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कुछ कड़वे सच-3

 

देके फ़रेब दावा करें अजी हम सीधे-सादे हैं, 
इक़रारे जुर्म जो करें वो तो बस इक-आधे हैं। 
 
काँधे पे हमारे रख बंदूक़ ज़रा सोचकर चलाएँ, 
शय और मात देने वाले हम ही तो वो प्यादे हैं। 
 
इंतज़ार करो न ज़रा जान! जल्द लौट आऊँगा, 
हमने मगर जान लिया कि ये सब झूठे वादे हैं
 
देख फ़क़ीरों की फ़क़ीरी नासमझ ही हँसते हैं, 
ग़ुरबत में अमीरी से ठाठ वाक़ई ये शहज़ादे हैं। 
 
गिरफ़्तारी, कचहरी फिर क़ैद की लम्बी सज़ा, 
ग़रीबों के लिए सिर्फ़ बने ये क़ानून-क़ाइदे हैं। 
 
बुढ़ापे में जो पाल रहे अपने हट्टे-कट्टे बेटों को, 
झुकी कमर पर जैसे बोझ सदियों का लादे हैं। 

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