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कॉफ़ी

 

“अच्छा तो आप चाय लेंगे या कॉफ़ी?” 

लड़की के पिता ने बेटी देखने आये लड़के वालों से पूछा। 

“जी कॉफ़ी मिल जाये तो . . . और वो भी बेटी के हाथों बनी . . . ” लड़के की माँ ने बड़े अपनेपन से कहा। 

कॉफ़ी और नाश्ते से निबट, जैसा कि आम होता है, कुछ औपचारिक बातें-वातें हुईं। 

जब लड़के वाले अपने घर के लिए रवाना हुए तो लड़के के पिता ने छूटते ही अपनी पत्नी से व्यंग्य भरे स्वर में कहा, “अभी तो तुम सास बनी नहीं हो, और दिखा दी न सास वाली औक़ात! अपने सादा से घर में तो तुम कभी कॉफ़ी पीती नहीं हो, तो यहाँ शो-ऑफ़ करने की क्या ज़रूरत थी?” 

“आप मर्द हैं न सो मर्दों वाली सोच रखते हैं . . . ” पत्नी ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, “हम औरतें इन मामलों में बहुत दूर की सोचती हैं। मुझे तो बस यही देखना था कि वो लड़की झट से काम निपटाने ख़ातिर दूध-पानी में काफ़ी घोल कर बना कर लाती है या फिर मन लगाकर अच्छी तरह से उसे फेंटकर। मुझे सुंदर बहू तो चाहिए ही लेकिन साथ-साथ किचन में वो मेरा हाथ बँटाने वाली भी हो।”

पति महाशय हर बार की भाँति फिर से निरुत्तर हो गये। 

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