तीन परिस्थितियाँ एक समान, परन्तु परिणाम विभिन्न
आलेख | चिन्तन मधु शर्मा15 Nov 2021 (अंक: 193, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
आये दिन हमारे घर-गृहस्थियों, काम-काज, विद्यालयों इत्यादि से लेकर समाज तक में ऐसी-ऐसी चिंताएँ उभर कर सामने आ जाती हैं, जिन पर यदि चिंतन न किया गया तो शीघ्र ही वे कैंसर रूपी कीड़ा बनकर हमारे भीतर घर कर जायेंगी या नासूर बन इंसानियत को मिटा डालेंगी।
तीन परिस्थितियाँ एक समान, परन्तु परिणाम विभिन्न
(1) 'अ' की जेठानी की बहू 'ब' बहुत बरसों बाद 'अ' से मिली। हालचाल पूछने व जानने के बाद सीधा अपनी सास की बुराइयाँ करने लगी क्योंकि उसे मालूम था कि उसकी सास और 'अ' की आपस में नहीं बनती। लोकिन यह क्या? 'अ' ने उसकी हाँ में हाँ मिलाने की बजाए उसकी बातों को अनसुना कर दिया, और बच्चों इत्यादि की बातें करते हुए विषय ही बदल दिया।
नि:संदेह 'अ' व उसकी जेठानी की नहीं बनती थी, लेकिन उसने समझदारी से काम लिया। 'ब' को उकसाने की बजाए उसने बात वहीं की वहीं टालकर बात को बिगड़ने से बचा लिया।
(2) किसी के मुँह से 'र' की बुराई सुनकर उसके दोस्त 'क' ने झट से 'र' के घर जाकर उसे सब बता दिया। 'र' को दु:ख तो बहुत हुआ . . . अपनी बुराई सुनकर नहीं, क्योंकि उसे दुनिया की बातों की क़तई चिंता न थी। दु:ख तो उसे इस बात का हुआ कि जब लोग मेरे सामने मेरे इसी दोस्त 'क' के ख़िलाफ़ बातें करते हैं तो मैं मुँह तोड़ जवाब दे उन्हें वहीं चुप करा देता हूँ। मगर वही दोस्त आज लोगों से मेरी बुराई सुन उन्हें समझाने की बजाए उल्टा मेरा दिल दुखाने आ पहुँचा!
(3) 'म' की देवरानी 'स' उससे बहुत ईर्ष्या करती थी। कभी रिश्तेदारों या कभी मुहल्लेवालों के यहाँ जाकर 'म' के बारे बातें किये बिन न रह पाती। 'म' की सहेली 'व' को जब यह मालूम हुआ तो वह एक दिन बहाने से 'स' से मिलने चली गई। इससे पहले कि 'स' अपनी बुरी आदत से मजबूर 'म' की बुराइयाँ करनी शुरू करती, 'व' ने उसी की तारीफ़ों के पुल बाँधने शुरू कर दिए। कहने लगी, "जब भी मैं तुम्हारी जेठानी से मिलती हूँ तो वह कभी तुम्हारे मीठे स्वभाव की और तुम कैसे हमेशा घर को सदा साफ़-सुथरा रखती हो आदि आदि ही की तारीफ़ करती रहती है। उससे तुम्हारी इतनी प्रशंसा सुन-सुनकर मैं रुक न पाई, और इसीलिए मैं तुमसे मिलने तुम्हारे घर आ गई।"
'व' वहाँ कुछ और देर बैठ कर चली तो गई लेकिन 'स' के दिल में ऐसी हलचल मचा गई कि उस दिन के बाद फिर कभी किसी ने उसके मुँह से 'म' की कभी कोई बुराई न सुनी। सबसे अधिक अचम्भा तो 'म' को हो रहा है कि 'स' में अचानक इतना परिवर्तन आया तो कैसे आया?
चिंतन: कुछ लोग अच्छी-भली परिस्थिति को बिगाड़ने वाले कारीगर होते हैं . . . कुछ लोग बिगड़ी बात को और न बिगड़ने से पहले सम्भाल लेते हैं . . . और कुछ लोग बिगड़ी बात को सँभालने के साथ-साथ उसे सही रास्ते पर भी ले आते हैं।
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