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मधु शर्मा – तीन क्षणिकाएँ – 001

1)
न बीते हुए कल को याद करो, 
न आने वाले कल की बात करो, 
अपनी साँसों की माला पर 'मधु'
केवल प्रभु-नाम का जाप करो। 
केवल प्रभु नाम का जाप करो। 
2) 
पड़े हैं परवरदिगार आपके दर पर, 
हाथ आपका है जब तक सर पर, 
आपकी इच्छा में अब इच्छा हमारी, 
भीड़ से घिरे रखें या अकेले घर पर। 
3) 
छुपके सबसे रोती हुई वो जब छत पर आती है, 
होके बेचैन बारिश भी तब झट से थम जाती है, 
देखकर यह वो रोते-रोते अचानक मुस्कुराती है, 
इंसान न सही, क़ुदरत तो चलो साथ निभाती है। 

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