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सहानुभूति व संवेदना में अंतर

कैंसर से पीड़ित सिंडी को किसी से सहानुभूति नहीं, अपितु उसे कोई समझे व बिन कुछ बोले संवेदना प्रगट करने वालों की आवश्यकता थी। सबसे छोटी होने के कारण उसकी दोनों बहनें सदैव उसका साथ देती रही हैं . . . और ऐसे समय में तो सिंडी को उनका सहयोग और भी चाहिए था। 

लेकिन कोरोना के आते ही परिस्थिति पलट कर रह गईं। सिंडी की कीमोथैरपी-चिकित्सा के चलते बहनों के मिलने-जुलने पर डॉक्टर ने पाबन्दी लगा दी। वह तो आभार हो फ़ेसटाइम का कि जब भी सिंडी का मन करता तो बहनों से अलग-अलग या ग्रुप में बात कर दिल कुछ हल्का कर लेती। 

इधर दो-एक दिन से बालों में कंघी करते समय सिंडी के घने बाल इतनी अधिक मात्रा में झड़ने आरम्भ हो गये कि इस बात का पूर्वाभास होते हुए भी वह स्वयं को सँभाल न पाई। बहनों ने बहुत समझाया कि यदि वह अभी ही बाल मुँड़वा (शेव) ले तो प्रतिदिन बाल झड़ते देख परेशान तो न होगी। परन्तु सिंडी ने उनका कहा मानने की बजाय उनसे फ़ेसटाइम पर भी बात करने के लिए मना कर दिया। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसके झड़ते बालों को देख उससे सहानुभूति करे। इसलिए उसने अब केवल फ़ोन पर ही उनसे बातचीत करनी आरम्भ कर दी। 

इस बात के दो दिन पश्चात ही दोनों बहनों ने उससे फ़ोन पर विनती की कि एक बार, केवल एक अंतिम बार, सिंडी उनसे अभी फ़ेसटाइम-ग्रुप पर बात कर ले। सिंडी ने झुँझला कर फ़ेसटाइम का बटन क्लिक किया तो पहले तो उसे फ़ोन की स्क्रीन पर किसी भी बहन का चेहरा दिखाई न दिया . . . अचानक फिर दोनों बहनों के खिलखिलाने की आवाज़ के साथ ही उनके चेहरे सामने प्रगट हुए। यह क्या? दोनों ही बहनों के घने केश उनके सिर से नादारद थे। सिंडी की आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई . . . उसकी बड़ी बहनों ने उसके साथ संवेदना ही नहीं अपितु उसका सहयोग देने के लिए इतना बड़ा बलिदान दे डाला। 

बहनों ने भी उसके चेहरे के भावों से भाँप लिया कि उनकी चहेती बहना अपना निर्णय लेने में अब डाँवाँडोल नहीं होगी।

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