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गिफ़्ट

“मम्मी, मम्मी! आप डैडी को छोड़ दें,” छह बरस के मयूर ने मीनल को गले लगाते हुए कहा। 

“क्यों मयूर! क्या तुम्हारे डैडी ने तुम्हें डाँटा है? कहीं तुमने फिर से तो कोई शरारात नहीं कर डाली?” 

“नहीं मम्मी! वो मेरी क्लास में जितने भी बच्चों के मॉम और डैड का जब से डिवोर्स हुआ है, उन सभी को उनके बर्थडे और क्रिसमस वग़ैरह पर अब अलग-अलग गिफ़्ट मिलते हैं . . . उनकी मम्मी की तरफ़ से भी और डैडी की तरफ़ से भी।” 

अपने छोटे से बेटे की इतने भोलेपन से कही हुई बात ने मीनल को सोचने पर विवश कर दिया कि वास्तव में जब यहाँ पश्चिमी देशों में पाँच में से तीन शादियाँ धड़ाधड़ टूट रही हैं तो बच्चों को शादी-ब्याह क्या गुड्डे-गुड़ियों का खेल जैसा नहीं लगेगा तो फिर क्या लगेगा! 

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टिप्पणियाँ

होम सुवेदी 2022/10/17 08:56 PM

बाह क्या सटीक यथार्थ । आज यही चल रहा है विश्व मेँ ।

सरोजिनी पाण्डेय 2022/09/15 05:57 PM

इसी को संस्कार कहते हैं, या फिर संगत का प्रभाव। मर्मस्पर्शी कहानी है।

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