आत्मनिर्भर वृद्धा माँ
कथा साहित्य | लघुकथा मधु शर्मा1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
उस सुबह चाय पीने के लिए कपबर्ड खोल कर कप निकालते हुए उसके समीप रखे काँच का गिलास फिसल कर वर्कटॉप पर गिर कर चकनाचूर हो गया। गीले कपड़े से पूरा स्थान साफ़ करने के बावजूद भी काँच के सफ़ेद रंग के कुछ कण उछल कर खुले हुए चीनीदान में कब जा गिरे, उस की कमज़ोर बूढ़ी आँखें चीनी व टूटे काँच में अन्तर देख न पाईँ।
इस घटना को बीते लगभग कुछ सप्ताह हो चुके थे। हर सप्ताह की तरह उस वृद्धा की बेटी जब माँ की दी लिस्ट वाला राशन-पानी ख़रीद शनिवार की दोपहर उसके घर पहुँची तो माँ को सोफ़े पर मृत पाया। पोस्टमार्टम में उसके रक्त में काँच का एक महीन कण पाया गया।
बेटी को याद आया कि माँ ने उस घटना का हँसते हुए ज़िक्र किया था। तब उसने फिर से प्यार से टोका था, “मॉम, आपकी वजह से हम दोनोंं भाई-बहन दिन-रात आपकी सेफ़्टी के लिए चिंतित रहते हैं। चलें, हम मान लेते हैं कि आपको यह इंग्लैंड छोड़कर भाई के पास कैनेडा रहना मंज़ूर नहीं, लेकिन मेरे व बेटे जैसे अपने दामाद के साथ रहने में भी आपको आपत्ति है! . . . चलें, यदि हमारे साथ या ओल्ड-पीपल-होम में न सही, आप किसी वार्डन-कन्ट्रोल अपार्टमेंट में मूव हो जायें! वहाँ के वार्डन होते इसीलिए हैं ताकि वहाँ रहने वालों की सुरक्षा का चौबिसों घंटे ध्यान रख सकें। सुबह-शाम हाल-चाल पूछने आते हैं और कोई दुर्घटना हो जाने पर तुरंत डॉक्टर बुलवा भेजते हैं या समय पर हॉस्पिटल ले जाते हैं।”
मॉम ने तब हाथ जोड़ कर विनम्रतापूर्वक यही कहा, “बेटी, मैं आज भी तुमसे वही कहूँगी जो कई बार पहले कह चुकी हूँ कि यह मेरा घर—जहाँ पिछले पचास साल की तुम्हारे पापा व तुम दोनों बहन-भाई से जुड़ी ढेरों मीठी यादें बसी हुई हैं—कैसे छोड़कर कहीं और जा बसूँ? मैं यहाँ बहुत सन्तुष्ट हूँ . . . और अगर कल मैं इस दुनिया से चली भी जाऊँ तो तुम मेरे लिए दुखी होने की बजाय यह सोचकर तसल्ली कर लेना कि मॉम की आत्मा को शान्ति अवश्य मिली होगी। क्योंकि जैसा वो चाहती थीं, सारी उम्र अपनी ख़ुशी से आत्मनिर्भर रहीं, और अपने हाथों से बनाये घोंसले में जीवन बीताती हुईं उसकी मीठी यादें साथ लेकर मुस्कुराते हुए ही गईं।”
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