अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

स्वार्थ

 

यह वही घुटन, उदासी, अकेलेपन का अहसास या वही बेचैनी तो बिलकुल न थी, जो उसने विदेश आते ही कुछ ही दिनों में महसूस करनी शुरू कर दी थी . . . और जो उसके मम्मी-पापा के आने पर धीरे-धीरे कम होती चली गई थी। लेकिन कुछ तो था जिसकी कसक, जिसके अभाव के कारण वह अब खोई-खोई व अनमनी सी रहने लगी थी। 

अपने बेडरूम में काफ़ी समय तक करवटें बदलते रहने के बाद भी जब नींद उसके पास फटकी नहीं, तो उसने सोचा, चलो कुछ देर मम्मी-पापा के पास नीचे जाकर बैठती हूँ। अभी वे सोने के लिए अपने कमरे में ऊपर नहीं आये थे। ड्रॉइंग-रूम में उनकी बातें करने की आवाज़ जो आ रही थी। 

ऐल्फ़ा की कहीं नींद न टूट जाये, इसलिए आहिस्ता से अपना गाउन पहन कर, अँधेरे में ही उँगलियों से अपने बिखरे बालों को यूँ ही सँवार कर जब वह सीढ़ियों से नीचे उतरने ही वाली थी कि अपना नाम सुनकर और पापा की ऊँची आवाज़ सुनकर वहीं लैंडिंग पर रुक गई। वह अपनी पत्नी से कह रहे थे, “देखो, हमारी अनु के लिए इतना अच्छा रिश्ता फिर न मिल पायेगा! तुम कैसी माँ हो जो औरत होकर एक औरत का दर्द न सही, एक बेटी का तो . . . “

“लेकिन आप भी मेरी तरह दूर की क्यों नहीं सोच रहे?” अपने पति की पूरी बात सुने बिना अनु की मम्मी ने टोकते हुए कहा, “यह तो अच्छा हुआ कि उसके ससुराल व पति द्वारा सताए जाने का मालूम होने पर, मैं यहाँ इंग्लैंड पहुँचते ही उस नर्क से उसे निकाल लाई। फिर आपको भी यहीं बुलवा लिया। अब देखें न, कितने आराम से हम तीनों की ज़िंदगी कट रही है। अपने में ही मस्त रहने वाले हमारे बेटे-बहू ने वहाँ इंडिया में हमारी कभी रत्ती भर भी चिन्ता नहीं की थी।”

“आराम की हमारी ज़िंदगी तो इंडिया में भी कट रही थी, अनु की मम्मी! बेटी की ज़िंदगी तबाह हो गई और तुम इसे आराम की . . . अभी उसकी उम्र है तो शादी कर देंगे तभी तो माँ बन पायेगी। नहीं तो टालते-टालते जब क़ुदरत भी उसका साथ न दे पाएगी, तुम तब बहुत पछताओगी।”

“न जी न, मैं उसके साथ दुबारा वही ससुराल का सिरदर्द या किसी पति का ज़ुल्म उसे सहने नहीं दूँगी। रही माँ बनने की बात . . . तो आपने देखा ही है कि वह अपनी जॉब के साथ-साथ ऐल्फ़ा की मौजूदगी में कितनी ख़ुश रहती है। आजकल के छोटे से छोटे बच्चे तक अपनी ही दुनिया में इतने बीज़ी हैं कि अपने पेरंट्स को कहाँ ऐसा प्यार, इतनी ख़ुशी दे पाते हैं . . . हमारी अनु ऐसी ही भली . . .।”

“तो तुम एक कुत्ते को सन्तान के मुक़ाबले में कहीं बेहतर समझती हो? तुमने तो माँ होते हुए भी ख़ुदगर्ज़ी की हद ही कर डाली। ख़बरदार! फिर कभी तुमने ऐसी बात मुँह से निकाली तो . . .।”

सोफ़े पर से अपने पापा के उठने की आवाज़ सुन अनु दबे पाँव अपने कमरे में लौट आई। एक ओर अपनी मम्मी का स्वार्थ जानकर बहुत आहत हुई तो दूसरी ओर अपने पापा के प्रति आदर व प्यार उमड़-उमड़ कर आ रहा था। उसे आश्वासन हो गया कि उसकी कसक का हल पापा शीघ्र ढूँढ़ निकालेंगे। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कहानी

कविता - क्षणिका

सजल

ग़ज़ल

कविता

चिन्तन

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता-मुक्तक

कविता - हाइकु

कहानी

नज़्म

किशोर साहित्य कविता

सांस्कृतिक कथा

पत्र

सम्पादकीय प्रतिक्रिया

एकांकी

स्मृति लेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं