
चूड़ियों भरी कलाई से बेटियाँ क़लम-तलवार दोनों चलाएँगी। 
उनके पाँवों का अनुपम महावर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाएगा, 
आने वाली पीढ़ियाँ उस पर चलीं तो डर दुम दबा दौड़ जाएगा। 
 
झुमके, बाज़ूबंद, कंगन, कमरबंद और पहनेंगी बेटियाँ पायल, 
परन्तु स्त्री-जाति अपमानित हुई तो बन जाएँगी शेरनी घायल। 
उनका पहरावा रंगीला व अति मनमोहक परन्तु सादा सा होगा, 
देखने में गुड़िया, लेकिन भीतरी मनोबल उनका दुर्गा सा होगा। 
 
इत्र गुणों का लगा कर बेटियाँ जब जहाँ-जहाँ से भी गुज़रेंगीं, 
बरसों तक उनके नाम व काम की महक वहाँ महकती मिलेगी। 
ओढ़नी मान-मर्यादा की ओढ़ जब वे संसार के सन्मुख आएँगी, 
यू.के. के साथ-साथ पृथ्वी की चारों दिशाएँ उनके गुण गाएँगी। 
 
मुकुट सफलता का पहन जब जग-रूपी मन्च पर मुस्कुराएँगी, 
गुंडों और मवालियों की गर्दनें तब शर्म से स्वयं झुक जाएँगी। 
कन्या को भारी बोझ समझ उन्हें दुत्कारने वाले उनके परिवार, 
देखिएगा! करने लगेंगे बेटियों से भी बेटों समान लाड़-दुलार। 

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टिप्पणियाँ

shaily 2022/11/29 03:45 PM

ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी कविता का एक-एक शब्द सच हो। लडकियों को समाज, परिवार में स्थान मिले, उनमें जागृति और मनोबल आये। साधुवाद

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